साइमन कैटिच! नाम जुबां पर आते ही बायें हाथ के ठोस बल्लेबाज की छवि उभार लेती है। अपनी टीम के जरूरतों के मद्देनजर बल्ले से अपनी टीम को किनारे तक ले जाने की कोशिशों में जुटा एक भरोसेमंद बल्लेबाज। लेकिन, दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर उनके हाथ में बल्ला नहीं था। इसके बावजूद वे सुखिर्यों में थे। उनके आसपास बहस रची-बुनी जा रही थी।
पहली बार गौतम गंभीर से उनकी कहा-सुनी कैमरे की गिरफ्त में थी। नॉन-स्ट्राइकर एंड पर गंभीर से उलझते कैटिच को रोकने के लिए अंपायर बिली बॉडन को बीच-बचाव करना पड़ा। दूसरी बार चाइनामैन गेंदबाज की भूमिका में उतरे कैटिच की वीवीएस लक्ष्मण को परास्त करती गेंद सबकी निगाहों में ठहर गई थी।
पहली बहस को पेशेवर क्रिकेट के दबाव में आवेश के मद्देनजर महज एक संयोग कहा जा सकता है। इसे नजरंदाज कर आगे बढ़ा जा सकता था। ऐसा हुआ भी। मैच अपनी रफ्तार से आगे बढ़ा। लेकिन, दूसरी बहस अभी जारी है। पहले दिन का खेल खत्म होने के बाद ज्यादा और ज्यादा। टेलीविजन कमेंटेटर और पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान इयान चैपल के शब्दों में कैटिच की ये घूमती गेंद पोंटिंग के लिए एक बड़े खतरे का संदेश है।
इयान चैपल के मुताबिक, अगर एक धीमे विकेट पर पहले दिन कैटिच जैसे एक कामचलाऊ गेंदबाज अपनी गेंदों में घूमाव लाने में कामयाब है, तो भारतीय कप्तान अनिल कुंबले यहां क्या कर सकते हैं, इस पर सबकी निगाहें टिक जानी चाहिए। ये तो पोंटिंग की खुशकिस्मती कही जाएगी कि हरभजन सिंह चोट की वजह से इस मैच से बाहर हैं। सचमुच! अगर ये विकेट पहले दिन कैटिच की इस गेंद की तरह व्यवहार करने लगा तो कुंबले और उनके साथ अमित मिश्रा से निबटना बेहद मुश्किल होगा। वह भी उस कोटला पर, जहां कुंबले ने प्रति टेस्ट करीब-करीब नौ विकेट हासिल किए हैं। इतना ही नहीं, कुंबले ने यहां जो छह टेस्ट मैच खेले हैं, उसमें सभी में भारत ने जीत हासिल की है।
फिर कुंबले और मिश्रा की गेंदों के संभावित टर्न के साथ जुड़ा होगा रनों का एक विशाल पहाड़। रनों के इस पहाड़ के बीच मनोवैज्ञानिक दबाव बना कुंबले और मिश्रा, पोंटिंग एंड कंपनी के धैर्य, हौसले और कौशल का कड़ा इम्तहान लेंगे। और ये दबाव ऑस्ट्रेलिया की जीत की सहज सोच के ठीक उलट है।
लेकिन, इसके लिए जिम्मेदार कौन है, फिलहाल ये बहस का एक बड़ा मुद्दा है। इसका जवाब सीधे-सीधे पोंटिंग की रक्षात्मक कप्तानी पर जाकर ठहर रहा है। भारतीय बल्लेबाजों के बल्ले से बहते स्ट्रोक को थाम वे अपने जीत की राह तलाशने में पूरे दिन जुटे रहे। 2004 की सीरीज में मिली कामयाबी या बेंगलुरु टेस्ट के कुछ हिस्से में भारतीय बल्लेबाजों पर बनाई पकड़ के फार्मूले को ही पोंटिंग कोटला पर आगे बढ़ाते दिखे। बेंगलुरु में हालांकि सचिन तेंदुलकर से लेकर राहुल द्रविड़ के विकेट तक पहुंचने में उन्होंने कामयाबी पाई, लेकिन आक्रामक ऑस्ट्रलियाई सोच से हटकर अपनाए इस फार्मूले के नाकाम होने के बाद दूसरी योजना पोंटिंग के पास नहीं दिखी।
खासतौर से कोटला पर बुधवार को तेंदुलकर के खिलाफ सात-दो की व्यूह रचना के साथ वे उनके स्ट्रोक को थामने की कोशिश में थे। लेकिन, सीरीज में हर गुजरती पारी के साथ चौड़े होते तेंदुलकर के बल्ले को आप रक्षात्मक रणनीति से रोक नहीं सकते। इसी का नतीजा था कि ऑफ स्टंप के आसपास आती गेंदों को आखिरी वक्त पर वे ऑन साइड में मोड़ने में वे कोई मौका नहीं चूक रहे थे। स्टुअर्ट क्लार्क की तेज गेंदों के सामने विकेटकीपर हैडिन को ऊपर बुला कर पोंटिंग ने सचिन के इन आक्रामक तेवरों पर कुछ पकड़ जमाई, लेकिन गंभीर की सोच और इरादों के सामने पोंटिंग की ये योजना भी असफल हो गई।वाटसन की गेंद को क्रीज छोड़कर एक स्पिनर के समान लॉन्ग ऑन के ऊपर से छक्का लगाकर शतक पूरा करके गंभीर बराबर अपने इरादों को पुख्ता कर रहे थे।
पोंटिंग की इस रक्षात्मक सोच के बीच भारत पहले दिन ही करीब साढ़े तीन रन की औसत से तीन सौ के पास जा पहुंचा है। अगर भारत दूसरे दिन चायकाल तक बल्लेबाजी जारी रखने में कामयाब हो गया, तो पोंटिंग के लिए इस टेस्ट में वापसी या बचाव की राह गेंद दर गेंद मुश्किल होती जाएगी। अगर किसी तरह वे इसे ड्रॉ तक खींच कर ले भी गए, तो सीरीज में बराबरी के लिए नागपुर में आखिरी टेस्ट में हर हाल में जीत दर्ज करनी होगी। यानी हर हाल में जीत के दबाव में वे मैदान पर पहुंचेंगे।
कहा जा सकता है कि ये वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया की सहज सोच नहीं है। आप जब भी अपनी सहजता से हटते हैं तो आप एकाध बार मंजिल तक पहुंच सकते हैं, हर बार नहीं। सहजता से हटते हुए आपको हर बार उसके खतरों से सचेत रहना होता है। पोंटिंग, फिलहाल जीत की सहज ऑस्ट्रेलियाई सोच से हटने की वजह से सामने आए उसी उल्टे नतीजे से जूझ रहे हैं। इसलिए साइमन कैटिच की घूमती गेंद भारत को नहीं, ऑस्ट्रेलिया को आने वाली आने वाली चुनौतियों की आहट दे रही है।
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