क्रिकेट का शिखर। जादुई अंक 99.94। अगर आप क्रिकेट से जुड़े हैं तो आप बता देंगे कि इस अंक के मायने क्या हैं। ये सर डोनाल्ड ब्रेडमैन की बल्लेबाजी औसत है। ये किसी भी बल्लेबाज के लिए उसकी सीमाओं और सोच से आगे का शिखर है। ख्वाब में भी बल्लेबाज शायद इस शिखर को छूने की कल्पना नहीं करता। ये इतिहास में ठहर गया शिखर है। लेकिन, इस शिखर के करीब पहुचना हर कोई चाहता है। जो इसके जितना करीब पहुंचता है, क्रिकेट के मंच पर उसका कद उतना ही उभार ले लेता है। इस वक्त इसके सबसे करीब खड़े हैं सर डॉन के ही देश के माइकल हसी। 25 टेस्ट खेल चुके 34 साल के हसी 68.38 की औसत से करीब ढाई हजार टेस्ट बना चुके हैं। ये जरूर है कि टेस्ट खेलने के साथ-साथ इस शिखर और उनके बीच फासला बढ़ रहा है। लेकिन, अभी आंकड़ों में मौजूदा क्रिकेट में सर ब्रेडमेन के सबसे करीब हैं माइकल हसी।
लेकिन, सर डोनाल्ड ब्रेडमैन की शख्सियत सिर्फ इन आंकड़ों में नहीं सिमटी। वो काल, समय और समाज से आगे निकल चुके सर डोनाल्ड ब्रेडमैन हैं। ये संयोग ही है कि इसी मौजूदा क्रिकेट में एक शख्सियत ब्रेडमैन के बराबर आ खड़ी होती है- सचिन रमेश तेंदुलकर। ब्रेडमैन से औसत में कहीं आधे पर ठहरे होने के बावजूद वो मौजूदा क्रिकेट पर ही पूरी तरह हावी नहीं है, वो भी काल और समय से होड़ लेती, लगातार मजबूत और गढ़ती हुई शख्सियत हैं। सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं, एक अरब उम्मीदों का भार ढोते मौजूदा क्रिकेट के सबसे बड़े महानायक सचिन तेंदुलकर।
हसी अपने खेल में परिपूर्णता की तलाश करते दिखाई देते हैं। अपने में ही डूबे हसी आभास कराते हैं जैसे कोई बल्लेबाज बेहतर, और बेहतर होने की कोशिश में जुटा है। इस हद तक कि ना तो कभी मुकाबले में थकान उस पर झलकती है, ना ही कभी मुकाबले से पहले की तैयारी में। यह जुनून ही है कि ऑस्ट्रेलिया 'ए' टीम में जगह बनाने के बाद वो अपने कोच इयन केविन से छह घंटे के नेट्स का आग्रह करते हैं। इन छह घंटों में खाने और आराम का वक्त शुमार नहीं है। नतीजा, केविन थकान से चूर होकर टूट जाते हें, लेकिन हसी नहीं। हसी का अपने पर भरोसा बेमिसाल है। कभी-कभार अपने इस भरोसे पर संशय उभार ले लेता है, लेकिन अगर दिक्कत हो तो रास्ता तलाशने में हसी की फितरत है। इसीलिए, तेज गेंदबाजी से मनावैज्ञानिक तौर पर पार पाने के लिए स्टीव वॉ से सलाह लेने में एक क्षण नहीं लगाते। ये हैं अपने खेल में जुनून की हद तक परिपूर्णता तलाशते माइकल हसी।
सचिन तेंदुलकर परिपूर्णता से आगे निकल चुके हैं। वो खुद अपने शिखर तय करते हैं और फिर उन्हें देखते ही देखते हासिल कर डालते हैं। उनके लिए ये सिर्फ एक नई मंजिल तक पहुचना होता है, लेकिन उनके चाहने वालों के लिए ये एक किंवदंती में तब्दील हो जाता है। ये उन्हें क्रिकेट के दायरे से बाहर ले जाता है। उन्हें बास्केटबॉल कोर्ट पर छह बार एनबीए चेंपियन रहे माइकल जॉर्डन, फार्मूला वन में सात बार के वर्ल्ड चैंपियन माइकल शुमाकर, टेनिस कोर्ट पर 14 ग्रैंड स्लैम जीत चुके पीट संप्रास या 237 हफ्तों तक लगातार नंबर एक रहे रोजर फेडरर, पोल वॉल्ट में 13 बार अपना ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने वाले सर्गेई बुबका और गोल्फ कोर्स पर 14 मेजर टाइटल जीतने वाले टाइगर वुड्स के बराबर ला खड़ा करते हैं। किसी को एकबारगी महसूस हो सकता है कि क्या ये लेजेंड रोज दर रोज एक ही कामयाबी दोहराते हुए उब नहीं जाते ? लेकिन माइकल जॉर्डन के शिकागो बुल्स में कोच रहे फिल जैक्सन की बात पर गौर कीजिए। 'वो उब सकते हैं, अगर एक ही मंजिल को साल दर साल हासिल करें। अपने मोटिवेशन को बनाए रखने के लिए इन्हें साल दर साल नए शिखर सामने रखने जरूरी हैं।' यही इन लेजेंड की खूबी है। यही इनकी ताकत है। इसी तरह खुद ही अपने शिखर तय कर रहे हैं और उन तक पहुंच रहे हैं सचिन तेंदुलकर।
हसी अपने सफर में कब मौका मिलेगा, इससे बेपरवाह रहे हैं। लेकिन मौका हाथ में आ गया तो, पीछा मुड़कर नहीं देखा। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 15000 रन बनाने के बाद 30 साल की उम्र में टेस्ट टीम में जगह बनाते हैं। ये उम्र का वह पड़ाव है, जहां पहुंचते-पहुंचते तेंदुलकर एक लेजेंड में तब्दील हो चुके थे। लेकिन, ये धैर्य और सोच ही पहचान है माइकल हसी की।
तेंदुलकर भी बेपरवाह हैं आलोचनाओं से, अपने पर उठते सवालों से। हर सवाल का जवाब उनके बल्ले से निकलता है। पिछली ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर उन्होंने चोट से उबरने के बाद टीम में वापसी की। जवाब के तौर चार टेस्ट की सीरीज में जोड़े 70 की औसत से करीब पांच सौ रन। इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया पर पहली बार दर्ज ट्राइंग्यूलर सीरीज जीत में फाइनल में मैन ऑफ द मैच बने सचिन तेंदुलकर। 18 साल से लगातार सिर्फ और सिर्फ बल्ले से हर सवाल का जवाब दे रहे हैं सचिन तेंदुलकर।
माइकल हसी खुलकर चुनौती स्वीकारते हैं। ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी में एक छोर को संभालने में हसी का कोई जवाब नहीं। सिडनी में दूसरी पारी में नाबाद 145 रन हों या फिर इसी दौरे में बोर्ड प्रेसीडेंट इलेवन के खिलाफ खेली गई शतकीय पारी। आखिरी विकेट के लिए 40 ओवर तक स्टूअर्ट क्लार्क के साथ ना सिर्फ जमे रहे, टीम को भी फॉलोऑन के पार पहुंचाया। हसी टेस्ट क्रिकेट के माइकल बेवन हैं, ठीक उन्हीं की तरह पूरी टीम को मंजिल तक पहुंचाते हसी।
सचिन तेंदुलकर चुनौतियों का आंख में आंख डालकर सामना ही नहीं करते, वो जो सर्वश्रेष्ठ है, उसको अपने बल्ले से जवाब देने में यकीन रखते हैं। ऑस्ट्रेलिया दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है, तो तेंदुलकर ने उन्हीं के खिलाफ अपने खेल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनका औसत (56 ) उनके करिअर औसत (54) से बेहतर होना इसे पुख्ता करता है। शेन वार्न दुनिया के सबसे बड़े स्पिनर हैं तो सचिन ने उन्हें ना सिर्फ अपने विकेट से दूर रखा, अपने काउंटर अटैक से उन्हें हाशिए पर भी धकेल दिया। 18 साल की उम्र में 1991 में सिडनी और पर्थ पर खेली बेमिसाल शतकीय पारियों से लेकर आज तक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इस सिलसिले को बनाए हुए हैं सचिन तेंदुलकर ।
क्रिकेट को बाकी खेलों से आगे ठहराते हुए कहा गया है- ये क्रिकेट की ही खबसूरती है कि एक बललेबाज अलग-अलग स्तर पर जंग लड़ता है, कभी गेंदबाज से, कभी मैच की स्थितियों से, कभी वक्त से। इन्हीं के बीच वो अपने खेल को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है। माइकल हसी और सचिन भी इस सीरीज में इसी कोशिशों के साथ मैदान पर उतर रहे हैं। दोनों की कोशिशें अपनी-अपनी टीमों के लिए निजी कोशिशें होगी। लेकिन, दोनों ही अपनी टीमों के एक साझा लक्ष्य को लेकर इस सीरीज में आगे बढ़ेंगे।
भारतीय टीम की धुरी बने सचिन तेंदुलकर ग्रीक कथाओं के नायक एटलस की याद दिलाते हैं। अपने कंधे पर ग्लोब यानी दुनिया को उठाए एटलस। पिछले दो दशक में सचिन तेंदुलकर ने भी अपने बल्ले के सहारे भारतीय टीम का भार इसी तरह उठाया हुआ है। बीते कुछ सालों में राहुल द्रविड़ ने जरूर उनके भार को कम किया है। माइकल हसी को ऑस्ट्रेलियाई टीम का भार इस तरह उठाने के लिए अभी तैयार होना है। हो सकता है ये सीरीज इसकी शुरुआत हो। फिलहाल माइकल हसी से कहीं बहुत आगे खड़े हैं सचिन तेंदुलकर।
Saturday, October 11, 2008
सचिन तेंदुलकर, माइकल हसी और यह सीरीज
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1 comment:
बहुत शानदार विश्लेषण. बहुत सुंदर लेख है.
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