स्टेडियम की सीढि़यों पर तन्हा बैठे सौरव गांगुली का एक विज्ञापन आज बार-बार याद आ रहा है। दो साल पहले सौरव को भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था। वो अपनी वापसी की जी-तोड़ कोशिशों में लगे थे। एक सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनी ने सौरव की इन्हीं कोशिशों को अपने विज्ञापन में ढाल दिया था। ये विज्ञापन शुरू होता था सौरव के परिचय से, सौरव के सवाल से। ‘मैं सौरव गांगुली हूं, भूले तो नहीं... ’
दो साल पहले टीम से ड्रॉप कर दिए गए सौरव को कोई भूला नहीं था, सौरव को भूलना नामुमकिन है। आज भी कोई सौरव को भूला नहीं है। लेकिन, भारतीय क्रिकेट में उन्हें भूलाने की कोशिश जरूर हो रही है। बंगलुरु में ऑस्ट्रेलियाई सीरीज के लिए कैंप जारी है। हर कोई वहां मौजूद हैं, नहीं हैं तो सिर्फ सौरव गांगुली। टीम संभावितों की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। ना तो वेंगसरकर की पुरानी चयन समिति ने किन्हीं संभावितों के नाम जारी किए, ना ही शनिवार को श्रीकांत की अगुवाई में कमान संभालेवाली चयन समिति ने ऐसी कोई पहल की।
लेकिन बंगलुरु में भारतीय टेस्ट टीम का हर दूसरा संभावित चेहरा मौजूद है, सिर्फ सौरव गांगुली को छोड़कर। आखिर ईरानी ट्रॉफी की टीम घोषित करते वक्त चयन समिति ने सौरव को टेस्ट टीम से खारिज नहीं किया था, तो फिर सौरव बंगलुरु में जारी कंडिशनिंग कैंप में क्यों मौजूद नहीं है ? ना तो कोई यह सवाल खड़ा कर रहा है, ना ही इसका जवाब तलाशा जा रहा है।
दिलचस्प है कि वेंगसरकर ने चयन समिति में रहते वक्त सौरव को ड्रॉप करने पर कोई सफाई नहीं दी, लेकिन पद से हटते ही एक के बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने इस फैसले की वजह गिनाने में देर नहीं की। 'सौरव टेस्ट के लिए अनफिट हैं। उनका खेल ढलान पर है।' ये वेंगसरकर के बयान हैं।
इन सबके बीच बुधवार को चयन समिति की होने वाली बैठक में क्या यह मान लिया जाए कि सौरव को टेस्ट टीम में जगह नहीं दी जाएगी ? अगर नई चयन समिति के सदस्यों की सौरव को लेकर सोच पर नजर डाली जाए तो एकबारगी ऐसा नहीं लगता। भारतीय क्रिकेट की पहली प्रोफेशनल चयन समिति के अध्यक्ष कृष्णमाचारी श्रीकांत सौरव के अनुभव को तरजीह दे सकते हैं। श्रीलंका में मिली नाकामी के बाद श्रीकांत ने अपनी वेबसाइट पर साफ लिखा है, 'हमारा मिड्ल अपने करियर की संध्या में हैं और समय आ गया है कि इन महान खिलाडि़यों के विकल्पों को तैयार करने की कवायद शुरू कर दी जाए, लेकिन यह आसान नहीं होगा। हमें धैर्य रखना होगा और शुरू में कुछ झटकों को सहने के लिए भी तैयार रहना होगा। सौभग्य से हमारे पास काफी प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं, लेकिन इन महान खिलाडि़यों के विस्तृत अनुभव और उनकी महानता का विकल्प ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होगा।'
बेशक श्रीकांत का यह बयान एक कमेंटेटर और क्रिकेट जानकार की हैसियत से है। लेकिन, ये संकेत जरूर देता है कि वे अभी इस गोल्डन मिड्ल ऑर्डर को बदलने की जल्दबाजी में नहीं हैं। कम से कम पोंटिंग की वर्ल्ड चैंपियन टीम के खिलाफ ऐसा जोखिम उठाने की कोशिश वे नहीं करना चाहेंगे।
अकेले श्रीकांत ही नहीं, उनके सहयोगी यशपाल शर्मा भी चयनकर्ता के नाते अपने पहले कार्यकाल में सौरव के हक में लड़ते रहे हैं। 2006 में तो सौरव की वापसी के मुद्दे पर चयन समिति के अध्यक्ष किरण मोरे और यशपाल का टकराव खुलकर सामने आ गया था। इसी कड़ी में तीसरे चयनकर्ता राजा वेंकट का मंगलवार को दिया बयान भी गौरतलब है। बंगाल के लिए क्रिकेट खेलने वाले राजा वेंकट का मानना है कि सचिन, सौरव और द्रविड़ को कब तक क्रिकेट खेलना है, यह उन पर छोड़ देना चाहिए।
ऐसे में बेशक सौरव को कंडिशनिंग कैंप से दूर रखा गया है, लेकिन मौजूदा चयन समिति के इन सदस्यों के विचारों के मद्देनजर सौरव को टीम में जगह मिलनी चाहिए।
लेकिन, सवाल यही है कि क्या ऐसा होगा ? जवाब अभी भी आसान नहीं है। भारतीय टीम चयन समिति ही चुनती है, लेकिन इस पर औपचारिक मुहर अध्यक्ष ही लगाता है। टीम के चुनने में चयन समिति के फैसलों में कोई दखलअंदाजी नहीं होती, लेकिन ये बोर्ड की एक औपचारिक प्रक्रिया है। ऐसे में बोर्ड के नए अध्यक्ष शशांक मनोहर पर सबकी निगाहें हैं। अगर आपको याद हो तो, 2004 में नागपुर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला गया टेस्ट मैच पिच को लेकर विवादों में घिर गया था। मुकाबले से पहले कप्तान सौरव गांगुली 'होम एडवांटेज' की गुहार लगाते हुए पिच से घास हटाने की मांग करते रहे, लेकिन विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन ने इससे साफ इंकार कर दिया था। उस समय विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष शशांक मनोहर ही थे। इस मुकाबले की सुबह अनफिट सौरव गांगुली की जगह कप्तानी राहुल द्रविड़ को संभालनी पड़ी। माना जाता है कि शशांक मनोहर से पिच के मुद्दे पर गांगुली नाराज हो गए थे। ऐसे में बुधवार को टेस्ट टीम की सूची पर शशांक मनोहर की आखिरी मुहर पर सबकी नजर रहेगी।
लेकिन, इन सबके बीच एक बात साफ है। सौरव गांगुली का टीम में आना, बाहर होना और टीम में वापसी, हर बार सौरव से जुड़े फैसले राजनीति के छीटों से नहीं बच पाते। 1996 में टेस्ट टीम में सौरव जगह बनाते हैं, तो उन के चयन पर सीधे-सीधे कोटा सिस्टम का आरोप लगता है। लॉर्ड्स पर अपने पहले ही टेस्ट में वे शतक जमाकर इसका भरपूर जवाब देते हैं। भारतीय क्रिकेट को अपनी कप्तानी में वे एक शिखर पर काबिज करते हैं, लेकिन कोच ग्रेग चैपल से अनबन टीम से बाहर होने की वजह बनकर सामने आती है। संसद में लेफ्ट फ्रंट के समर्थन की आवाजों के बीच सौरव टीम में वापसी करते हैं। आज भी सौरव की टीम में जगह को बरकरार रखने को लेकर बहस छिड़ी है तो इसकी वजह उनका एक सीरीज में नाकाम होना ही नहीं है। बढ़ती उम्र से लेकर तमाम दूसरी दलीलें सामने आ रही हैं। ऐसे में टीम में अगर वो बरकरार रहते हैं तो भी उनका खेल या फॉर्म आधार नहीं बन सकता। श्रीलंका के नाकाम दौरे के बाद ना तो सौरव कहीं घरेलू क्रिकेट खेले हैं, ना ही उन्हें बंगलुरु के कैंप के लायक माना गया। ऐसे में टीम में उनकी जगह बरकरार रहने का आधार उनका फॉर्म तो नहीं ही होगा।
इन सबके बीच सौरव गांगुली की कहानी सॉफ्ट ड्रिंक के उस विज्ञापन से आगे जाते दिखती है। अब वो सिर्फ वापसी की कोशिशों में जुटे सौरव गांगुली नहीं हैं, जो कहते हैं कि वापसी के साथ शर्ट घुमाने का मौका एक बार फिर मिल जाए। आप दादा की बात सुन रहे हैं ना ! दादा की बात ही नहीं, दादा से जुड़े और उनके आसपास बुने हर किस्से को ये देश ध्यान से सुन रहा है। भारतीय क्रिकेट में सौरव की कहानी अब एक विज्ञापन के दायरे से बाहर निकल एक सोप ओपेरा में तब्दील हो गई है।
Tuesday, September 30, 2008
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1 comment:
सही है!!
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