ऐसा नहीं था कि उससे बेहतर स्ट्रोक पहले नहीं देखा था। ऐसा भी नहीं था कि इससे बड़ा स्ट्रोक फिर देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन इसके बावजूद कोलंबो की ढलती दोपहर में प्रेमदासा स्टेडियम पर सुरेश रैना का जमाया आसमानी स्ट्रोक मेरे जहन में ठहर गया है। अजंता मेंडिस की गेंद पर डीप मिडविकेट को पार करती गेंद का दायरा सिर्फ छह रनों में ही नहीं सिमटा था। ये स्ट्रोक भारतीय बल्लेबाजी की सोच से भरपूर था। ऐसा स्ट्रोक,जो मेंडिस की पहेली से उलझे तारों को सुलझाने की आहट दे रहा था। दो महीने से भारतीय बल्लेबाजों को मोहपाश में बांध देने वाले मेंडिस से पार पाने की यह शुरुआत थी। इसलिए,ये स्ट्रोक एक तस्वीर की मानिद दर्ज हो गया है। फिर,ये सिर्फ एक तस्वीर ही नहीं रही। ये स्ट्रोक मुझे यादों के कारवां की ओर मोड़ ले गया। बीते तीन दशक के दौरान भारतीय क्रिकेट को लेकर मेरी यादों में रच बस गए कुछ चुनिंदा स्ट्रोक मेरे जेहन में उभार लेने लगे।
यादों की इस कड़ी में जेहन में सबसे पहले उभार लेती तस्वीर 25 साल पहले लॉर्ड्स की ओर ले गई। श्रीकांत के बल्ले से निकला स्क्वायर ड्राइव। वेस्टइंडीज के खिलाफ वर्ल्ड कप फाइनल मुकाबले में एंडी रॉबर्ट्स के खिलाफ एक पैर पर बैठकर इस स्ट्रोक में श्रीकांत की लाजवाब टाइमिंग थी। गेंद की लेंथ को कहीं बहुत पहले भांपती तेज निगाह थी। साथ ही था,नफासत का बेहतरीन समावेश। लेकिन,इन सबसे भी आगे थी, इस स्ट्रोक के साथ दिखायी देती कपिल की टीम की सोच। ये ऐलान करती हुई कि वो क्लाइव लॉयड की वर्ल्ड चैंपियन टीम के सामने हारी हुई बाजी खेलने नहीं उतरी है। गुड लेंथ स्पॉट से भी बाउंसर फेंकने में बेजोड़ एंडी रॉबर्ट्स को एक पांव पर बैठ जमाए इस स्ट्रोक में यही गूंज लॉर्ड्स के मैदान से पूरे देश में हर टेलीविजन सेट पर महसूस की गई।
यादों की इस गली में श्रीकांत के इस स्ट्रोक से पहले एक छोर पर संदीप पाटील खड़े हैं,तो दूसरे छोर पर सुनील मनोहर गावस्कर। 1981 की शुरुआत का महीना था। संदीप पाटील ने डेनिस लिली के तूफान पर उससे भी दोगुनी ताकत से प्रहार किया था। वो भी अपने करियर के महज चौथे टेस्ट में। इतना ही नहीं, इससे ठीक पहले सिडनी में लेन पॉस्को की गेंद पर लहूहुहान होकर पाटील 65 रन की पारी को अधूरा छोड़ पैवेलियन लौटे थे। लेकिन, एडिलेड ओवल में अगले ही टेस्ट में इस चोट से बेपहरवाह पाटील जवाबी हमले के लिए तैयार थे। लिली और लेन पॉस्को के तूफान के सामने 240 गेंदों पर 174 रन की पारी में आप उनके जवाबों को पड़ सकते हैं। लेकिन,इस बेमिसाल पारी में भी लिली के खिलाफ खेला गया एक स्ट्रेट ड्राइव पाटील की पारी की कहानी बयां कर देता है। इस पारी को मैंने सिर्फ रेडियो कमेंट्री के जरिए सिर्फ अपनी कल्पनाओं में गढ़ा था। उस वक्त मैं किसी एक स्ट्रोक पर अपनी मुहर नहीं लगा पाया था। लेकिन,अगले दिन अखबारों में पाटील के स्ट्रेट ड्राइव से फॉलोथ्रू में खुद को बचाते लिली की तस्वीर में पाटील की सोच को नए सिरे से गढ़ने का मौका मिला था।
दूसरी ओर,वर्ल्ड कप के ठीक बाद दिल्ली के फिरोजशाह कोटला पर सुनील गावस्कर का मार्शल की गेंद पर स्क्वायर लेग और फाइन लेग के बीच से जमाया हुक 25 साल बाद भी यादों में धुंधला नहीं पड़ा है। ये मार्शल की एक ऐसी गेंद थी,जिसे गावस्कर चाहते तो बेहद आसानी से नीचे झुककर विकेट कीपर डुजो के हाथों में जाने देते। गावस्कर इस दौर में अपनी बल्लेबाजी से हुक स्ट्रोक को कुछ कम कर चुके थे। फिर,हमने गावस्कर को थॉमसन और लिली के खिलाफ आखिरी क्षणों में भी बल्ले को गेंद की दिशा से अलग करते हुए बार बार देखने की आदत भी डाल ली थी। लेकिन,यहां कोटला पर गावस्कर को मार्शल को सीधे सीधे एक संदेश देना था। चार दिन पहले कानपुर टेस्ट की दूसरी पारी में मार्शल की गेंद पर उनके हाथ से छिटके बल्ले के बाद अचानक गावस्कर की तकनीक और भरोसा सवालों के घेरे में आ गया था। और कोटला पर जमाया ये हुक इन्हीं सवालों का जवाब दे रहा था। टेस्ट क्रिकेट में सिर्फ 128 गेंदों पर 121 रन की पारी अगर सुनील गावस्कर के बल्ले से निकले तो आप सोच सकते हैं कि गावस्कर किन इरादों के साथ मैदान में उतरे थे। और ये स्ट्रोक इन्हीं इरादों का आइना बनकर सबके सामने था। इस पारी में गावस्कर ने अपना विकेट मार्शल को नहीं थमाया था। गावस्कर का विकेट मिला था तो स्पिनर लेरी गोम्स को।
इसके बाद जावेद मियांदाद के बल्ले से एक ऐसा स्ट्रोक निकला,जिससे उबरने में भारत को डेढ दशक लग गया। 1986 में शारजाह में पाकिस्तान को भारत पर जीत के लिए आखिरी गेंद पर चार रन चाहिए थे। विकेट पर स्ट्राइक लेने के लिए जावेद मियांदाद थे। उनके सामने थे गेंदबाज चेतन शर्मा। कप्तान कपिल देव ने अपने फील्डर्स को इस कदर मैदान में तैनात कर दिया था कि मियांदाद के लिए ये चार रन मुश्किल ही नहीं नामुमकिन से दिखने लगे थे। पूरा भारत अपने टेलीविजन स्क्रीन पर दम साधे इस गेंद को देख रहा था। लेकिन,चेतन की एक फुलटॉस पर आसमानी स्ट्रोक खेलते हुए छक्के के सहारे मियांदाद ने अब तक की सबसे सनसनीखेज जीत दर्ज कर डाली थी।
मियांदाद के इस मनोवैज्ञानिक प्रहार से भारत को उबारा सचिन तेंदुलकर ने। 2003 के वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के शोएब अख्तर की गेंद को ठीक प्वाइंट के ऊपर से सीधे छह रन के लिए भेजते हुए। भारतीय पारी की सिर्फ दसवीं और शोएब के पहले ओवर की चौथी गेंद थी। लेकिन,ऑफ स्टंप के बाहर पड़ी इस गेंद पर तेंदुलकर का प्रहार इतना ताकतवर था कि पाकिस्तान के लिए इस मुकाबले में जीत दूर और दूर होती चली गई।
इन सब लेजेंड्स के बीच हो सकता है कि सुरेश रैना के इस स्ट्रोक को जगह देना जल्दबाजी हो। लेकिन,जिस मेंडिस ने भारत के गोल्डन मिडिल ऑर्डर से लेकर भारत की यंगिस्तान ब्रिगेड को अपने चक्रव्यूह में उलझाए रखा।वहां से निकलने की अगर शुरुआत को तलाशा जाएगा तो शायद सुरेश रैना का यही स्ट्रोक बार बार जेहन में उभार लेगा।
Monday, August 25, 2008
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