क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। खूबसूरत अनिश्चितताओं का खेल। ये एक जुमला है, जो अकसर इस्तेमाल होता है। कहा जा जाए तो इस्तेमाल होते-होते घिस चुका है। लेकिन, बेंगलुरु में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच जारी पहले टेस्ट मैच के चौथे दिन के खेल के बाद मुझे भी इसका इस्तेमाल करना पड़ रहा है। मैं क्रिकेट की इन अनिश्चितताओं के बीच सिर्फ एक तय पहलू को स्थापित करने के मकसद से इस जुमले का इस्तेमाल करना चाहता हूं।
क्रिकेट में बल्लेबाज अपना विकेट कभी देना नहीं चाहता। क्रिकेट का यही एक सबसे तय पहलू है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। क्रिकेट इसी पहलू के इर्द-गिर्द रचा और गढ़ा गया है। चाहे आप मोहल्ले में क्रिकेट खेल रहे हों या फिर टेस्ट मैच में। ये पहलू अपनी जगह बरकरार रहता है। गेंदबाज बल्लेबाज की कमज़ोरियों के आसपास रणनीति रचता हुआ उसके विकेट तक पहुंचने की कोशिश करता है। उसके लिए इस राह को आसान करता है उसका कप्तान। खेल किसी भी मोड़ पर हो, बल्लेबाज का विकेट मुकाबले में आगे की राह तय करता है।
रविवार को बेंगलुरु के चेन्नास्वामी स्टेडियम में भारत के सामने भी ऐसी ही चुनौती थी। 70 रन की बढ़त के साथ अपनी दूसरी पारी का आगाज़ कर रहे आस्ट्रेलिया को काबू में करने के लिए ज़रुरी थे विकेट। चोट की वजह से मैदान से बाहर कप्तान अनिल कुंबले की गैरमौजूदगी में यह जिम्मा उठा रहे थे महेन्द्र सिंह धोनी। यह उस आस्ट्रेलियाई टीम को काबू में करने की चुनौती थी, जिसने टेस्ट क्रिकेट में वनडे की रफ्तार से रन जोड़ते हुए जीत के नए अध्याय लिखे हैं। यहां अगर आस्ट्रेलिया रफ्तार से रन जोड़ लेता तो इस धीमे और असमान उछाल के विकेट पर पांचवे दिन भारत के लिए चौथी पारी खेलना एक नामुमकिन चुनौती में तब्दील हो जाता।
मुकाबला इस नाज़ुक मोड़ पर शतंरज की बिसात की तरह खुला था। यहां धोनी की बढ़ाई हर चाल जानकारों की निगाहों में थी। लेकिन, मौकों को अपनी तरफ मोड़ने में माहिर धोनी यहां कतई नहीं चूके। ज़हीर खान ने जिस खूबसूरती से आस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग को शॉर्ट मिडविकेट पर लक्ष्मण के हाथों कैच कराया, ये ज़हीर की गेंदबाजी की क्लास के साथ-साथ धोनी की क्रिकेट सूझबूझ की झलक थी। कप्तान धोनी ने लक्ष्मण को खासतौर से वहां तैनात किया था। बल्लेबाज पोंटिंग को भी लक्ष्मण की मौजूदगी का अहसास था। लेकिन, सीम के साथ मिडिल-लेग स्टंप पर पिच हुई गेंद पर पोंटिंग अपने स्ट्रोक को लक्ष्मण की पहुंच से बाहर करने में नाकाम रहे। ये ज़ाहिर कर रहा था कि किस हद तक बल्लेबाज के जेहन में गेंदबाज की रणनीति को लेकर उधेड़बुन चल रही थी। बावजूद इसके, वो इस बिछाए जाल से बाहर नहीं आ सके।
ये कुछ हद तक पोंटिंग को ही दिया गया जवाब था। भारत की पहली पारी में सचिन तेंदुलकर का जॉनसन की गेंद पर कैमरोन व्हाइट के हाथों कैच होना पोंटिंग की रणनीतिक सूझबूझ का आइना था। खासतौर से पोंटिंग ने भी कैमरोन व्हाइट को उस जगह पर तैनात किया था। तेंदुलकर भी इससे वाकिफ थे, लेकिन वो भी इससे पार नहीं पा सके।
दरअसल, बल्लेबाज के विकेट तक पहुंचने के लिए आपको उसकी सोच से आगे जाना होता है। तेंदुलकर और पोंटिंग जैसे बल्लेबाज सामने हों तो ये चुनौती दोहरी हो जाती है। लेकिन, यहीं कप्तान की भूमिका शुरु होती है। बल्लेबाज मैदान पर सजाए क्षेत्ररक्षण के बीच अपने तमाम अनुभवों के बावजूद अगर इस सोच में डूब जाए कि गेंदबाज के तरकश से अब कौन सा तीर निकलेगा तो गेंदबाज आधी बाजी जीत चुका होता है। यह एक मनोवैज्ञानिक खेल है, जो मैदान पर आपके टेलेंट और स्किल के साथ जुड़कर आपको मंजिल तक पहुंचाता है।
धोनी ने रविवार को अपनी कुछ घंटे की कप्तानी में भारत को इसी मंजिल की ओर मोड़ने की कोशिश की। बल्लेबाज के मुताबिक आक्रामक क्षेत्ररक्षण जमाते हुए उन्होंने उसके लिए हर एक रन ही मुश्किल नहीं किया, बल्कि विकेट पर बने रहने भी दूभर कर दिया। हेडन जैसे आक्रामक बल्लेबाज और साइमन कैटिच एक-एक रन के लिए जूझते दिखे। दूसरी ओर, नए भरोसे के साथ गेंदबाज भी विकेट तक पहुंचने के लिए हर मुमकिन कोशिश में जुटे दिखाई दिए। हरभजन सिंह ने ‘राउंड द विकेट’ गेंदबाजी शुरु करते हुए लगातार आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को एक छोर से परेशानी में डाले रखा। हरभजन अपने 12 ओवर के पहले स्पेल में लगातार विकेट के करीब और करीब पहुंचते दिखाई दिए।
लेकिन, हरभजन को कामयाबी मिली दूसरे स्पेल में। माइकल हसी को हरभजन ने अपने उस दूसरा पर आउट किया, जिसे वो लगातार इस टेस्ट में तलाश रहे थे। ऑफ स्टंप के कुछ बाहर पड़ी गेंद को ऑफ स्पिन समझ हसी ने छोड़ने की कोशिश की, लेकिन यह हरभजन का दूसरा था, जो उनका ऑफ स्टंप ले उड़ा। एकबारगी कुछ देर के लिए 1983 के वर्ल्ड कप में बलविंदर सिंह संधू की गेंद को छोड़ते गॉर्डन ग्रीनीज की याद आ गई। इस विकेट से कुछ देर पहले एक छोर को संभाले खड़े साइमन कैटिच भी हरभजन की अतिरिक्त उछाल लिए गेंद पर चूक गए।
बहरहाल, धोनी की सोच से आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के विकेट तक पहुंचने के शुरु हुए सिलसिले ने चौथे दिन के बाद मुकाबले को एक बार फिर अनिश्चितता की ओर मोड़ दिया है। वही अनिश्चितता, जिसके जुमले से मैं बचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी खूबसूरती का कायल हूं। अब सोमवार को मुकाबला दोनों टीमों के लिए खुला है। सवाल है कि पोंटिंग किस लक्ष्य को आधार बनाकर भारत के सामने चुनौती पेश करते हैं। अपनी टीम में एक भी स्ट्राइक स्पिनर की गैरमौजूदगी में क्या वो माइकल क्लार्क के सहारे सिडनी टेस्ट की तरह जीत तक पहुंचने की आस संजोते हैं। क्या पोंटिंग पहली पारी तरह दूसरी पारी में भारतीय विकटों तक पहुंचने के लिए शतरंज की बिसात बिछाने का जोखिम उठाते हैं ? क्या भारत चुनौती मिलने पर सहवाग की एक आतिशी पारी के सहारे जीत के लिए आगे बढ़ने की कोशिश करता है ? क्या पिछले एक दशक से भारतीय क्रिकेट की धुरी रहा मिडिल ऑर्डर यहां जीत तक पहुंचाकर अपने को सवालों और बहस से बाहर लाने में कामयाब होता है ? ये तमाम सवाल हैं। अनिश्चितताओं के साये में।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment