Saturday, November 8, 2008

विजय,मिश्रा,गांगुली की कामयाबी सिलेक्टर्स के भरोसे की जीत है

महज एक सेंकेंड। लेकिन,मुरली विजय को अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए सिर्फ यह एक सेंकेंड ही बहुत था। सिली प्‍वाइंट पर तैनात विजय ने माइकल हसी के बल्ले से निकले स्ट्रोक को बीच रास्ते में ही दांहिने हाथ से रोका। हसी जब तक अपने स्ट्रोक के फॉलो थ्रू से वापस लौटते हुए क्रीज में बल्ला पहुंचाने की कोशिश भी करते,विजय के थ्रो पर विकेटकीपर महेन्द्र सिंह धोनी स्टंप बिखेर चुके थे।

सिर्फ एक सेंकेंड में विजय ने माइकल हसी की लगातार मजबूती लेती पारी को शतक से दस रन पहले थाम दिया। यह सिर्फ हसी की पारी का ही अंत नहीं था, ये गावस्कर बॉर्डर ट्रॉफी में बराबरी पर आने के लिए जीतोड़ कोशिशों में लगी आस्ट्रेलिया की उम्मीदों का बिखरना भी था। इस मुकाबले में विजय के लिए यह पहला मौका नहीं था। दूसरे दिन ऐसे ही एक सेंकेड में उनके सटीक थ्रो ने आस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी की अगुवाई कर रहे अनुभवी मैथ्यू हेडन को भी ड्रेसिंग रुम की ओर मोड़ दिया था। ये दोनों बल्लेबाज "फोटो फ्रेम फिनिश" में अपना विकेट बचा नहीं पाए।

एक टेस्ट में दो-दो रन आउट। वो भी बल्लेबाज की चूक से नहीं,फील्डर की चीते सी चपलता से। टेस्ट क्रिकेट में यह किसी गेंदबाज के विकेट तक पहुंचने से कतई कम नहीं है। मुरली विजय ने एक-एक सेंकेंड के इन दो लम्हों में नागपुर के विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन मैदान में अपनी फील्डिंग से ऐसी छाप छोड़ दी है कि इस मुकाबले और सीरिज के आखिरी नतीजे में वो एक बहस का मुद्दा बनेगी।

आखिर,शनिवार की सुबह भारत ने एक नहीं दो बार साइमन कैटिच को जीवनदान दिया। पहले राहुल द्रविड़ और फिर वीवीएस ने स्लिप में अपने हाथ में पहुंची गेंद को कैच में तब्दील नहीं कर पाए। लेकिन,ठीक इसी मोड़ पर विजय ने मुकाबले में फील्डिंग की अहमियत को भी जता दिया। आखिर,इस मुकाबले से ठीक पहले विजय को जब टीम में जगह मिली तो कितने ही लोगों के जेहन में यह सवाल कुलबुलाने लगा कि विजय-कौन विजय?

कहीं कहीं 1997 के आसपास भारतीय टीम में अचानक जगह बनाने वाले ऑफ स्पिनर नोएल डेविड की तरह उनका नाम भी सुनायी पड़ने लगा। क्रिकेट आलोचकों ने सवाल खड़ा किया कि आखिर आकाश चोपड़ा,वसीम जाफ़र के रहते एम विजय को टीम में जगह कैसे मिल सकती है। लेकिन,विजय ने अपने इन दो लम्हो के साथ साथ भारतीय पारी को एक मजबूत आधार भी दिया।

उन्होंने बेशक सिर्फ 33 रन ही अपनी पारी में जोड़े लेकिन वीरेन्द्र सहवाग के साथ पहले विकेट के लिए बनाए 98 रन ही थे,जिसने भारत को इस मुकाबले में कई बार लड़खड़ाने के बावजूद एक विजयी लक्ष्य की ओर मोड़ दिया। लेकिन,विजय की इस पहचान दर्ज कराते आगाज के लिए हमें चयनसमिति के भरोसे को सलाम करना होगा।

चयनसमिति को यह मालूम था कि इस फैसले से उन्हें सवालों के घेरे में लिया जाएगा,उन्होंने विजय में अपने भरोसे को बनाए रखा। खबरों के मुताबिक,सौरव गांगुली ने चयनसमिति के अध्यक्ष कृष्णामाचारी श्रीकांत को कहा कि अगर आप इस पोजिशन के लिए किसी को देख रहे हैं तो वो शख्स विजय हो सकता है। गांगुली टीम में अपनी वापसी की तैयारियों के तहत न्यूजीलैंड ए के खिलाफ खेलते हुए भारत ए के इस ओपनर की बल्लेबाजी से रुबरु हुए थे।

ये इस सीरिज में अकेला वाक्या नहीं है,जहां अपनी नयी पारी खेल रहे सिलेक्टर्स का अपनी सोच में एक ठोस भरोसा दिखायी दिया है। उन्होंने पीयूष चावला पर तरजीह देते हुए टीम में हरियाणा के लेग स्पिनर अमित मिश्रा को टीम में जगह दी। इतना ही नहीं,मोहाली टेस्ट से ठीक पहले तत्कालीन कप्तान अनिल कुंबले को चोट की वजह से बाहर बैठना पड़ा तो मिश्रा को उतारने में कतई देरी नहीं की गई।

चयनकर्ताओं का यह तीर भी बिलकुल ठीक निशाने पर लगा। इस मैच की पहली पारी में पांच और दूसरी पारी में दो विकेट लेकर मिश्रा ने सीरिज में भारत के लिए पहली जीत की राह तैयार की। उनका प्रदर्शन इस कदर सबकी निगाहों में चढ़ गया कि सीरिज के ठीक बीच कप्तान कुंबले के संन्यास के झटके को भी भारतीय टीम झेलने के लिए तैयार दिखी। फिर,चयनसमिति के सौरव गांगुली में जाहिर किए गए भरोसे को भारतीय क्रिकेट में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

तमाम आलोचनाओं और सौरव के फॉर्म पर उठते सवालों के बावजूद श्रीकांत एंड कंपनी ने भारत के पूर्व कप्तान को सीरिज में खेलने का मौका दिया। अपनी विदाई सीरिज में इस मौके को हाथों हाथ लेते हुए सौरव ने चार टेस्ट की पांच पारियों में 324 रन बनाते हुए इसे यादगार बना दिया है। इस सीरिज में सौरव का योगदान सिर्फ रनों के आइने में ही नहीं देखा जा सकता।

बेंगुलुरु की 47 रनों की छोटी पारी से लेकर मोहाली और नागपुर में कप्तान धोनी और तेंदुलकर के साथ निभायी साझेदारियां भारत के आस्ट्रेलिया पर हावी होने की नींव बनी। इन सबसे आगे सौरव के प्रदर्शन ने भारतीय क्रिकेट में अपने महानायकों को अलविदा कहने के लिए एक नयी राह खोल दी है। पूरे सम्मान के साथ अपने चहेतों के बीच अपनी स्टेज से अलविदा कहने का मंत्र। एक ऐसा सूत्र,जिसे थामने में सुनील गावस्कर से लेकर कपिल देव तक नाकाम रहे।

लेकिन, सौरव नागपुर में पूरे सम्मान के साथ आखिरी बार ड्रेसिंग रुम की ओर मुखातिब होंगे तो उनका हर कदम,उनका हर हाव भाव,उनके चाहने वालों के दिलो-दिमाग में हमेशा हमेशा के लिए ठहर जाएगा। महानायक को लेकर गढ़ा उनका मिथक कभी नहीं दरक पाएगा। सिर्फ एक सवाल जेहन में होगा-आखिर क्यों सौरव इस स्टेज से इस वक्त अलग हो रहे हैं?

किसी भी खिलाड़ी के लिए इससे बेहतर अलविदा हो नहीं सकती। लेकिन,इस अलविदा के लिए इतनी खूबसूरत ज़मी तैयार करने के लिए श्रीकांत एंड कंपनी को बार बार सलाम। इस सीरिज में सौरव गांगुली से लेकर अमित मित्रा और एम विजय की कामयाबियां अरसे तक लोगों की यादों में बसी रहेंगी। निश्चित तौर पर ये चयनसमिति के भरोसे की जीत है।

3 comments:

Anonymous said...

मुरली विजय के दोनों थ्रो यदि य़ूट्यूब पर आए तो देख पाएंगे।आपने शब्द चित्र तो पेश ही कर दिया।

Udan Tashtari said...

हमारा भी सलाम!!

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

आपको शायद याद हो यह सीन कुछ वैसा ही था जब टीम इंडिया के एक नए-नवेले लड़के 'वी वी एस लक्ष्मण' ने ठीक उसी तरह से मार्क टेलर को रन आउट किया था अपनी ही धरती पर.(क्या इतिहास वाकई अपने को दुहराता है?)