शिकस्त के बावजूद उसके होंठों पर मुस्कान तैर रही थी। ये अहसास कराते हुए कि बेशक बॉक्सिंग रिंग में वो एक मुकाबला हार गया है लेकिन उसके लिए खेल हार और जीत से आगे की बात है। खेल उसकी जिंदगी का वो हिस्सा है, जिसे वो हार और जीत की लकीरों को मिटाकर पूरी शिद्दत से जीता है। बीजिंग की ढलती शाम में बॉक्सिंग रिंग में भारत के अखिल कुमार क्वार्टर फाइनल में अपना अहम मुकाबला हारने के बाद बार बार कुछ ऐसा ही अहसास करा रहे थे। शिकस्त के बाद उनका ये कहना उनकी सोच को और मजबूती दे रहा था-“हार तो हार है,जीत जीत है। मैं हार गया हूं लेकिन मैं मुक्केबाज हूं। मैं इतना कमजोर नहीं कि हार को स्वीकार न कर सकूं। मेरी अपनी बेहतरीन कोशिश की लेकिन शायद ये मेरा दिन नहीं था।“ लेकिन जाते जाते अखिल के मुंह से एक कड़वा सच फूट ही पड़ा। “ प्लीज डोंट फॉरगेट मी। कृपया मुझे मत भूलना।“
सचमुच, इस शिकस्त से लिपटा ये कड़वा सच था,जिसने अखिल के अवचेतन में गहरे कहीं जगह बना ली। अखिल जानते थे कि बिना विक्ट्री पोडियम पर पांव रखे घर लौटने के बाद शायद सब कुछ भुला दिया जाएगा। 24 घंटे पहले तक सर आंखों पर बैठा रहे लोग भूल जाएंगे कि रेलवे में एक मामूली कर्मचारी के रुप में काम करने वाले इस शख्स ने रिंग में वर्ल्ड चैंपियन को शिकस्त दी थी।
अब,अखिल को रिंग के बाहर एक बड़ी जंग लड़नी होगी। एक बेहतर भविष्य के तलाश में दस्ताने पहनने के जुनून को नए सिरे से, नए हौसलों से भरना होगा। अपने परिजनों के बिखरे ख्वाबों को फिर समेटना होगा। उसकी ये जंग चार साल पहले एथेंस में मिली हार से शुरु हुई थी। अब,बीजिंग से वापस उड़ान भरने के साथ वो फिर नए सिरे से शुरु होगी।
शायद,भारतीय खेलों के बीते कल और आज के बीच अखिल के जेहन में ये सब कुछ जरुर चल रहा होगा। मुकाबले के शुरु में मिली हार आपको इतना नहीं झकझोरती,जितना एक बार उम्मीदों के परवान चढ़ने के बाद उनका बिखर जाना। अखिल को लेकर जेहन में चल रही इस उथल पुथल के बीच मेरे सामने अब से आठ साल पहले सिडनी ओलंपिक में ठीक इसी मोड़ से गुरुचरण को मिली शिकस्त आ खड़ी होती है। गुरुचरण अखिल की ही तरह ठीक क्वार्टर फाइनल मुकाबले में पहुंचे थे। इतना ही नहीं, गुरुचरण ने आखिरी चरण तक भारतीय उम्मीदों को बनाए रखा था। लेकिन,रेफरी के कुछ फैसलों ने गुरुचरण को अचानक विक्ट्री पोडियम से दूर ढकेल दिया था। इस शिकस्त ने गुरुचरण के हौसलों को इस कदर तार तार कर दिया कि वो कभी देश लौटे ही नहीं। पिछले आठ साल के दौरान उनके विदेश में बसने की खबर जरुर छन छन कर आती रहीं। लेकिन,हमारी उम्मीदों को परवान चढ़ाते गुरुचरण को वापस रिंग में देखने का ख्वाब पूरा नहीं हो सका।
ठीक इसी ओलंपिक में पौलेंड के खिलाफ आखिरी लीग मुकाबले में भारतीय हॉकी टीम बढ़त लिए हुए थी। इस बढ़त को बरकरार रख भारत 20 साल बाद सेमीफाइनल में जगह बनाने की कगार पर था। लेकिन,यहां पौलेंड के एक जवाबी हमले पर कप्तान रमनदीप जैसा भरोसेमंद सेंटरहाफ भी एक लम्हे के लिए लड़खड़ाया। ठीक उनके पैरों के बीच से गेंद निकली और भारत का ख्वाब तार तार हो गया। पोलेंड के इस बराबरी के गोल ने भारत की चुनौती को लीग मुकाबलों में ही रोक दिया। रमनदीप भी इस मुकाबले के बाद अपने चहेते खेल से अचानक दूर चले गए। कुछ साल पहले उन्होंने एक बार फिर इसमें वापसी की कोशिशें शुरु की हैं-बतौर कोच।
अखिल को गुरुचरण और रमनदीप से अलग रास्ता चुनना होगा। ऐसा रास्ता,जो सबके लिए मिसाल बने। हमें भी बीजिंग से वापस लौटते अखिल की जंग में साथ खड़ा होना होगा। उसे ये हौसला देना होगा कि वो एक नए सिरे से खड़े होकर लंदन में इस बिखरे ख्वाब को फिर साकार कर सकता है। वर्ल्ड चैंपियन को शिकस्त देकर हमें मेडल का ख्वाब दिखाने वाले अखिल को हम भुला नहीं सकते। फिर, जैसा अखिल का कहना है कि मेरे नाम का मतलब ही है-न टूटने वाला। तो अखिल, तम्हें टूटना नहीं है !
Tuesday, August 19, 2008
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7 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
सादर अभिवादन
पहले तो हिन्दी ब्लोग्स के नए साथियों में आपका असीम स्वागत है
दूसरे आपकी अच्छी रचना के लिए बधाई
चलिए अपने परिचय के लिए अभी मैंने एक गीत ब्लॉग पे डाला है उसकी कुछ पंक्तियाँ भेज रहा हूँ
देखियेगा
और कुछ है भी नहीं देना हमारे हाथ में
दे रहे हैं हम तुम्हें ये "हौसला " सौगात में
हौसला है ये इसे तुम उम्र भर खोना नहीं
है तुम्हें सौगंध आगे से कभी रोना नहीं
मत समझना तुम इसे तौहफा कोई नाचीज है
रात को जो दिन बना दे हौसला वो चीज है
जब अकेलापन सताए ,यार है ये हौसला
जिंदगी की जंग का हथियार है ये हौसला
हौसला ही तो जिताता ,हारते इंसान को
हौसला ही रोकता है दर्द के तूफ़ान को
हौसले से ही लहर पर वार करती कश्तियाँ
हौसले से ही समंदर पार करती कश्तियाँ
हौसले से भर सकोगे जिंदगी में रंग फ़िर
हौसले से जीत लोगे जिंदगी की जंग फ़िर
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में
आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में
डॉ उदय मणि कौशिक
http://mainsamayhun.blogspot.com
ये सच है कि अखिल को रिंग के बाहर एक बड़ी जंग लड़नी होगी। जीतनी भी होगी।
ब्लागजगत में स्वागत है। वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो सुविधा होगी।
सभी प्रकार के अंत अपने साथ नइ शुरुआत का संदेश लेकर आते है।
अच्छा लिखा है। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। लगातार लिखते रहें।
नए चिट्टे की बहुत बहुत बधाई, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी चिट्टा जगत को समृद्ध करें...
आपका मित्र
सजीव सारथी
आवाज़
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