ये सौरव गागंली का अपना कोलकाता था। ये सौरव गांगुली का अपना इडेन गार्डन था। ‘कोरबो लोड़बो जीतबो’ की गूंज के बीच ये उनकी अपनी टीम कोलकाता नाइट राइडर्स थी। लेकिन, इन सबके बीच सौरव गांगुली अकेले छूट गए थे, बिल्कुल अकेले। उन्हें इस कदर अकेला कर दिया था जॉन बुकानन ने। पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कोच और अब कोलकाता नाइट राइडर्स के कोच बुकानन ने उन्हें अपनों के बीच अकेला कर दिया था। अपने इस एक बयान के साथ कि अब सौरव नाइट राइडर्स के अकेले कप्तान नहीं होंगे। नाइट राइडर्स की कप्तानी की कैप अब खिलाडि़यों के बीच झूलती रहेगी। इस दलील के साथ कि ये ट्वेंटी-20 क्रिकेट की दरकार है।
बेशक, नाइट राइडर्स के मालिक शाहरूख खान ने सौरव को मुख्य कप्तान कहते हुए उनके जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की है। लेकिन, शाहरूख की ये कोशिशें भी बुकानन और सौरव के बीच फैलते फासले को थाम नहीं सकेंगी।
फिर, ये दोनों आज नाइट राइडर्स टीम में दो छोर पर नहीं खड़े हैं। मेरे लिए क्रिकेट के आइने में ये दो जीवन दृष्टियों को उभारते सौरव और बुकानन हैं। यहां एक ओर सौरव हैं। क्रिकेट की अनिश्चितता, जीवट, संघर्ष और टेलेंट के प्रतीकों को समेटे हुए। सौरव की क्रिकेट में आप शून्य पर आउट हो सकते हैं, लेकिन अगली बार आप दोहरा शतक भी जमा सकते हें। आप एक दिन एक गेंद पर छक्का जमा सकते हैं, तो अगली दस गेंद तक हर एक रन के लिए तरस सकते हें। ये है क्रिकेट की अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव के बीच आगे बढ़ते सौरव गांगुली। दूसरी ओर जॉन बुकानन हैं। खेल को आंकड़ों में पढ़ते बुकानन। ये आंकड़े जो अलग-अलग स्थितियों में जीत की संभावना बताते हैं। बुकानन इन्हीं संभावनाओं को कप्तानी के मुद्दे तक ले जाते हैं। किन सर्वश्रेष्ठ स्थितियों में जीत तक पहुंचेंगे। इसी से नतीजा निकालते हैं कि कप्तानी की अदला-बदली करेंगे, तो जीतने की संभावना ज्यादा होगी। लेकिन, इसी सोच के बीच बुकानन क्रिकेट टीम के कोच से पहले किसी कारपोरेट कंपनी के मैनेजर की दृष्टि को समेटे ज्यादा दिखते हैं। अगर कंपनी है, तो उसे लाभ दिखाना है। लाभ चाहिए तो, उसे बेहतरीन लोग रखने हैं। इन बेहतरीन लोगों के प्रदर्शन को नापना है, तो इन आंकड़ों के बीच जीत तक ले जाने की उनकी कोशिशों को परखना होगा।
ये आज के जमाने के ज्योतिषी हैं। खेल को सीधे-सीधे आंकड़ों में, अंकों में तब्दील करते हुए। लेकिन, खेल महज अंक नहीं है। ये एक सजीव अनुभव है। ये सिर्फ आंकड़े में बदल गया, तो आप इस सजीव अनुभव से हाथ मलते रह जाएंगे। आंकड़ों के दो छोर पर हार और जीत दिखाई देती है। बल्लेबाज का शतक, गेंदबाज के विकेट दिखते हैं। लेकिन, आप उसमें खिलाड़ी सौरव या सचिन, स्टीव वॉ या ब्रायन लारा की शख्सियत को नहीं पढ़ सकते। इनकी शख्सियत को पढ़ने के लिए आपको आंकड़ों के इस मकड़जाल से ऊपर उठकर इसे महसूस करना होता है।
फिर बुकानन जिस कारपोरेट सोच के साथ क्रिकेट में दाखिल होते हैं, वहां कंपनी में सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी को शामिल करने की तरह सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को टीम में जगह दी जाती है। इसके सहारे वे टीम को शिखर तक ले जाते हैं। लेकिन, लगातार शिखर पर रहना किसी के लिए मुमकिन नहीं है। प्रकृति का नियम भी यही कहता है। ऑस्ट्रेलियाई कोच के नाते बुकानन ने भी इस कड़वे सच को महसूस किया है। बुकानन ने ऑस्ट्रेलियाई टीम को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया। इस दौरान उनके पास एक से एक बेहतरीन खिलाड़ी मौजूद था। स्टीव वॉ जैसा जुझारू कप्तान था, तो शेन वार्न जैसा स्पिन का जादूगर। बेमिसाल ग्लेन मैक्ग्रॉ थे, तो शास्त्रीय संगीत की तरह बल्ले से रन बटोरने वाले मार्क वॉ। ये इन बेहतरीन खिलाडि़यों का सर्वश्रेष्ठ दौर था। यही बुकानन की ऑस्ट्रेलियाई टीम को टेस्ट और वनडे के शिखर पर ले जाता दौर था।
लेकिन, ये संयोग ही है कि बुकानन के शिखर की ओर बढ़ते इस कारवां को थामा, तो इन्हीं सौरव गागुली ने। सौरव ने ऑस्ट्रेलिया के लगातार 16 टेस्ट जीतने के सिलसिले को इसी कोलकाता के इडन गार्डन पर रोक दिया था। इस सौरव के पास ऑस्ट्रेलिया की तरह दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी नहीं थे। लेकिन, उन्होंने अपने खिलाडियों में जीत का जुनून भर दिया। बुकानन की विश्वविजयी टीम को चित कर दिया।
बुकानन के जहन में हो सकता है कि कोलकाता का ये लम्हा एक टीस पैदा करता हो। बुकानन इस टीस की चुभन को स्वीकार नहीं करेंगे। सौरव भी एक खिलाड़ी और पूर्व कपतान के नाते इससे बच कर निकल सकते हैं। लेकिन, कोलकाता का दर्शक या क्रिकेट को बेहद करीब से टटोलने वाला शख्स इस आधे-अधूरे सच को छूने की कोशिश जरूर करता है।
दरअसल, जिंदगी हो या फिर क्रिकेट, आप सर्वश्रेष्ठ को गणित के आइने में नहीं पढ़ सकते। आप इसे गणित के दायरे में समेट भी नहीं सकते। क्रिकेट में अगर जिंदगी के अक्स झलकते हैं, तो इसीलिए कि यहां आप अचानक चमत्कार से रूबरू होते हैं। आप लगातार आंकड़ों के आधार पर भविष्यवाणी करेंगे, तो चमत्कार गायब हो जाएगा। बुकानन की यही दिक्कत है। वो आंकड़ों, उसके आधार पर आकलन और संभावनाओं के सहारे क्रिकेट में चमत्कार को कम से कम करना चाहते हैं। लेकिन, वो शायद भूल जाते हैं कि चमत्कार नहीं होगा, तो क्रिकेट अपनी पहचान ही गवां देगा। हम करिश्मों से महरूम हो जाएंगे। इसी इडेन गार्डन पर लक्ष्मण की पारी को बुकानन कभी भूला पाएंगे ? इस एक अकेली पारी ने हार की दहलीज पर खड़ी सौरव की टीम को क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी जीत तक पहुंचाया था। ये वीवीएस लक्ष्मण का करिश्मा था। इस करिश्मे का कोई तोड़ बुकानन के पास नहीं था।
दरअसल, सांचे में ढली सोच के पास करिश्माओ का तोड़ नहीं होता। फिर बुकानन को मिली टीम ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के मजबूत और बेहद व्यवस्थित सिस्टम की देन थी। यहां बुकानन ने अपनी गढ़ी सोच, अपनी रणनीति और समीकरणों के मुताबिक सर्वश्रेष्ठ खिलाडि़यों का समूह चुना। यहां जीत का जज्बा भरने से ज्यादा जोर इन बेहतरीन खिलाडि़यों के सर्वश्रेष्ठ खेल के आधार पर जीत तक पहुंचने का था। इसमें वो बेहद कामयाब रहे। आईपीएल में भी उन्हें बेहतरीन खिलाडि़यों का समूह जरूर मिला, लेकिन यहां इस समूह के इर्द-गिर्द जीत की रणनीति और समीकरण बनाने थे। यहां समूह पहले था और टीम रणनीति और समीकरण बाद में।
शायद यही वजह है कि बुकानन की ऑस्ट्रेलियाई टीम शिखर चुनती है, लेकिन उन्हीं की कोलकाता नाइट राइडर्स आईपीएल में नाकाम रहती है। ठीक यहीं, जीत के जज्बों से लबालब शेन वार्न की अनजान चेहरों से बनी राजस्थान रॉयल्स खिताब तक पहुंचती है। बुकानन की नाइट राइडर्स उनके समीकरणों में उलझ कर पीछे छूट जाती है। बुकानन अपना गणित तो ठीक बिठाते हैं, लेकिन प्रतिद्वंद्वी के गणित के सामने खारिज हो जाते हैं।
साफ है, बुकानन सिर्फ और सिर्फ सर्वश्रेष्ठ खेल खेलना चाहते हैं। अनिश्चितताओं और नियति के चोली-दामन से लिपटे इस खेल में सर्वश्रेष्ठ को आंकड़ों के गणित के सहारे पकड़ना चाहते हैं। लेकिन, फिर वही बड़ी बात, कि जिंदगी हो या क्रिकेट, यहां सर्वश्रेष्ठ को आप महज गणित से नहीं पकड़ सकते। अगर ऐसा होता तो कभी केन्या, वेस्टइंडीज को शिकस्त नहीं दे पाता। जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया को उसी के खेल में मात नहीं देता। कभी पाकिस्मान या भारत को बांग्लादेश से हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। इसीलिए, सौरव गांगुली के सामने ये बुकानन खारिज हो जाते हैं।
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