उनके किट बैग में सिर्फ बल्ला या बाकी साजोसामान ही मौजूद नहीं रहते, उनके किटबैग में निराशा, हताशा और कुछ बिखरे ख्वाब भी मौजूद रहते हैं। लेकिन, एक बार विकेट पर उन्होंने मोर्चा संभाल लिया तो बाकी सब पीछे छूट जाता है। आपके सामने होती है तो किक्रेट की सबसे आसान विधा के रूप में बल्लेबाजी। उनकी बेहद सहज बल्लेबाजी एक कला की शक्ल में उभार लेती है। वीवीएस लक्ष्मण के बल्ले ने गुरुवार को इसी पहचान के साथ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला पर समां बांध दिया। अपने अर्द्धशतक को पहले शतक, और फिर दोहरे नाबाद शतक में तब्दील करते हुए।
आखिर इस टेस्ट से ठीक पहले लक्ष्मण अपने बिखरे ख्वाबों से ही तो जूझ रहे थे। इन्हीं के बीच से उन्हें फिर अपना रास्ता तलाशना था। अपने पर उठते सवालों का एक बार फिर जवाब देना था। इस टेस्ट से ठीक पहले पांचवें गेंदबाज को शामिल करने के एवज में किसी बल्लेबाज को बिठाने की अटकलें गरम हो रही थीं तो उसमें सबसे पहला नाम लक्ष्मण का था। बेहतर होगा, अगर कहा जाए कि मोहाली की विजयी टीम से किसी को बाहर बिठाने की सूरत में एक ही नाम दिख रहा था, वीवीएस लक्ष्मण।
लेकिन, लक्ष्मण ने कोटला पर 470 मिनट विकेट पर मौजूद रहकर ऐसी पारी खेली कि इन सब अटकलों को छेड़ने वालों के पास आज कोई जवाब नहीं होगा। हैदराबाद की बल्लेबाजी नफासत को समेटे लक्ष्मण पोंटिंग की व्यूह रचना के बीच से अपनी पारी को आगे बढ़ाते रहे। पोंटिंग लक्ष्मण के स्ट्रोक प्ले को रोकने के लिए जितनी कोशिश कर रहे थे, लक्ष्मण उतनी ही सहजता से उससे पार पा रहे थे। इस हद तक कि दूसरे छोर पर खड़े गौतम गंभीर, अनिल कुंबले और जहीर खान तक सबकी राह आसान होती चली गई। इसी सहजता का नतीजा था कि उन्होंने गंभीर के साथ चौथे विकेट के लिए 278 रन की रिकॉर्ड साझेदारी पूरी की, गंभीर के लिए अपने टेस्ट करियर के पहले दोहरे शतक को छूने की राह भी आसान की।
फिर इस पारी के बीच लक्ष्मण ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ छठी बार शतक के पार जा खड़े हुए। दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम के सामने उन्होंने 2000 रन पूरे करने का गौरव हासिल किया। सचिन तेंदुलकर के बाद इस पड़ाव तक पहुंचने वाले दूसरे बल्लेबाज बने। इन आंकड़ों से आगे उन्होंने भारतीय टीम के लिए वो आधार तैयार कर दिया, जहां से जीत की ओर बढ़ा जा सकता है। ये कोलकाता और सिडनी में भारतीय जीत के बड़े नायक की कोटला पर खेली गई एक और बेजोड़ पारी थी।
लेकिन, ये भारतीय क्रिकेट की विडंबना ही है कि ऐसे बल्लेबाज को बार-बार एक नए सिरे से अपनी पहचान दर्ज करानी पड़ती हैं। सौवें टेस्ट की दहलीज पर जा पहुंचे लक्ष्मण को बार-बार एक नई अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है। कभी टीम में वापसी करने के लिए, तो कभी टीम में अपनी जगह को सही साबित करने के लिए। कभी 10 प्रथम श्रेणी मुकाबलों में 10 शतक जमाकर वे टेस्ट टीम में वापसी करते हैं, तो कभी मौका मिलने पर अपनी पसंदीदा नंबर तीन पर खेलने के लिए कप्तान की मेहरबानी का इंतजार करते हैं।
लक्ष्मण की कचोट सिर्फ यहीं तक नहीं सिमटी है। भारतीय क्रिकेट के इस बेहतरीन स्ट्रोक प्लेयर के हिस्से में अब तक 100 वनडे भी नहीं आए हैं। विजडन द्वारा संकलित सर्वश्रेष्ठ पारियों में छठी सबसे बेहतरीन पारी खेलने वाला ये बल्लेबाज वर्ल्डकप की दहलीज नहीं छू पाया है। 2003 के वर्ल्डकेप से ठीक पहले वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे सरीज में 52 की औसत से सबसे ज्यादा 312 रन बटोरने के बावजूद उन्हें इसके लाया नहीं माना गया। लक्ष्मण के वर्ल्डकप के ख्वाब को तार-तार करने का आधार बना न्यूजीलैंड में सिर्फ तीन मैचों की नाकामी। ये लक्ष्मण का ऐसा बिखरा ख्वाब है, जिसे वो अब ताउम्र समेट नहीं सकते।
ये उस लक्ष्मण की कहानी का हिस्सा है, जो दुनिया के सबसे बड़े स्पिनर शेन वार्न के खिलाफ ऑन ड्राइव करने की हिम्मत रखता है। ये वो लक्ष्मण है, जो ब्रेट ली के बाउंसर को फ्रंटफुट पर हिट करने में नहीं हिचकिचाता। एक ऐसा बल्लेबाज, जिसमें इयान चैपल को मार्क वॉ की झलक दिखाई देती है तो जिमि अमरनाथ को माहेला जयवर्द्धने की। लेकिन इन सबसे बढ़कर वो लक्ष्मण है, जिसकी टीम में मौजूदगी के चलते भारत ने औसतन हर तीसरे मैच में जीत दर्ज की। इस दौरान इन विजयी मुकाबलों में 50 से ज्यादा का औसत टीम में उसकी अहमियत को जाहिर करता है।
कुछ आलोचक कह सकते हैं कि लक्ष्मण की कामयाबियों की फेहरिश्त ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और वेटइंडीज से आगे नहीं जाती। हो सकता है कि वो इंग्लेंड और द अफ्रीका के खिलाफ लक्ष्मण के एक भी शतक तक नहीं पहुंच पाने को गिना सकते हैं। लेकिन, जिन उतार-चढ़ाव के बीच लक्ष्मण ने करियर को परवान चढ़ाया, वहां ये हिस्से पीछे छूट जाते हैं।
लक्ष्मण का मानना है कि अगर आपका जेहन उलझनों से ना भरा हो तो आप अपना स्वाभ्भाविक खेल दिखा सकते हैं। बललेबाजी एक सहज कला है, लेकिन मस्तिष्क इसे जटिल बना देता है। लक्ष्मण भी जटिलताओं के बीच अपने सफर को आगे बढ़ा रहे हैं। भारतीय क्रिकेट में वो गोल्डन फैब फोर कर हिस्सा हैं, लेकिन उनकी छवि अपने बाकी तीन साथी बल्लेबाजों से इतर अपने कप्तान अनिल कुंबले के ज्यादा करीब दिखती है। अपनी उपलब्धियों के बीच लक्ष्मण, कुंबले की तरह भारतीय क्रिकेट में ‘अनसंग हीरो’ हैं। एक ऐसा नायक, जिसे हर बार एक नए सिरे से अपनी पहचान गढ़नी पड़ती है।
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2 comments:
again a well researched article giving a lot of information
sanjay srivastava said
बहुत अच्छा article. सही बात वाकई यही है कि लक्ष्मन जितना deserve करते हैं और जितने tallented हैं. उतना उन्हें मिला नहीं. आस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ उन्होंने हमेशा ही शानदार पारियां खेली हैं. फैब फोर में वो ऐसे क्रिकेटर हैं, जो अभी आराम से कई साल खेल सकते हैं.
sanjay srivastava
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