शेन वाटसन के हाथ से छूटी गेंद सीम के सहारे ऑफ स्टंप के कुछ बाहर पड़ी। हर बार की तरह रक्षण की दीवार की मानिंद राहुल द्रविड़ का बल्ला उस अंदर आती गेंद को रोकने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन, गेंद पैड से टकराई। द्रविड़ ने एकबारगी गेंद को खोजने की कोशिश की और फिर तेजी से रन के लिए अपनी क्रीज से बाहर निकले। लेकिन, तीन कदम आगे जाते ही आस्ट्रेलियाई अपील के बीच अंपायर असद रउफ की उंगली हवा में उठ गई। द्रविड़ अपने घरेलू मैदान पर दूसरी हाफ सेंचुरी बनाकर आउट हो चुके थे। उनके विकेट को लेकर एक बहस छिड़ रही थी। शायद, द्रविड़ भी इस फैसले से कुछ दुखी थे। उन्हें भी शायद लगा होगा कि गेंद पैड पर लगने से पहले उनके बल्ले को छूती हुई निकली थी।
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम पर द्रविड़ पैवेलियन लौट रहे थे। टेस्ट मैच अभी जारी था। लेकिन, एक दिलचस्प मुकाबले का अंत हो चुका था। ये सिर्फ द्रविड़ का आउट होना नहीं था। ये मुकाबले के बीच जारी एक मुकाबले का खत्म होना था। आस्ट्रेलियाई टीम और द्रविड़ के बीच जारी मुकाबला।
दरअसल,51 रन की इस पारी के दौरान हर गुजरते लम्हे के साथ यह दिलचस्प जंग मजबूती ले रही थी। पोंटिंग ने कुछ असमान उछाल के इस विकेट पर द्रविड के खिलाफ बेहद सूझबूझ से क्षेत्ररक्षण सजाया। करीब 135-140 किलोमीटर की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहे ब्रेटली,शेन वाटसन और स्टुअर्ट क्लार्क के खिलाफ वो सिर्फ एक अकेली स्लिप मैथ्यू हेडन के सहारे द्रविड़ के विकेट तक पहुंचने में जुटे थे। अपने गेंदबाजों को इस हिदायत के साथ कि गेंद की दिशा को ऑफ स्टंप पर केंद्रित करें। साथ ही, शॉर्ट मिडऑन,शॉर्ट मिडविकेट और स्कायर लेग पर फील्डर तैनात कर वो द्रविड़ के ऑन साइड के स्ट्रोक्स को रोकने की कोशिश में थे। शुरुआती कुछ लम्हों को छोड़ दें तो द्रविड़ अपनी पहचान के मुताबिक हर गेंद पर उतनी ही एकाग्रता और सूझबूझ से पार पाने में जुटे थे। वो न सिर्फ गेंद को विकेट से दूर धकेलने में कामयाब हो रहे थे। मौका पड़ने पर हर रन की तलाश में भी दिखायी दे रहे थे। उनकी बल्लेबाजी क्रिकेट की किताब के उस पहली मूल पहलू से जुड़ी थी,जहां हर एक गेंद बीते कल में तब्दील होती है।अगली गेंद के लिए आप एक नयी शुरुआत करते हैं। यह चिन्नास्वामी स्टेडियम पर टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती का लम्हा था।
दरअसल,शनिवार को आस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग ने भारतीय पारी को कड़ी दर कड़ी निशाना बनाने की शुरुआत की। ये जानते हुए कि अगर जीतना है तो इसी धीमे विकेट पर भारत के 20 विकेट हासिल करने होंगे। इसी के मद्देनज़र हर बल्लेबाज के मुताबिक एक अलग व्यूह रचना के साथ शुरुआत की। मुकाबले के बीच एक नए मुकाबले के तहत हर गेंदबाज को खास हिदायत और एक तय लक्ष्य के साथ ज़िम्मेदारी सौंपी गई। इसी का नतीजा था कि ‘राउंड द विकेट’ गेंदबाजी करते हुए ब्रेटली के सामने गौतम गंभीर का बल्ला आखिरी क्षणों में चूक गया। वो एलबीडब्लू की एक बेहद मजबूत अपील से पार नहीं पा सके। सहवाग का विकेट करीब करीब मिशेल जॉनसन ने खरीद लिया। ऑफ स्टंप के बाहर जाती एक गेंद पर एक कैजुअल स्ट्रोक खेलते हुए वो पैवेलियन लौट गए।
ठीक इस मोड़ से पोंटिंग के सामने एक नया मुकाबला था। पहले से दबाव में चल रहे भारत के गोल्डन मिडिल ऑर्डर को सिर्फ दबाव और दबाव के बीच तोड़ने की कोशिश। इसी कड़ी में सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण को निशाना बनाया गया। एक गेंद पहले तक सचिन तेंदुलकर के बल्ले की बेहतरीन दिख रही टाइमिंग जॉनसन की धीमी गेंद पर चूक गई। पोंटिंग ने जैसे इसी एक चूक के लिए कवर प्वाइंट पर खासतौर से कैमरून ह्वाइट को तैनात किया था। लक्ष्मण भी जॉनसन की आखिरी क्षण में बाहर जाती एक खूबसूरत गेंद पर अपना विकेट बचा नहीं पाए। लेकिन, इन दिग्गजों के लौटने के बावजूद मुकाबलों के बीच मुकाबलों का सिलसिला जारी थी। द्रविड़ और गांगुली पोंटिंग की हर चाल का जीतोड़ जवाब देने में जुटे थे। द्रविड़ पोंटिंग की रणनीति से पार पाते-पाते पेवेलियन लौट गए। लेकिन, जाते-जाते ये बटन रिले रेस की तरह गांगुली को थमा गए। राउंड द विकेट गेंद फेंक रहे शेन वाटसन की शॉर्ट पिच गेंद को हेलमेट के वायजर से दूर धकेलते गांगुली के जीवट को आप महसूस कर सकते थे। 135 किलोमीटर की रफ्तार से आती स्टुअर्ट क्लार्क की गेंद पर फॉरवर्ड डिफेंस के लिए उनके कदम ठीक उसी तरह आगे बढ़ रहे थे,जैसे किसी स्पिनर की टर्न को खत्म करने की कोशिश कर रहे हों।
द्रविड़ से उलट अपने लिए सजाई गई तीन स्लिप के क्षेत्ररक्षण से पार पा रहे थे, साथ ही इसका फायदा उठाते हुए अपने ऑफ ड्राइव के सहारे गेंद को सीमा रेखा के बाहर भेजने में भी कोई कोताही नहीं बरत रहे थे। गांगुली 47 रन की इस जुझारु पारी में खुद को पूरी तरह मकाबले में झोंक चुके थे। टीम की जरुरत के मुताबिक विकेट पर मौजूद रहने की हर मुमकिन कोशिश को अंजाम देते हुए। ठीक ऐसी ही कोशिश ब्रेट ली और स्टुअर्ट क्लार्क के खिलाफ हरभजन सिंह के जवाबी स्ट्रोकों में पढ़ी जा सकती थी। हरभजन ने तो अपनी हाफ सेंचुरी ही क्लार्क के खिलाफ शानदार स्ट्रेट ड्राइव लगाकर पूरी की। आस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी पांचवी हाफ सेंचुरी। ये ऐलान करते हुए कि आस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्हें हारना पसंद नहीं।
लेकिन, इन्हीं निजी मुकाबलों की कड़ी में लक्ष्मण की तरह महेन्द्र सिंह धोनी भी चूक गए। इस टेस्ट में नाज़ुक मोड़ पर उनसे एक बड़ी पारी की दरकार थी। ठीक उसी तरह जैसे अब से करीब एक साल पहले लॉर्ड्स पर खेली थी। लेकिन,ये विकेट धोनी के स्ट्रोक प्ले के लिए कतई माकूल नहीं था। धोनी इस चुनौती से पार नहीं पा सके। बहरहाल, नतीजा कुछ भी हो, लेकिन मुकाबलों के बीच दिलचस्प मुकाबलों का ये सिलसिला टेस्ट क्रिकेट का एक आत्मसात करने वाला अनुभव था। बार बार ये संदेश देते हुए कि ट्वेंटी-20 क्रिकेट की इस रफ्तार में टेस्ट क्रिकेट का ठहराव भी आप पर हावी हो सकता है। आपकी यादों में ठहर सकता है। यही टेस्ट क्रिकेट है। यही इसकी खूबसूरती है। यही इसका रोमांच है। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी मे ये इस सिलसिले की शुरुआत है। ऐसे कई लम्हों से हम अभी और रुबरु होंगे। इसके लिए तैयार रहिए।
Sunday, October 12, 2008
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1 comment:
आपके ब्लॉग पर नियमित आता हूं ।
टिप्पणी दूं या ना दूं ।
आपका काम एकदम अलग तरह का है ।
लगातार पढ़ते रहने का इरादा है ।
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