यूसेन बोल्ट ने अपने लिए सुनहरी कामयाबियां रच रहे बर्ड्स नेस्ट के ट्रैक पर इस ओलंपिक का अपना आखिरी फर्राटा भरा। अपने 100 मीटर के फासले को नापने के बाद अपने साथी और एंकर असाफा पावेल को बैटन थमाया। इस बढ़त के साथ कि पावेल के हाथ में बैटन के पहुंचते ही जमैका का एक और गोल्ड तय हो गया। बस, अब इंतजार था तो इस बात का कि जमैंका इस गोल्ड तक पहुंचता है तो किस नए रिकॉर्ड के साथ।
लेकिन,इतना कामयाब फर्राटा भरने के बावजूद यूसेन बोल्ट के कदम थमे नहीं थे। वो लगातार दौड़ रहे थे। अपने साथी असाफा पॉवेल की हौंसला अफजाई करते हुए, गो असाफा, गो...। ये इस जमीं पर दुनिया के दो सबसे तेज़ धावकों की साझा मंजिल तक पहुंचने की एक बेमिसाल कोशिश थी। इसे पाने का जुनून कुछ इस कदर दोनों पर हावी था कि कोई भी एक गलत डग नहीं भरना चाहता था।
जैसे ही पावेल ने फिनिश लाइन को पार किया एक नया इतिहास बाहें फैलाए उसका इंतजार कर रहा था। 100 मीटर रिले में अमेरिका को शिखर से बेदखल करते हुए जमैका इस पर काबिज हो गया। अब से 16 साल पुराने अमेरिका के 37.40 के रिकॉर्ड को मिटा 37.10 सेकेंड के नए रिकॉर्ड को ट्रैक पर उकेर दिया था।
इतिहास के इस मोड़ पर पावेल अपने साथियों के साथ इस नए शिखर तक नहीं पहुंचे थे। इस मंजिल को छूने के साथ ही वो कल तक ट्रैक पर अपने प्रतिद्वंद्वी, लेकिन आज के साथी युसेन बोल्ट की बाहों में जा पहूंचे थे। उनके बाकी दोनों साथी नेस्टर कार्टर और माइकल फ्रांटर भी इस उल्लास का हिस्सा बन गए। देखते ही देखते बोल्ट अपनी पहचान से जुड़ चुके तीरंदाज के अंदाज में सबके सामने मौजूद थे। अपनी बायीं बांह को सीधे आसमान की ओर तान निशाना साधते बोल्ट को देखना एक ऐसा अनुभव था, जिसे हर कोई ताउम्र संजो कर रख सकता है।
जमैका से बीजिंग के लिए उड़ान भरते हुए बोल्ट के निशाने पर तीन गोल्ड या तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड नहीं थे। अपनी रफ्तार के सहारे 37 लाख की आबादी के अपने छोटे से देश जमैका को दुनिया के नक्शे पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराना भी था। इस सुनहरी कामयाबी के बाद उनके बयान पर गौर कीजिए - ये एक लाजवाब अनुभव है। हम सब इसी की कोशिशों में जुटे थे। जी हां, बोल्ट अपनी सुनहरी कामयाबियों को 'मैं' में समेटना नहीं चाहते। वो इसे हम यानी सबकी कोशिशों का नाम देते हैं। असाफा पावेल दौड़ पूरे होने के बाद इसे अपनी कामयाबी नहीं मानते। ''मै यहां यूसेन की मदद करने आया था। यूसेन यहां तीन गोल्ड और तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड की कोशिश कर रहे थे, मैं इससे बड़ा काम नहीं कर सकता था।''
ये शब्द उस शख्स के थे, जो कल तक ट्रैक पर उनका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी था। साफ है, बोल्ट से लेकर पावेल तक शैली से लेकर मेलिनी वॉकर तक सब गोल्ड की चाह में यहां पहुचे थे, लेकिन गोल्ड से पहले उनके जेहन में जमैका था। अपराध और बदहाली से जूझता जमैका। इसीलिए ओलंपिक खत्म होते होते जमैका ने 6 गोल्ड अपने नाम कर लिए। उनका देश इन कामयाबियों के उल्लास में डूबा तो जरूर लेकिन इन्हीं कामयाबियों से अपनी तस्वीर को बदलने की कोशिश में भी जुट गया। बाकी दुनिया जमैका की स्प्रिंट फैक्ट्री का कोड पढ़ने में जुटी है, लेकिन जमैका में अपने देश को पटरी पर लाने की कोशिश हो रही हैं। 400 मीटर हर्डल का गोल्ड जीतने वाली मेलिनी वॉकर के पिता अपील कर रहे हैं - आप इन कामयाबियों पर गर्व महसूस करें। अब आप बंदूक को नीचे रख दें। बोल्ट का शहर सिर्फ जश्न में ही नहीं डूबा है वो येम ( एक सब्जी) को बोल्ट की ताकत बता उसकी पैदावार बढाने की पहल कर रहा है। इन सुनहरे स्प्रिंटरों के जरिए जमैका के टापुओं तक टूरिस्टों को खींचने की कोशिशें तेज होंगी।
बोल्ट एंड कम्पनी पूरे जमैका के लिए एक बेहतर कल की उम्मीदें संजोने लगी है। इस बिंदु पर इनकी कामयाबियां क्रिकेट के मैदान पर जॉर्ज हैडली, माइकल होल्डिंग और जैफ्री डुजॉन के कारिश्में से बहुत आगे निकल गई हैं। इसने जमैका की स्पिंट क्वीन मार्लिन ओटी को इतिहास के पन्नों में छोड दिया है। ये 1998 में जमैका के वर्ल्ड कप फुटबॉल में शिरकत करने पर भी भारी पड़ गई है।
लेकिन, यहीं एक सवाल मेरे में कौंध रहा है। क्या बोल्ट की कामयाबियों से करवट लेते जमैका जैसी आहट अभिनव बिंद्रा, सुशील कुमार और विजेंद्र सिंह के मेडलों से भी आती है, शायद नहीं। दरअसल, भारत में खेल को हम सेलिब्रेट कर सकते हैं, हम उसे टेलीविजन चैनलों में घंटों-घंटों देख सकते हैं। लेकिन, खेलों में हिस्सेदारी से अभी भी परहेज करते हैं। खेलों को लेकर एक सोच हम अभी तक गढ़ नहीं पाए हैं।
इस मोड़ पर हम एक अजीब तरीके से भारत को अमेरिका के ज्यादा करीब पाते हैं। फेल्प्स की सुनहरी कामयाबी वहां इतिहास में एक बड़े अध्याय की तरह दर्ज जरूर हो जाती है, लेकिन वहां की तस्वीर नहीं बदलती। भारत को सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे आइकॉन का इंतजार है। अमेरिका में आइकॉन्स की कमी नहीं है। अमेरिका में खेल जिंदगी जीने का तरीका है। भारत को इस दिशा में अभी शुरुआत करनी है। लेकिन,इन दोनों देशों से अलग जमैका के लिए खेल, अपराध, ड्रग्स और बदहाली से पार पाने का जरिया है। शायद इसीलिए बोल्ट एंड कंपनी की कामयाबियां पूरे ओलंपिक पर हावी हैं। इस हद तक कि अब बीजिंग से लंदन के बीच हर गुजरते पल में हम इन्हें अपनी यादों में साकार करते रहेंगे, एक बार नहीं बार-बार।
Saturday, August 23, 2008
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4 comments:
अच्छी रिपोर्ट और विश्लेषण भी खूब है। बधाई एवं शुभकामनाऎं।
बहुत बढ़िया।
बेहतरीन रपट .
बोल्ट और उसके खेल के प्रति प्यार और इज़्ज़त बढ़ गई आपका पोस्ट पढ़कर...और एक भूख भी जमैका को...बोल्ट को...दौड़ को और खेल को और जानने की...फिलहाल तो यही लग रहा है कि 'खेल' शब्द बहुत बड़ा है...इसलिए कम से कम इसके एक हिस्से दौड़ में रुचि और जानकारी बढ़ाउंगा...इसपर आपके पोस्ट का इंतज़ार रहेगा...'समय' में (आपके साथ बहुत कम दिन) काम करते हुए मैं ढूंढ़ता था कि आपके अंदर का खेल पत्रकार कहां है...वो अब मिला है।
शुक्रिया एनपी सर।
आपकी ये पारी पसंद आई।
फिलहाल मैं बोल्ट के बारे में और जानकारी तलाशने जा रहा हूं।
नीरज (...अगर आपको याद हो तो)
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