योजओरटेगा-स्पेन के इस दार्शनिक का रिकी पोंटिग और अनिल कुंबले से कोई सीधा तार नहीं जुड़ता। ये तो ठीक वैसा ही है, जैसे फुटबॉल और बुल फाइटिंग के दीवाने स्पेन का क्रिकेट के जुनून में डूबे भारत से सीधा कोई तार पकडने की कोशिश करना। लेकिन, बुधवार को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में दाखिल होते हुए इन दोनों कप्तानों का योजाओरटेगा का एक कथन जरुर जिंदगी के फलसफे को नए सिरे से गढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है।
योजओरटेगा का कहना है- "जिंदगी आने वाले कल से लगातार एक मुठभेड़ की प्रक्रिया है। आने वाला इससे तय नहीं होता कि हमने अब तक क्या हासिल किया। हमारे पास क्या था, ये तय होता कि आप कितनी शिद्दत से उस आने वाले कल को हासिल करने की कोशिश करते हैं। उसके लिए जुटते हैं।" जिंदगी को लेकर योजओरटेगा के इस दर्शन में अकेले कप्तान रिकी पोंटिंग अपनी वर्ल्ड चैंपियन टीम और उसकी मौजूदा सोच को नए सिरे से टटोल सकते हैं। भारतीय कप्तान अनिल कुंबले इसमें अपने करियर की संध्या में झांक सकते हैं।
मोहाली से ठीक पहले रिकी की टीम टेस्ट के वर्ल्ड चैंपियन के पायदान पर खड़ी थी। जीत को एक सिलसिले की शक्ल देते हुए। जीत का आस्ट्रेलिया सोच का चेहरा बनकर सबके सामने आते हुए। इस हद तक कि बीते आठ साल में पहली बार भारत के दौरे पर आयी सबसे अनुभवहीन टीम ठहराने के बावजूद इसे खारिज नहीं किया जा रहा था। इसके सुनहरे कल के चलते आने वाले कल में भरोसा डिगा नहीं था। लेकिन, मोहाली में महेन्द्र सिंह धोनी की अगुवाई में उभरी नयी टीम इंडिया ने इस आस्ट्रेलिया टीम के सुनहरे कल के मिथक को तार तार कर डाला।
आस्ट्रेलिया इससे पहले भी हारा था। इंग्लैंड से एशेज के दौरान और पिछली ही सीरिज में भारत से अपने पसंदीदा पर्थ पर। लेकिन,इस शिकस्त के दौरान बराबर दिखा कि पोंटिंग की यह टीम आज से दूर बीते कल के सहारे मैदान पर मंजिल तलाशने की कोशिश में उतरी थी। इसी का नतीजा था कि वो मंजिल के करीब आने के बजाय लगातार दूर और दूर होती चली गई। भारत की जीत ने क्रिकेट की बाकी दुनिया को दो टूक ये संदेश पहुंचा दिया कि बीता कल, आज या आने वाले कल को तय नहीं कर सकता। हर पल में खुद को पूरी शिद्दत से झोंकते हुए ही कल के सिलसिले को बरकरार रखा जा सकता है।
पोंटिंग इसे जरुर महसूस कर सकते हैं। शायद इसलिए वो बेहिचक अपने सीनियर खिलाड़ियों को एक मिसाल बनकर सबके सामने आने का मंत्र सुझा रहे हैं। लेकिन अपने सुनहरे कल से हटकर आज में जीना इतना आसान भी नहीं है। वरना क्या वजह है कि इस सीरिज में दो टेस्ट की चार पारियों में महज 42 रन जोड़ पाए मैथ्यू हेडन भारतीय तेज गेंदबाजों की आक्रामकता और पैनी धार से जानबूझकर मुंह मोड़ रहे हैं।
ज़हीर के खिलाफ चार में से तीन बार अपना विकेट गंवा चुके हेडन का दावा कितना खोखला लगता है,जब वो कहते हैं कि जहीर पर वो काबू पा चुके हैं। इस सीरिज से पहले ही वो गिलक्रिस्ट के साथ जहीर पर जोरदार जवाबी हमलों की याद दिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन इस सीरिज में जहीर की गेंदों को नयी धार देती रिवर्स स्विंग का क्या तोड़ उनके पास है, इसका कोई ठोस जवाब हेडन तो क्या पूरे आस्ट्रेलियाई खेमे के पास नहीं है।
यहां जरुरी है पूरी शिद्दत के साथ जहीर की गेंदों के सच को कुबूलकर अपना रास्ता तलाशना, न कि बीते कल के सहारे खुद को भ्रम में रखना। आखिर ये भ्रम ही आने वाले कल को एक अंजानी मुठभेड़ में बदल सकता है।
रफ्तार के सौदागर ब्रेट ली के साथ भी पोंटिंग एंड कंपनी बीते कल से ही आज को संवारने में जुटी है। इस सीरिज में सबसे बड़े स्ट्राइक गेंदबाज के तौर पर भारत पहुंचे ब्रेटली अब तक महज चार विकेट ही हासिल कर पाए हैं। लेकिन, 350 से ज्यादा विकेट हासिल कर चुके गेंदबाज की भारतीय विकेटों पर कुंद पड़ती धार की वजह गेंदों में कम होती रफ्तार में देखने की कोशिश की जा रही है। माना जा रहा है कि वो अगर अपनी रफ्तार लौटा लाएं तो वर्ल्ड चैंपियन टीम को किनारे तक ले जाएंगे। लेकिन, ये सिर्फ ढलती रफ्तार का मसला नहीं हो सकता।
आस्ट्रेलियन अखबार में पैट्रिक क्वीक की इस बात पर गौर करना चाहिए कि टेस्ट में 57,863 गेंद फेंकने के बाद आप किसी गेंदबाज को रफ्तार वापस लाने का मंत्र नहीं थमा सकते। अपनी निजी जिंदगी में परेशानी से जूझ रहा ये गेंदबाज अपनी लय तलाश रहा है, न कि रफ्तार। रफ्तार उसकी लय में है। लय जो उसके आज से जुड़ी है न कि बीते कल से। इस आज में वो अगर शिद्दत से अपने डग भरता है तो गेंद विकेट तक का रास्ता तय कर ही लेगी।
भारतीय कप्तान अऩिल कुंबले भी इसी मोड़ पर खड़े है। लेकिन,ये विडंबना ही है कि अपना 132 वां टेस्ट खेले रहे कुंबले को न सिर्फ एक गेंदबाज के तौर पर टीम में अपनी जगह को सही साबित करना है बल्कि कप्तान के नाते अपनी ढलती पहचान को फिर गढ़ने की चुनौती भी उनके सामने है। फिलहाल इन दोनों ही मोर्चों पर सुनहरे कल और वहां हासिल कामयाबियां उनके कल वाले कल के लिए भरोसा जगा रही हैं।
गेंदबाज कुंबले के लिए टेस्ट में 616 विकेट के साथ साथ कोटला और कुंबले का बेजोड तालमेल मौजूद है। कप्तान कुंबले के लिए इसी सीरिज से पहले भारत को दिए कई सुखद लम्हे भी दस्तक दे रहे हैं। लेकिन,एक कड़वा सच ये भी है कि इस बीते कल से कहीं बहुत हटकर मौजूदा आज ही आने वाले कल को तय करेगा।
ये पहलू कुंबले ही नहीं पूरी भारतयी टीम पर लागू होगा। मोहाली की सनसनी खेज जीत को पीछे छोड़कर ही आप सीरिज में आगे बढ़ सकते हैं। भारत को मोहाली की जीत को महज एक जीत नहीं,एक सिलसिले की शक्ल देनी होगी। इसी सूरत में भारत शिखर से बेदलख होते आस्ट्रेलिया की जगह पर अपना दावा पेश कर सकता है। यहां पूर्व आस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ के भारत को लेकर दिए एक बयान पर भी गौर करना चाहिए । उन्होंने कहा है-मोहाली के बाद दबाव भारत पर ज्यादा है।
लेकिन, सिर्फ दबाव से उबरने के लिए स्टीव के ही आस्ट्रेलिया टीम को दिए सूत्र को थामना होगा। स्टीव का कहना है कि आस्ट्रेलिया को नतीजे से बेखबर होकर खेलना होगा। नतीजा आपको परेशान कर सकता है।
साफ है कि क्रिकेट के मूल मंत्र की ओर वो इशारा कर रहे हैं। क्रिकेट के उस मूल मंत्र की ओर, जहां हर एक गेंद के साथ कहानी का एक हिस्सा खत्म होता है। एक नयी गेदं के साथ दूसरे हिस्से की शुरुआत होती है। हाथ से छूटी गेंद बीता हुआ कल है तो अगली गेद आने वाला कल। आस्ट्रेलियाई कप्तान इसी सोच को आधार बनाकर मैदान में उतरने की रणनीति बना रहे हैं। उनका कहना है कि पहली ही गेंद से खुद को झोंकना होगा। हर गेंद से पूरी शिदद्त से निपटना होगा।
इन सबके बीच गावस्कर बार्डर ट्रॉफी एक बेहद नाजुक मोड़ पर खड़ी है। भारत को यहां मिलने वाली एक जीत उसे सीरिज में ही जीत नहीं दिलाएगी, ये पिछले चार टेस्ट में आस्ट्रेलिया के ऊपर तीसरी जीत होगी। यानी आस्ट्रेलिया को बादशाहत को तार तार करती हुई जीत। लेकिन यहीं पोंटिंग की जीत किसी भी मोड़ से वापसी करने की आस्ट्रेलियाई सोच को फिर गढ़ सकती है। लेकिन,इन दोनों के लिए जरुरी है तो आज न कि बीता हुआ कल। यानी चुनौती आज की है, कल की नहीं।
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