सचिन तेंदुलकर के चेहरे से बरसती इस खुशी को बयां करना आसान नहीं है। माइकल क्लार्क के बल्ले से हवा में उछाल लेती इस गेंद का वीरेन्द्र सहवाग के हाथ में ठहरना था कि तेंदुलकर एक असीम खुशी में डूब गए। लगा ही नहीं कि इस शख्स ने 19 साल से खुद को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में झोंक रखा है। 12 हजार रनों के शिखर पर खड़ा है। टेस्ट और वनडे में शतकों का शिखर इस अकेले शख्स के नाम है।
ये सचिन तेंदुलकर तो सहवाग की बांहों में एक किशोर की तरह खुशी में डूब-उतर रहे थे। ये तस्वीर तेंदुलकर और उनके जुनून की बानगी थी। पिछले दो दशक में भारत को कामयाबियों के कई शिखर की ओर मोड़ने वाला यह महानायक भी इस मौके को पूरी तरह जी लेना चाहता था। अगर तेंदुलकर उस पल को आत्मसात कर लेना चाहते थे, तो टीम के बाकी खिलाड़ियों और भारतीय क्रिकेट के चाहनेवालों के लिए इस जीत के मायने आप समझ सकते हैं। आखिर, यह सिर्फ एक जीत भर नहीं थी। ये जीत, टेस्ट की वर्ल्ड चैंपियन के खिलाफ थी। ये जीत उस टीम की सोच का जवाब थी, जिसके सहारे पिछले एक दशक से वो क्रिकेट की बाकी दुनिया पर राज कर रही थी। ये अकेले सचिन तेंदुलकर की जीत नहीं थी। ये सौरव गांगुली की जीत नहीं थी। ये महेन्द्र सिंह धोनी की जीत नहीं थी। ये एक नयी टीम इंडिया की जीत थी।
दरअसल, मोहाली में भारतीय टीम ने मैच की पहली गेंद से ही पोंटिंग की इस आस्ट्रेलियाई टीम को हाशिए पर डालना शुरु कर दिया था। खुद पोंटिंग का भी कहना था, ‘हम पहले ही दिन से मुकाबले से बाहर और बाहर होते चले गए।’ दोनों पारियों में गंभीर और सहवाग की जोरदार शुरुआत, मिडिल ऑर्डर में तेंदुलकर और गांगुली की यादगार साझेदारी, कप्तान धोनी की सही मौके पर बड़ी पारियां, ईशांत शर्मा के शुरुआती झटके, अमित मिश्रा के करियर का बेहतरीन आगाज़, अहम मौकों पर हरभजन और ज़हीर की विकेट तक पहुंचती यादगार गेंदें। इस जीत में एक नहीं. पूरी की पूरी टीम की हिस्सेदारी है।
इसलिए,ये जीत इन आंकड़ों से भी कहीं आगे भारतीय टीम को एक नयी सोच, एक नयी ताकत, एक नया हौसला देती जीत है। इस जीत ने भारतीय टीम के विनिंग कॉम्बिनेशन को बेहद मजबूती से दर्ज कराया। लेकिन, इस शिकस्त से कहीं बहुत पहले ही दूसरे खेमे में दरार भी दिखने लगी। कप्तान रिकी पोंटिंग और ब्रेट ली के टकराव की गूंज मोहाली की सरहद से बहुत दूर आस्ट्रेलिया में भी सुर्खियों में छा गई। मैच के चौथे दिन पूरी तरह से आक्रमण पर उतर चुके भारतीय बल्लेबाजों पर काबू पाने के इरादे से ब्रेट ली गेंदबाजी का मोर्चा संभालना चाहते थे, लेकिन पोंटिंग ने उनके हाथ में गेंद न थमाते हुए एक मुद्दे को हवा दे दी। पोंटिंग की बेशक यह दलील हो सकती है कि ब्रेट ली की उंगलियों में टांके लगे थे। लेकिन, अपने निजी मोर्चों से उबरने की कोशिश में जुटे ब्रेट ली को पोंटिंग भरोसे में नहीं ले पाए। सबसे कामयाब टीम का कप्तान चूक गया था।
दरअसल, मोहाली की शिकस्त आस्ट्रेलियाई टीम के दबाव में बिखरते और बिखरते चले जाने की कहानी भी है। भारत बेशक इस मनोवैज्ञानिक दबाव से बेखबर सिर्फ जीत और जीत की कोशिश में ही मैदान में जुटा नजर आया। लेकिन, इस कड़ी में कप्तान रिकी पोंटिंग और माइकल हसी को परास्त करते ईशांत शर्मा की गेंदें अब सीरिज में एक खौफ की तरह आस्ट्रेलिया के हौसलों का इम्तिहान लेती रहेंगी। ज़हीर खान की रिवर्स स्विंग पहले से भी ज्यादा बल्लेबाज के जेहन में संशय पैदा करेगी। अपनी लय पा चुके हरभजन से पार पाना आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के लिए अब और मुश्किल होगा। अगर, दिल्ली में मोहाली के हीरो अमित मिश्रा को कप्तान अनिल कुंबले की वापसी के लिए जगह छोड़नी भी पड़ी तो खुद को साबित करने की आखिरी कोशिशों में कुंबले बेहद घातक साबित हो सकते हैं। उस कोटला पर, जहां वो अकेले पूरी पाकिस्तानी पारी को समेटने का इतिहास रच चुके हैं।
तो आस्ट्रेलिया को अब इस सीरिज में जंग मैदान पर अपने खेल से ही नहीं लड़नी होगी, उसकी सबसे बड़ी जंग खुद से होगी। मनोवैज्ञानिक तौर पर इस शिकस्त से उबरने की। खुद पोंटिंग भी इसे महसूस कर रहे हैं। उनका भी कहना है कि अगले हफ्ते के दौरान हमें स्किल पर उतना काम नहीं करना, जितना हमे जेहनी तौर पर इस शिकस्त से उबरने पर करना है। ये बात उस टीम का कप्तान कह रहा है, जो पहली बार शिकस्त से रुबरु नहीं हुआ है। उसे तो आस्ट्रेलिया में प्रतिष्ठा की सबसे बड़ी लड़ाई माने जाने वाले 'एशेज' में भी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। लेकिन, यहां उसे भरोसा था कि वो ऐसी वापसी करेगा कि इस हार की टीस भी नहीं रहेगी। पहले ‘रेस्ट ऑफ वर्ल्ड’ और फिर अपने घर में इसी इंग्लैंड को 5-0 से रौंदते हुए पोंटिंग ने यह कर भी दिखाया था। लेकिन, यही पोंटिंग मोहाली की इस शिकस्त के बाद ऐसा कोई भरोसा नहीं जता पा रहे हैं।
इन सबके बीच धोनी की टीम की यह जीत भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी जीत के रूप में हमारे सामने है। एक ऐसी जीत, जिसके बीच सचिन तेंदुलकर का टेस्ट में सबसे ज्यादा रनों का शिखर भी पीछे छूट गया है। सौरव गांगुली की विदाई सीरिज की गूंज भी खो रही है। पहले ही मैच में शानदार शुरुआत करने वाले लेग स्पिनर अमित मिश्रा की कामयाबी भी इस जीत पर हावी नहीं हुई है। ये सबसे बड़ी जीत अब एक सीरिज जीत की उम्मीद जगा रही है। वो भी वर्ल्ड चैंपियन आस्ट्रेलिया के खिलाफ।
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4 comments:
ये सीरीज़ तो कई बातों के लिए याद की जाएगी। पर अंत में मुझे लगता है धोनी का कुछ किस्मत कनेक्शन भी है क्या?कुंबले इस मैच में नहीं खेल रहे थे और कैप्टन धोनी ने जीत का जहाज़ पार लगा दिया, इससे पहलेवाला टेस्ट ड्रा हो गया।
ये विजय वाकई यादगार रही है । और आपका विश्लेषण लगातार पढ़ता रहा । हिंदी में ऐसे विश्लेषण कम ही दिखते हैं । अगर भारतीय टीम जीत की कंसिस्टेन्सी दिखाए तो मजा आ जाए ।
“ये अकेले सचिन तेंदुलकर की जीत नहीं थी। ये सौरव गांगुली की जीत नहीं थी। ये महेन्द्र सिंह धोनी की जीत नहीं थी। ये एक नयी टीम इंडिया की जीत थी।“ –कहा जाता है कि आदमी किसी विषय पर लिखते हुए अपने मन-मानस के बारे में भी लिखता जाता है।आपने टीम इंडिया की जीत लिखा और सही लिखा(क्योंकि आप मानते हैं सामूहिकता में व्यक्तित्व का लोप नहीं होता बल्कि उस पर निखार आता है-इस जीत से सौरभ का शतक निखरा,सचिन का शिखर और ऊंचा हुआ, और सहवाग-गंभीर-अमित-जहीर-ईशांत की जी-तोड़ कोशिशें रिकार्ड बुक से निकलकर एक ना भूलने वाली जीत का किस्सा बनीं)मगर एक को हीरो और बाकी को जीरो यानी इस जमीं से आस्मां तक मैं ही मैं हूं दूसरा कोई नहीं का घनघोर तानाशाह दर्शन अपना चुके लोग अभी से कह रहे हैं-टीम इंडिया तो धोनी की कप्तानी में जीती,उसे टेस्ट टीम का कप्तान बनाओ। एक न्यूज चैनल पर यही कहा और पूछा गया अब से थोड़ी देर पहले..और आश्चर्य नहीं कि कल कोई अखबार ‘धांय-धांय धोनी’ जैसा ही शीर्षक लेकर टीम इंडिया की जीत की खबर परोसे।
जब कोई एक के हीरोडम की बात करता है तो इस बातचीत में चुपके से एक शब्द आता है-करिश्मा।करिश्मा और करामात की शब्दावली तर्क और विश्लेषण से बहुत दूर ले जाती है-उस भावजगत में जहां बोलबाला ‘वो तो है अलबेला-हजारों में अकेला’ का है।इस भावजगत में पहुंचकर हाथो-हाथ कोई नाम प्रतीक में बदल जाता है और प्रतीक में बदलते ही आस्था का भज-गोविन्दम् शुरु हो जाता है।
अफसोस इस बात का है कि प्रतीक और आस्था का बोलबाला ना सिर्फ खेल पर बल्कि समूचे सार्वजनिक हिन्दुस्तानी जीवन पर हावी होता जा रहा है।
और खुशी इस बात की है कि आपका लेख ‘वो तो है अलबेला-हजारों में अकेला’ के फांस में नहीं पड़ा..
भावनाओं के ज्वार से उबारता, तर्क और विश्लेषण को प्रतिष्ठित करता लेख..
चंदन श्रीवास्तव
“A time for celebration, A time for victory , A time when world see the example of power of INDIA. Let us continue the same true.”SARE JANHA SE ACCHHA HINDOSTAN HMARA'.
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