उसे देखकर लग रहा था कि इस शख्स की ज़िंदगी 22 गज की स्टेज पर ही सिमटी है। तूफान की रफ्तार से करीब आती गेंद पर आखिरी निगाह डाल बल्ले को उसकी राह से अलग कर वो अपने धैर्य को परख रहा था। पूरी सोच और रणनीति के साथ गेंदबाज के हाथ से छूटी गेंद पर जवाबी स्ट्रोक्स के साथ वो अपने हौसलों को कसौटी पर कस रहा था। छह घंटे से ज्यादा वो लगातार इसी तरह इस स्टेज को एक रंगमंच में तब्दील कर उसमें अपनी कला के रंग भरता चला गया। इस कोशिश में न तो उसे थकान का अहसास हुआ, न ही कोई ऊब। वो बल्ले के जरिए इसमें अपनी ज़िंदगी की परिपूर्णता को तलाशता दिखाई दे रहा था।
ये थे माइकल एडवर्ड किलीन हसी। बेंगलुरु के चेन्नास्वामी स्टेडियम पर उनके बल्ले से उभार लेती शतकीय पारी भारत और आस्ट्रेलिया के बीच शुरु हुई इस सीरिज के पटल पर मजबूती से दर्ज हो गयी है। सीरिज क्या मोड़ लेगी, ये कहना अभी मुमकिन नहीं है, लेकिन हसी की इस पारी की गूंज अब पूरी सीरिज में सुनायी देगी। ये बार बार आस्ट्रेलियाई सोच को सामने लाएगी। ये अहसास कराते हुए कि आस्ट्रेलियाई टीम को खारिज करना मुमकिन नहीं है। वो कभी भी और कहीं से भी मुकाबले में वापस लौट सकती है।
आखिर, शुक्रवार सुबह चौथे ही ओवर में ईशांत शर्मा की गेंद पर शेन वाटसन पैवेलियन लौटे तो आस्ट्रेलिया की आधी पारी सिमट चुकी थी। महज 259 रन के स्कोर पर। मुकाबले के इस मोड़ से भारत अगर पकड़ जमा लेता तो आस्ट्रेलिया के लिए इस टेस्ट मे हालात मुश्किल हो जाते। कप्तान पोंटिंग के करियर का सबसे यादगार शतक और कैटिच की कोशिशें हाशिए पर छूट जातीं। लेकिन, इस नाज़ुक मोड़ पर किसी एक बल्लेबाज को एक छोर संभाल आस्ट्रेलिया को मुकाबले में वापस लाना था। एक यादगार पारी को शक्ल देनी थी।
अगर, विकेट पर माइकल हसी मौजूद हैं, तो इस काम को उनसे बेहतर कोई दूसरा शख्स अंजाम दे ही नहीं सकता। हसी ने भी अपनी टीम को निराश नहीं किया। आखिर उनकी टीम भी उन्हें ड्रेसिंग रुम से बाहर सिर्फ विकेट पर ही देखना चाहती है। और हसी ने अपनी आखिरी कोशिश तक उनकी उम्मीदों को टूटने नहीं दिया। एक रणनीति के तहत हसी ने इस मोड़ पर ईशांत और ज़हीर खान की गेंदों पर कुछ आक्रामक स्ट्रोक खेले। नतीजा सामने था। कुंबले ने फील्डिंग को छितरा दिया।
हसी यही चाहते थे। हसी ने इसके बाद अपने बल्ले से बड़े स्ट्रोक्स खेलने के बजाय सिंगल्स के जरिए लगातार अपनी स्ट्राइक बदलनी शुरु की। नतीजतन, इस बेजान विकेट पर पहले से ही परेशान दिख रहे हरभजन और कुंबले दूसरे दिन अपनी लय ही नहीं पकड़ पाए। कुंबले तेज़ और तेज़ गेंद फेंकते दिखायी दिए। हरभजन अपने दूसरे विकेट के लिए हर कोशिश करते दिखे। कभी 'राउंड द विकेट' तो कभी 'ओवर द विकेट।' लेकिन, श्रीलंकाई दौरे पर भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज रहे हरभजन शुक्रवार को विकेट तक पहुंचने में नाकाम रहे। इस कड़ी में हसी ने हैडिन और ब्रेट ली को भी विकेट पर टिकने का हौसला दिया। इसी का नतीजा था कि आखिरी पांच पुछल्ले बल्लेबाजों के साथ उन्होंने 171 रन जोड़ डाले।
दरअसल, अपनी 146 रन की इस बेजोड़ पारी में हसी ने बार बार यह ऐलान किया कि "मैं आपको अपना विकेट नहीं दे सकता। आपको मेरा विकेट लेना होगा।" यह एक ऐसे बल्लेबाज का ऐलान है, जो भारत की ज़मीन पर अपना पहला टेस्ट खेल रहा है। ये ऑस्ट्रेलियाई टीम को लेकर इस दौरे पर बनी अनुभवहीनता के मिथ का जवाब है। ये साबित करता हुआ कि आप आस्ट्रेलिया को यूं ही खारिज नहीं कर सकते। यही वजह है कि पोंटिंग के पैवेलियन लौटने के बावजूद हसी ने हिम्मत नहीं हारी। नयी गेंद के खिलाफ उनका हौसला नहीं डिगा। स्पिनर का सामना करते हुए उनके कदम नहीं डगमगाए।
हसी ने अपनी इस पारी से एक बार फिर उन आंकडों को जेहन में हावी कर दिया, जो हसी को सर डोनाल्ड ब्रैडमैन के करीब ले जाते हैं। सर ब्रैडमैन की 99.94 की औसत के सबसे करीब खड़े हैं माइकल हसी। इस पारी के बाद उनका औसत 70.60 है। अगर इन्हीं आंकडों को और खंगाला जाए तो ठीक हसी की तरह 26 टेस्ट मैच खेलने के बाद सर डोलान्ड ब्रैडमैन ने 89.50 की औसत से 13 शतक समेत 3224 रन बनाए थे। हसी अब तक नौ शतकों के साथ 2471 रन बना चुके हैं। हालांकि, ब्रैडमैन के शिखर से हसी के इन आंकडों को जोड़ना बेमानी हो सकता है। खासतौर से ये जानते हुए कि जिस दौर में सर ब्रैडमैन अपनी बल्लेबाजी को परवान चढ़ाया, तब विकेट कुदरत के हवाले थे। आज की तरह विकेट ढके नहीं जाते थे। इन दो तरह के विकेट पर बल्लेबाजी करना बिलकुल अलग है। लेकिन, ये दिलचस्प आंकडा हसी की टीम में अहमियत को तो उभारता ही है।
बहरहाल, हसी की इस पारी के बाद ये टेस्ट क्या करवट लेता है। ये सीरिज किस ओर मुड़ती है। इसका सबको इंतजार है। लेकिन,हसी की पारी ने पांच साल पहले ब्रिसबेन में खेली सौरव की शतकीय पारी की याद ताज़ा कर दी है। सौरव की उस पारी के बाद भारत स्टीव वॉ की टीम से बेशक सीरिज जीत नहीं पाया, लेकिन सौरव के बल्ले से यह सीधा संदेश दिया गया कि हम यहां हारने नहीं आए हैं। हम आखिरी दम तक लड़कर रहेंगे। ये तो सिडनी के आखिरी टेस्ट में स्टीव वॉ की 80 रन की जुझारु पारी थी, जिसने सीरिज को 1-1 की बराबरी पर थाम दिया। वरना, भारत पहली बार आस्ट्रेलियाई ज़मीन पर सीरिज जीतने में कामयाब हो जाता। माइकल हसी की इस पारी ने भी भारत की ओर एक चुनौती को उछाल दिया है। ऐलान करते हुए कि हमसे अगर जीतना है,तो लड़ना होगा। हसी की ये पारी यही संदेश बार बार दे रही है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment