करीब बारह साल से सौरव गांगुली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मंच पर मौजूद हैं। टेस्ट से लेकर वनडे तक कितनी ही बेजोड़ पारियां उनके नाम दर्ज हैं। लेकिन, अगर आज यह पूछा जाए कि इस दौरान सौरव की कौन सी एक तस्वीर आपके जेहन में ठहर गई है, तो 99 फीसदी का जवाब होगा- लॉर्ड्स की बाल्कनी में नंगे बदन टी-शर्ट को हवा में लहराते सौरव। मेरे लिए भी सौरव की पहचान से जुड़ी सबसे यादगार तस्वीर है। खुद को साबित करते सौरव गांगुली की शख्सियत को बयां करती तस्वीर। अपने प्रतिद्वंद्वी को उसी की जबान में जवाब देते सौरव गांगुली।
लेकिन, पिछले दो सालों के दौरान इसी के समानांतर एक और तस्वीर भी बार-बार दस्तक देने लगी है। ईडन गार्डन में बीच दोपहरी में अकेले अपनी कमर में एक टायर को बांध आगे बढ़ने की जी-तोड़ कोशिश करते सौरव। ठीक उसी ईडन में बिल्कुल तन्हा, जहां लाखों लोगों की हौसलाअफजाई के बीच उन्होंने अपनी हर पारी को परवान चढ़ाया। अपनी कप्तानी में स्टीव वॉ से लेकर इंजमामुल हक से बड़ी लकीर खींच दी। इसी ईडन में टीम में अपनी वापसी की कोशिशों में जुटे सौरव गांगुली को सामने लाती तस्वीर। जीवट से भरपूर, कभी न हार मानने वाली सौरव गांगुली से रूबरू कराती तस्वीर।
बीते दो सालों में वापसी के बाद सौरव के बल्ले से बहे रनों ने इस तस्वीर को और मजबूती से गढ़ दिया है। इस दौरान सौरव ने टेस्ट में 45 और वनडे में 43 की औसत से रन बटोरे। लेकिन, इन रनों से ज्यादा नाजुक मौकों पर खेली उनकी पारियां एक फीनिक्स की तरह उनकी पहचान से जुड़ गईं। पाकिस्तान के खिलाफ बंगलुरु में उनके दोहरे शतक पर गावस्कर ने लिखा- ‘पैंतीस साल की उम्र में आप सेंचुरी की उम्मीद नहीं करते, लेकिन सौरव ने डबल सेंचुरी जमाकर अपनी वापसी को परीकथा में तब्दील कर दिया। ये उनकी अपने में भरोसे की मिसाल है।’
सौरव ने बेशक इस बार वापसी नहीं की है, उन्हें टेस्ट टीम में बरकरार रखा गया है। लेकिन, उनका टीम में बने रहना एक वापसी से कम नहीं है। ना सिर्फ इसलिए कि उन्हें ईरानी ट्रॉफी के लिए शेष भारत की टीम में नहीं चुना गया, बल्कि इसलिए भी कि सौरव को ईरानी ट्रॉफी ठीक बाद बुलाए गए कंडशिनिंग कैंप से दूर रखा गया। उन्हें बाहर रखने को लेकर कप्तान अनिल कुंबले और कोच गैरी कर्स्टन पर भी उंगली उठी। ये इशारा करते करते हुए कि टीम में सौरव गांगुली की जगह नहीं बनती है। श्रीलंका सीरीज की नाकामी के चलते उन्हें टीम शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन तमाम बहसों, बयानों और आलोचनाओं के बावजूद सौरव गांगुली एक बार फिर टीम में है। एक बार फिर सौरव की भारतीय टीम में वापसी हो रही है।
लेकिन, सौरव की ये वापसी उनकी ठहरी तस्वीर, उनकी परीकथाओं की तरह रची कहानियों से झलकती उनकी शख्सियत पर चोट कर रही है। अगर खबरों पर भरोसा करें तो यह कहा जा रहा है कि सौरव और बोर्ड के बीच एक ‘समझौता’ हो गया है। सौरव कैसा भी खेलें, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ होने वाले घरेलू टेस्ट सीरीज के बाद उन्हें हटना होगा। भारतीय क्रिकेट में सौरव के योगदान के मद्देनजर ये पहल की जा रही है। गोल्डन मिड्ल ऑर्डर के बाकी तीनों महानायकों- सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण को भी ये राह चुननी होगी।
ये खबर कई मायनों में तकलीफदेह है। ये हमारे जेहन में वापसी करते सौरव गांगुली की छवि से मेल नहीं खाता। यह सौरव की वापसी से कम जुड़ती है। दो पक्षों के बीच रजामंदी के बाद एक फैसले को ज्यादा बयां करती है। अगर ये ‘समझौता’ है तो सवाल खड़ा करता है कि ये सौरव का खेल नहीं है, जो उन्हें टीम में जगह दिला रहा है। ये सौरव का भारतीय क्रिकेट में बीता कल है, भारतीय क्रिकेट के लिए हासिल लम्हों की कीमत वसूलने जैसा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि क्रिकेटर या किसी भी दूसरे महान खिलाड़ी को अलविदा कहनी है, तो ठीक उसी स्टेज से विदाई लेनी चाहिए, जहां उसने अपने खेल को परवान चढ़ाया। अपने खेल से उभार लेती कहानियों को मिथकों में तब्दील कर दिया है। लेकिन, ये जरूरी है कि ये उस खिलाड़ी का शिखर होना चाहिए। पाकिस्तान ने भी इंजमाम को विदाई के लिए ऐसा ही मौका दिया था। लेकिन, उस वक्त भी इंजमाम अपने बेहतरीन फॉर्म में थे। लेकिन, जिस सौरव गांगुली को टीम में बरकरार रखा गया है, वह शिखर पर नहीं हैं। वरना क्या वजह है कि पिछली चयन समिति के अध्यक्ष दिलीप वेंगसरकर ने ईरानी ट्रॉफी में उन्हें जगह न देने की वजह उनकी खराब फिटनेस और फॉर्म को बताया था। गौरतलब है कि ये वही वचेंगसरकर हैं, जिन्होंने सौरव की टीम में वापसी के रास्ते खोले थे।
फिर ये ‘समझौता’ चयन समिति के फैसलों को भी सवालों के कटघरे में ला खड़ा करता है। आप वर्ल्ड चैंपियपन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उतर रहे हैं। एक ऐसी टीम, जो मैदान में खेल के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर जीत तक पहुंचने की हर मुमकिन कोशिश करती है। इतने कड़े मुकाबले में आप अपने टीम कॉम्बिनेशन में एक भी जगह के लिए समझौता करने की कैसे सोच सकते हैं। या तो आप ये कहें कि सौरव टीम में जगह के बराबर हकदार हैं या दो टूक कहें कि टीम में उनकी जगह नहीं बनती। इससे हटकर आप कोई दूसरी दलील दे ही नहीं सकते।
सौरव को टीम में बरकरार रखने में कोई हर्ज नहीं है। सवाल है तो सोच का, जो ना सिर्फ चयन समिति के फैसलों पर सवालिया निशान खड़ा करती है, बल्कि ये भारतीय इस महानायक की शख्सियत पर भी चोट करती है। बेशक, सौरव अब हल्के बल्ले से अपने स्ट्रोक की टाइमिंग को दुरुस्त करने में जुट गए हैं, लेकिन अब उनके बल्ले से निकलते हर रन से इस समझौते की गूंज सुनाई देगी। आलोचक इस समझौते की कडियां खोलने में जुट जाएंगे। सौरव अगर अपनी पहचान के मुताबिक अपने खेल को नई ऊंचाइयों पर ले जाकर अलविदा भी कहेंगे तो भी इस ‘समझौते’ की टीस से ना तो सौरव मुक्त हो पाएंगे, न ही हम और आप जैसे सौरव के चाहने वाले।
1 comment:
ये लेख पढ़ने के बाद पता चला कि वाकई खेल भी एक जिंदगी है। आखिर एक खेल ही ने तो सौरव को खुशनुमा और बेहतर जिंदगी जीने का मौका दिया। अपने खेल से सौरव ने भारत को जो भी कुछ दिया है शायद उसे बताने की जरूरत नहीं है ये लेख पढ़ने के बाद ही साफ हो जाता है। लेकिन भारत के सबसे सफलतम कप्तान का तगमा पाये सौरव की जिंदगी एक समझौते पे आकर रूकेगी ये शायद खुद सौरव भी कभी नहीं सोचे रहे होंगे। खैर सौरव गांगुली का एक प्रशंसक होने के नाते उनके खेल के बारे में काफी कुछ जानता था। लेकिन आपके इस लेख से उनकी आक्रमकता और खेल के प्रति समर्पित उनके जूनन को जानने का मौका मिला।
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