Saturday, September 6, 2008

किस मुकम्मल मंज़िल की तलाश में हैं साइमंड्स !

उनके बल्ले से निकलता हर स्ट्रोक, हाथ से छूटती हर गेंद, मैदान में पूरी जान जोखिम में डाल गेंद को थामने की कोशिश-इस शख्स के हाव भाव में क्रिकेट का जुनून परवान चढ़ता दिखता है। लेकिन, इस जुनून से भी आगे एक अधूरी तलाश की आहट भी महसूस होती है। अपनी पहचान, अपनी जड़ों, अपनी मंज़िल को छूभर लेने की आहट। आस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर एंड्र्यू साइमंडस की मैदान पर मौजूदगी के दौरान आप भी इस आहट से रुबरु होते

आखिर क्या वजह हो सकती है कि 13 साल पहले साइमंड्स के बल्ले की गूंज इंग्लैंड काउंटी के दायरे से बाहर निकलकर पूरी दुनिया में महसूस की जाती है। इस हद तक कि उन्हें नासिर की कप्तानी में पाकिस्तान जाने वाली इंग्लैंड 'ए' टीम में शामिल किया जाता है। लेकिन, साइमंड्स इंकार कर देते हैं। वो अपने जन्मस्थल इंग्लैंड के लिए नहीं, आस्ट्रेलिया के लिए खेलना चाहते हैं। अगर वो चाहते तो इन दोनों से हटकर जन्म देने वाले कैरेबियन मां-बाप के चलते वेस्टइंडीज के लिए भी खेल सकते थे। लेकिन,ये दुविधा और ये तलाश ही साइमंड्स से जुड़ी है।

फिर,साइमंड्स आस्ट्रेलिया के लिए भी क्रिकेट खेलते हुए अपने टेलेंट को बेहतरीन नतीजों में तब्दील नहीं कर पा रहे थे तो अचानक क्रिकेट की छोडने की बात कर बैठे। यहां तक कि उन्होंने ब्रिसबेन ब्रानकोस के कोच वेन बैनेट से संपर्क साधा। और कहा “ मैं अपनी लय और दिशा खो चुका हूं। मेरा आत्मविश्वास लड़खड़ा गया है,और मुझे क्रिकेट एक मुकम्मल मंजिल की ओर ले जाता नहीं दिख रहा है, इसलिए मैं अब कुछ और आजमाना चाहता हूं।” जवाब में कोच वेन बैनेट ने कहा कि यह बहुत गंभीर फैसला है लेकिन साइमंड्स यह तय कर बैठे थे, और कोच ने कहा भी ”मैं तुम्हारी आंखों में एक जुनून देख रहा हूं।”

आखिर, गेंद के साथ करतब करने का जुनून ही था कि साइमंड्स बचपन में ही हर खेल में नयी ऊंचाइयां छू रहे थे। रग्बी में तो जूनियर रग्बी लीग और यूनियन-दोनों में ट्रॉफी हासिल की। लेखक एंगस फाउंटेन ने लिखा है कि उसके कपबोर्ड में हॉकी से लेकर फुटबॉल और एथलेटिक्स में मिले मेडल भरे पड़े थे। लेकिन, इस असमंजस के बीच उसने क्रिकेट को चुना।

क्रिकेट में परिपूर्णता के प्रतीक एक ऑलराउंडर के रुप में उन्होंने उभार लिया। मैदान में 22 खिलाड़ियों की भीड़ में एक ऐसा शख्स, जो इस जेंटलमैन गेम के हर हिस्से को अकेले दम भरने की ताकत रखता है। साइमंड्स के हाथ में गेंद हो तो मुकाबले में हालात के मुताबिक उनकी गेंदें बल्लेबाजों को निशाना बनाती हैं। कभी मीडियम पेस से तो कभी ऑफ स्पिन से। साइमंड्स का बल्ला जब चाहे मुकाबले को अपनी ओर मोड़ने की ताकत रखता है। फील्डिंग में भी साइमंड्स एक नामुमकिन से कैच और रनआउट से मुकाबले को एक पल में अपनी ओर मोड़ सकते हैं।

लेकिन,क्रिकेट में एक मुकम्मल मंजिल की तलाश में जुटे साइमंड्स को कुछ नाकामियों ने इतना निराश किया कि क्रिकेट से उनके मोहभंग को दुनिया ने देखा। फिर,जब क्रिकेट से अलग हटकर रग्बी की ओर मुड़ने का खयाल जेहन मे था तो बार बार खुद को मां-बाप,अपने साथियों और हर किसी के आगे शर्मसार महसूस कर रहे थे। उनका कहना था” मैं क्रिकेट में वो नहीं कर पा रहा,जिसकी उम्मीदें उन्होंने मुझसे संजोयी थीं।”

दरअसल, साइमंड्स का यह असमंजस एक ऐसे शख्स को सामने लाता है,जो भविष्य की तस्वीर को लेकर उलझा दिखायी देता है। वो किसी भी बात के लिए कमिट नहीं करता। वो अपने खेल में परिपूर्णता तलाशना चाहता है,लेकिन उससे दूर हो जाता है। वो कई देशों में से एक देश को चुनता है लेकिन अचानक उसी टीम से दूर होकर किनारे बैठ जाता है। कभी वो रग्बी में अपनी ज़िंदगी तलाशता है,तो कभी क्रिकेट के सहारे में उसमें रंग भरने की कोशिश करता है। ये कुल मिलाकर एक उलझी हुई तस्वीर की तरह इस शख्स को सामने लाता है। लेकिन, ये उसकी अपनी निजी कमज़ोरी नहीं है। ये उस व्यवस्था की कमजोरी है,जो उसे किसी एक जगह पर सुरक्षित मंच नहीं दे पाती,जहां पर खड़ा होकर वो अपनी ज़िंदगी को साफ साफ पढ़ सके। जेहनी तौर पर उसकी सोच में एक बेचैनी और असमंजस दिखायी देता है। इन सबके बीच अगर वो किसी से उलझ गया तो एक छोटी सी घटना दो टीमों के दायरे से बाहर निकलकर दो देशों के क्रिकेट चहेतों को आमने-सामने ला खड़ा कर देती हैं।

शायद,साइमंड्स की शख्सियत का एक बड़ा पहलू ये भी है कि वो जरुरतों के मुताबिक मैदान में और मैदान के बाहर खुद को उतनी तेजी से नहीं बदल पा रहे हैं। विव रिचर्ड्स और किम ह्यूज के दीवाने साइमंड्स को आस्ट्रेलिया के लिए खेलने में अपने शुरुआती दौर में एक लंबा वक्त लग गया। वो किसी भी स्कोर को आठ दस स्ट्रोक में ही पूरा करने की सोच लेकर विकेट पर पहुंचते थे। उनका कहना है “ ये एक लाजवाब अनुभव है। अचानक एक लम्हे की उपलब्धि कहीं गहरे हिलोरे भरने लगती है। ऐसा लगता है कि आप जब गेंद को हिट कर रहे हैं,तो वो सीधे कहीं स्टैंड में जाकर गिरेगी यानी कैच करने की कोई दूर दूर तक संभावना नहीं है। ” लेकिन,एंगुस फाउंटेन ने साइमंड्स पर लिखे अपने लेख में बहुत खूबसूरत अंदाज में यह बयां किया है-जितनी तेजी से वो गेंद पर प्रहार करते थे, उतना ही वो अपने लिए नाकामी का गड्डा खोद रहे थे। बाद में,साइमंड्स ने भी माना ”वक्त के साथ मुझे समझ आया कि इतने आक्रामक अंदाज में क्रिकेट खेलते हुए मैं अपने लिए ही परेशानियां खडी कर रहा था। मेरी आक्रामकता खतरे के निशान से सटी हुई थी। यहां तक कि खुद को बर्बाद करते हुए।”

आज एक बार फिर साइमंड्स एक ऐसी ही पतली लकीर पर चल रहे हैं,जिसके एक ओर क्रिकेट की बाकी दुनिया बांहें खोले उनका इंतजार कर रही है,लेकिन दूसरी तरफ वो खुद अपने ही सवालोंसे जूझ रहे हैं। सच क्या है,और नतीजा क्या होगा-ये सिर्फ साइमंड्स ही जानते हैं। शायद,वो खुद भी इस सच को टटोलने की कोशिश में हैं। आखिर,जो क्रिकेट उनकी तलाश को पूरा करने का जरिया बना,उसी से वे क्यों अलग जा खड़े हुए। उनकी वेबसाइट पर उनके बयान पर गौर करें तो महसूस होता है कि वो एक बार फिर दोराहे पर हैं। साइट पर प्रकाशित उनके बयान के मुताबिक- मुझसे कहा गया है कि मैं इस बात पर गौर करुं कि मेरे लिए क्या जरुरी है और मैं यही सोच रहा हूं।

सोच तो क्रिकेट की बाकी दुनिया भी रही है। आखिर साइमंड्स किस तलाश में हैं। कहीं ये तलाश की बेकरारी उन्हें क्रिकेट से दूर तो नहीं ले जाएगी। जवाब साइमंड्स के अलावा किसी के पास नहीं है। लेकिन,इसमें कोई दो राय नहीं कि साइमंड्स को क्रिकेट से दूर होते कोई देखना नहीं चाहेगा।

4 comments:

रंजन (Ranjan) said...

साइमंड्स वाकई लाजबाब है.. क्या ताकत है बन्दे में

Unknown said...

साइमंडस् हैं तो अदभुत्..उनका निरालापन उनके खेल में भी झलकता है और हाव-भाव में भी..एक खिलाड़ी के रुप में वे कई रुढ़छवियों को तोड़ते हैं..मसलन-खिलाड़ी किसी एक खेल या देश का होकर रहता है या यही कि कोई एक बार खेल के मैदान में उतर गया तो हमेशा के लिए उसकी पहचान खिलाड़ी की होगी..साइमंड्स अगर रुढ़छवियों को तोड़ पाते हैं तो उसका कारण है जोखिम को उसके आखिरी मकाम तक ले जाकर उस जोखिम में जीने का साइमंडस् का साहस..साइमंडस् के इस साहस के कारण खोजे हैं आपने..कम लेख ऐसे होते हैं जिसमें किसी खिलाड़ी के खेल को उसके सामाजिक अनुभवों से जोड़कर देखने की कोशिश की जाती है..विचारोत्तेजक लेख..
चंदन श्रीवास्तव

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख!!


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SANJAY SRIVASTAVA said...

sanjay srivastava
साइमंड्स बेहतरीन allrounder हैं, इसमे कोई शक नहीं...लेकिन ना जाने क्यों वो हमेशा किसी दुविधा मे डूबे लगते हैं...साइमंड्स के बारे मे आपका analysis एकदम सजीव लगता है...जो कुछ लिखा है..वो उनकी personality, उनके भ्रम, उनकी दिक्कत को असरदार तरीके से सामने लाता है...आपका लेखन अलग धरातल पर है..और इसके आयाम भी नये..
sanjay srivastava