Wednesday, September 3, 2008

झारखंड की तस्वीर में महेन्द्र सिंह धोनी

भारतीय राजनीति में अवसरवादिता का प्रतीक बनता झारखंड। नक्सली हिंसा से जूझता झारखंड। पचास फीसदी से ज्यादा गांवों में रोशनी की पहली किरण का इंतजार करता झारखंड। एक चौथाई गांव में सड़क पहुंचने की बाट जोहता झारखंड। आदिवासी अस्मिता की पहचान के साथ देश के नक्शे पर सिर्फ आठ साल पहले उभरे इस 28वें राज्य की ये कुछ छवियां हैं। ये छवियां इसके टीस और दर्द भरे चेहरे को देश के सामने लाती हैं।

एक झारखंड और है। बाकी देश से लगभग अंजान। इतिहास के सुनहरे पन्नों में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से 100 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का ऐलान करते बिरसा मुंडा का झारखंड। राजा जयपाल सिंह की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम के ओलंपिक में सुनहरे सफर का आगाज़ करता झारखंड। हरे-भरे जंगलों के बीच इंसानी पहुंच से दूर खूबसूरत झरनों और दिल को छू लेने वाले नज़ारों का झारखंड।

करीब ढाई करोड़ बाशिंदों का यह राज्य दर्द और सुकून के बीच आगे बढ़ता रहा है। लेकिन, अब उसकी मनोस्थिति के दो छोरों को पाटने का जरिया मिल गया है-माही! भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी। एक नाम,जिसका अहसास न सिर्फ झारखंड को सुकून देता है बल्कि ये नाम बाकी देश में झारखंड की पहचान में भी तब्दील होता दिखता है।

यही वजह है कि झारखंड में हर कोई धोनी के करीब पहुंचना चाहता है। सुरक्षा की दीवार के पार खड़े धोनी की एक झलक प्रशंसकों के लिए एक नयी कहानी में ढल जाती है। धोनी को लेकर ये जुनून महज झारखंड की सरहदों में ही नहीं सिमटा। हसीना नसरीन धोनी को छू लेने भर के इरादे से 250 किलोमीटर का फासला तय कर डालती है। एक नवयुवती अचानक ईडन के गेट पर उनसे लिपटने की कोशिश करती है। यह एक ठहरी तस्वीर-देश के टेलीविजन चैनलों पर पूरे दिन दिखाने के मसाले में बदल जाती है।

धोनी से जुड़ती इन कहानियों में जुनून और दीवानगी अपनी हदें पार करते दिखायी पड़ते हैं। ये इशारा करते हुए कि धोनी क्रिकेट की सीमारेखा के बाहर इस देश के जेहन में किस हद तक दर्ज हो गए हैं। सचिन तेंदुलकर और शाहरुख खान के देश में ये जुनून आपको महेन्द्र सिंह धोनी होने के मतलब से रुबरु कराता है। दो दशक पहले तक आप सोच नहीं सकते थे कि रांची जैसे शहर या झारखंड से कोई शख्स आपको इस कदर जुनून में बहा ले जाएगा। ये अब देश में हाशिए पर छूटे हिस्सों की नुमाइंदगी करता चेहरा है। देश की एक नयी पहचान है।

धोनी के इस जादू की शुरुआत उसके बल्ले से निकली दो बड़ी पारियों से जरुर होती है। विशाखापट्ट्नम में 123 गेंदों पर 148 रनों की तूफानी पारी से,वो भी पाकिस्तान के खिलाफ । ऐसी पारी,जिसका कोई भी भारतीय क्रिकेटर ताउम्र इंतजार करता है। इसके बाद जयपुर में 145 गेंदों में 183 रनों की ताबड़तोड़ पारी। 15 चौके और 10 छक्कों के साथ गिलक्रिस्ट के रिकॉर्ड से आगे ले जाती पारी। लेकिन,ये सिर्फ धोनी का आगाज था,अंजाम नहीं। इसलिए पिछले दो साल के दौरान वो लगातार अपनी भूमिका को बदलते रहे हैं। अपनी नयी पहचान को गढ़ते रहे हैं। अब, उनसे ऐसी तूफानी पारी की उम्मीद नहीं की जाती,जो सिर्फ दस मैचों में दो बार आपको जीत तक पहुंचाए। आज धोनी से 10 मैचों में 8 बार जीत की आस लगायी जाती है।लेकिन,उनकी आतिशी बल्लेबाजी से नहीं बल्कि एक छोर को संभाले धोनी से। कप्तान के तौर पर मैच के हर मोड़ को अपनी ओर करते धोनी से। चाहे वो विकेट के पीछे हों या विकेट के सामने। इसी के चलते भारत ने रिकी पोटिंग की वर्ल्ड चैंपियन टीम को ट्राइंगुलर सीरिज में शिकस्त दी तो हाल ही में श्रीलंका को उसी के घर में हराकर एक नया इतिहास रचा। कप्तान के तौर पर धोनी के बल्ले से अब वनडे में करीब 55 के औसत से रन निकल रहे हैं। ये उनकी करियर औसत 47 से कहीं बहुत आगे है। जाहिर है कि धोनी अपने विकेट की कीमत को बखूबी समझते हैं। लेकिन, धोनी महज बल्ले से ही टीम को इस नयी राह पर नहीं डाल रहे। नौजवान खिलाड़ियों के साथ साथ टीम में सीनियर्स को भी एक विनिंग कॉम्बिनेश में तब्दील करना धोनी को भारतीय कप्तानों में एक अलग पायदान पर खड़ा कर रहा है। टीम में सचिन तेंदुलकर से लेकर वीरेन्द्र सहवाग, हरभजन सिंह से लेकर जहीर खान और युवराज तक- सभी को उनके सर्वश्रेष्ठ खेल की ओर मोड़ना कप्तान धोनी को एक अलग पहचान दिला रहा है।

इस हद तक कि भारतीय टीम के मौजूदा कोच गैरी कस्टर्न को यह कहने मे कोई परहेज नहीं है कि धोनी अब वनडे ही नहीं,टेस्ट की कप्तानी के लिए भी तैयार हो गए हैं। दरअसल, धोनी की ये कामयाबी सीधे सीधे उनके खुद में भरोसे से जुड़ी नज़र आती है। आखिर,भारतीय टेस्ट टीम से आराम की बात कर टीम से बाहर बैठने का जोखिम कौन उठा सकता है। क्रिकेट के इस सबसे पेशेवर दौर में गावस्कर भी उनके इस फैसले के कायल हो गए हैं। लेकिन,धोनी ने श्रीलंका में टेस्ट सीरिज से खुद को अलग रखने का जीवट दिखाया।फिर, कामयाबी हासिल करते ही जश्न के मौके पर अपने साथियों के लिए मंच छोड़ते धोनी में एक नया ही आत्मविश्वास झलकता है। ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप या आस्ट्रेलिया के खिलाफ ट्राइंगुलर सीरिज में जीत या अभी श्रीलंका के खिलाफ मिली कामयाबी-धोनी शिखर पर जश्न के लिए अपने साथियों को हमेशा आगे करते दिखायी देते हैं।

फिर, हार में भी धोनी लड़खड़ाते नहीं। आईपीएल के फाइनल की आखिरी गेंद पर पार्थिव पटेल के हाथ से गेंद छिटकती है। राजस्थान रॉयल्स आईपीएल चैंपियन बनती है। लेकिन,अगले ही क्षण हार को पीछे छोड़कर चेन्नई सुपर किंग्स के अपने साथियों के साथ एक घेरे में खड़े होकर उनके कंधों को थपथपाते धोनी को कौन भुला सकता है।

दरअसल,धोनी हार और जीत से आगे निकल खुद में एक बेमिसाल भरोसा जगाते हैं। भरोसा,जो एक जिद में तब्दील हो रहा है। ऐसी जिद, जो उन्हें क्रिकेट के दायरे से बाहर ले जा चुकी है।शायद यही वजह है कि क्रिकेट के मैदान पर धोनी भरोसे से लबालब दिखते हैं,तो विज्ञापन के विकेट पर बॉलीवुड के शहंशाह शाहरुख के सामने भी उनके कदम नहीं लड़खड़ाते। आईपीएल में छह करोड़ की कीमत पाने वाले धोनी क्रिकेट और बॉलीवुड को एक साथ चुनौती देते ब्रांड की शक्ल ले चुके हैं।फिर,ये भी धोनी की ही जिद है-उस झारखंड से जुड़े रहने की,जिसने उनके ख्वाबों को जमी दी। मूल रुप से उत्तराखंड से कभी झारखंड में आकर बसे धोनी इस जगह से बाहर अपनी पहचान तलाशना भी नहीं चाहते। इसलिए,धोनी के आदिवासी न होते हुए भी कभी आदिवासी अस्मिता पर शक्ल लेने वाला झारखंड उन्हीं के जरिए बाकी देश में अपनी पहचान तलाशता दिखने लगा है। ये महेन्द्र सिंह धोनी की जीत है। इन सबसे आगे क्रिकेट की जीत है।

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