Sunday, February 8, 2009

खेल के हर लम्हे को भरपूर जीती धोनी की टीम इंडिया

ये सचिन तेंदुलकर का लम्हा था। वो इस डूबकर जी रहे थे। अजंथा मेंडिस ने युवराज सिंह की गेंद को कवर में पुश किया। तेंदुलकर ने पूरी फुर्ती से इस पर कब्जा जमाया। एक ही एक्शन में नॉन स्ट्राइकर एंड पर मौजूद युवराज की ओर सटीक थ्रो किया। जब तक दिलहारा फर्नान्डो बीच विकेट से वापस अपनी क्रीज में पहुंचने की कोशिश करते, युवराज उनकी गिल्लियां बिखेर चुके थे। हालांकि, अंपायर ने हवा में बॉक्स बनाते हुए तीसरे अंपायर की तरफ अंतिम फैसला उछाल दिया था। लेकिन खुशी में डुबे तेंदुलकर को देख कोई भी महसूस कर सकता था कि भारत श्रीलंका का ये आखिरी विकेट,तीसरा वनडे और ये सीरिज जीत चुका है। तेंदुलकर इसी लम्हे को जी रहे थे। आखिर,इस सीरिज में तेंदुलकर के हाथ यही एक लम्हा लगा था। अपने बल्ले से वो लगातार गेंदबाज के बजाय अंपायर का शिकार बनते हुए टीम की जीत में कोई योगदान नहीं कर सके थे। यहां सिर्फ ४२ वें ओवर में खत्म होते मैच में तेंदुलकर को ये मौका मिला और उन्होंने उसमें कोई चूक नहीं की।

लेकिन,बात सिर्फ सचिन तेंदुलकर की नहीं है। बात इस आखिरी थ्रो की भी नहीं है,जिसने सीरिज में जीत की मुहर लगाई। दरअसल,बात उन मौकों की है,जहां महेन्द्र सिंह धोनी की इस टीम इंडिया का कोई भी खिलाड़ी चूकना नहीं चाहता। वो जानता है कि उसके हासिल किए लम्हे में वही अकेला जश्न में नहीं डूबेगा, पूरी टीम उसके साथ इस पल को जीएगी। इस हद तक कि सीमा रेखा के बाहर ड्रेसिंग रुम में भी उसकी गूंज सुनायी देगी।

दरअसल, महेन्द्र सिंह धोनी की ये टीम इंडिया मैदान पर बिताए हर लम्हे को भरपूर जी रही है। खेल के हर पहलू में। बिना इस बात की परवाह किए कि ये पल किसने रचा,और इस पल का नायक कौन है। यही वजह है कि तीसरे वनडे में बेहतरीन शतक बनाने के बाद अपने "मैन ऑफ द मैच' अवॉर्ड को युवराज अपने साथी वीरेन्द्र सहवाग के साथ साझा करना चाहते हैं। यही वजह है कि तेंदुलकर बल्ले से अपनी नाकामी को पीछे छोड़ सहवाग और युवराज के हर स्ट्रोक पर आनंद में डूब जाते हैं। यही वजह है कि युवराज के बल्ले से बहते हुए स्ट्रोक्स में आप तेंदुलकर को गलत आउट दिए जाने की नाराजगी को पढ़ सकते हैं। यही वजह है कि मैच के आखिरी तनाव भरे लम्हों में अपने रनअप की ओर लौटते ईशांत शर्मा को हौसला देते जहीर खान बार बार दिखायी देते हैं।

ये कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का दिया मंत्र है। आस्ट्रेलियाई सीरिज में धोनी ने लाजवाब पारियां खेलने के दौरान टीम की कामयाबी के बारे में बेहद सहजता से कहा था-"मेरी हाफ सेंचुरी का मज़ा तभी है,जब मेरा कोई साथी मेरी इस कोशिश पर उतना ही आनंद महसूस करे। इस टीम का हर खिलाड़ी एक दूसरे की कोशिशों में, एक दूसरे की मुश्किलों में साथ खड़ा है।"

उधर, इस टीम का हर खिलाड़ी अपने कप्तान धोनी की कसौटी पर खरा उतरना चाहता है। घरेलू सीजन में नाकामी के बावजूद प्रवीण कुमार को इस टीम में जगह मिलती है। श्रीलंका के खिलाफ पिछली वनडे सीरिज में डे नाइट मुकाबलों में वो अपनी लय खो बैठते हैं। उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाता है। लेकिन हाथ में आए इस मौके पर वो एक बार फिर अपनी पहचान के मुताबिक टीम को शुरुआती कामयाबी दिलाते हैं। पिछली ही सीरिज में मेंडिस के खिलाफ अपने स्ट्रोक्स भूल चुके युवराज सिंह इस बार उसकी भरपाई करने का फैसला कर विकेट पर पहुंचते हैं,और टीम को जीत की दहलीज तक खींच लाते हैं। फिर,दूसरे वनडे मुकाबले की तरह नाजुक मौकों पर अगर कोई गेंदबाज चूक करता है,तो धोनी अपने सहज अंदाज में उसे टोकने में कोई कोताही नहीं बरतते। धोनी की इस टीम में कोई सचिन तेंदुलकर,कोई जहीर खान और कोई वीरेन्द्र सहवाग नहीं है। इस टीम में शख्सियत से पहले हर एक सिर्फ खिलाड़ी है। खिलाड़ियों की ये यूनिट टीम को एक विनिंग कॉबिनेशन में तब्दील करती है।

साथ ही,कप्तान धोनी नाजुक मौकों पर आगे बढ़कर चुनौती को खुद हाथ में लेते हैं। विकेट के पीछे या विकेट के सामने। धोनी ने अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी के अंदाज से इतर एक ऐसे ठोस बल्लेबाज की शक्ल ले ली है,जो मैच की जरुरत के मुताबिक अपना गेयर बदल देता है। न सिर्फ वनडे मुकाबलों के दौरान बल्कि टेस्ट और ट्वेंटी-२० में भी धोनी मैच के मोड़ के मुताबिक अपने बल्ले के मुंह को खोलते या बंद कर देते हैं। यही वजह है कि आंकडों के आइने में कप्तान धोनी का औसत वनडे में ५५ को पार कर रहा है, जबकि उनका करियर औसत करीब ४७ है।

इन सबके बीच कप्तान धोनी की अगुआई में क्रिकेट चहेते खेल की उस खूबसूरती से रुबरु हो रहे हैं, जहां खिलाड़ी हार और जीत से बेपरवाह अपने खेल को नयी ऊंचाइयां देने में जुटा है। इसी सोच ने उसे जीत की ऐसी राह पर डाल दिया है,जहां हर पल वो एक नए शिखर की ओर मुखातिब है। यहां वो बीते कल से बेखबर आने वाले कल को भूलकर सिर्फ और सिर्फ आज में ही अपना सब कुछ झोंक देना चाहते हैं। ठीक इसी बिन्दु पर धोनी की ये टीम सुनील गावस्कर से लेकर कपिल देव और सौरव गांगुली से लेकर राहुल द्रविड़ की टीमों से अलग हो जाती है। बेशक,इस टीम ने लगातार नौ एकदिवसीय मैचों में जीत का रिकॉर्ड बनाया है,लेकिन ये टीम रिकॉर्ड के लिए नहीं खेल रही। ये अलग बात है कि उनकी इसी सोच से टीम कामयाबी के उस पायदान की ओर बढ़ रही है,जहां वनडे इतिहास में क्लाइव लॉयड, रिकी पोंटिंग, हैंसी क्रोनिए, विव रिचर्ड्स और स्टीव वॉ जैसे कप्तानों की टीमें खड़ी रही हैं। अपनी कप्तानी में धोनी ने ६० फीसदी से ज्यादा मुकाबले जीतते हुए भारतीय क्रिकेट में एक अलग मुकाम बनाया है। क्लाइव लॉयड ७६ फीसदी जीत के साथ सबसे ऊपर खड़े हैं।


फिलहाल,धोनी की टीम जीत का सिलसिला जारी रखे हैं। इस कदर कि अब टीम इंडिया विश्व में नंबर एक के पायदान के बिलकुल करीब है। ये एक ऐसा अहसास है,जिससे भारतीय टीम कभी रुबरु नहीं हुई। बेशक,भारत ने १९८३ में वर्ल्ड कप जीता,और १९८५ में वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ क्रिकेट। लेकिन,धोनी की अगुआई में अब हम यह सपना देख रहे हैं। यहां अमेरिकी कवि और लेखक रॉबर्ट मोंटेगरी का कथन दिलचस्प है "अगर आप कामयाब हो रहे हैं तो आपकी तारीफों के पुल बंधते हैं। आप भी इसमें बह जाते हैं। मेरा मानना है कि आप इसका भरपूर आनंद लें,लेकिन इस पर कभी भरोसा न करें।" धोनी की टीम जीत के इन लम्हों का भरपूर आनंद ले रही हैं। इन्हें भरपूर जी रही है। लेकिन,मुझे यकीं है कि वो भी इस पर भरोसा नहीं कर रही। शायद,यही उसकी जीत में जुड़ती हर नयी कड़ी का पहला और आखिरी सूत्र है।