Thursday, December 18, 2008

टीम इंडिया के ड्रेसिंग रुम में छिपा है जीत का फलसफा


मैं कुछ देर के लिए अब से 13 साल पहले लौटना चाहता हूं- जमैका के सबीना पार्क की ओर। टेलीविजन के पर्दे से ज़ेहन में ठहर गई तस्वीरों की ओर। कुछ देर के लिए वक्त को अपनी मुठ्ठी में भींच कर खड़ी तस्वीरें। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टइंडीज पर जीत के बाद ड्रेसिंग रुम में जश्न में डूबे मार्क टेलर और उनके साथियों के चेहरे पर तैरती एक असीम खुशी 13 साल बाद भी सिर्फ कल ही की बात लगती है। उस वक्त पहली बार मैंने देखा था टेलीविजन के पर्दे पर खिलाड़ियों के ड्रेसिंग रुम को पहुंचते हुए। 22 साल बाद वेस्टइंडीज को उसी के घर में शिकस्त देने के ऐतिहासिक लम्हों की जीवंतता से रुबरु कराते हुए।

13 साल बाद खुशी से सराबोर ऐसे ही लम्हों को चेन्नई के चेन्नास्वामी स्टेडियम पर धोनी और उसके साथी जी रहे थे। फर्क सिर्फ इतना था कि कैमरा इस तरह उन तक नहीं पहुंचा था। लेकिन, सचिन तेंदुलकर से लेकर वीरेन्द्र सहवाग तक, युवराज सिंह से लेकर अमित मिश्रा तक और हरभजन सिंह से लेकर प्रज्ञान ओझा और बद्रीनाथ तक, धोनी की टीम का हर एक सदस्य इंग्लैंड पर मिली ऐतिहासिक जीत के जश्न को विराम नहीं देना चाहता था।

लेकिन, आप सोच रहे होंगे कि मैं इन 13 साल को क्यों एक-दूसरे से जोड़ कर देखना चाह रहा हूं। मैं सबीना पार्क पर ड्रेसिंग रुम तक पहुंचे टेलीविजन कैमरे के जरिए मार्क टेलर और उनके साथियों के चेहरे से बहती खुशी के बीच ऑस्ट्रेलियाई टीम के जीत के सूत्र तलाशने की कोशिश कर रहा था। इधर चेन्नई में भी भारतीय ड्रेसिंग रुम में धोनी के इस विजयी टीम के समीकरण उभार ले रहे थे।

दरअसल, चेन्नई में इंग्लैंड के एक नामुमकिन से लक्ष्य तक पहुंचाने में वीरेन्द्र सहवाग से लेकर सचिन तेंदुलकर और युवराज सिंह तक की बेजोड़ पारियां अहम थीं। मैच के बाद हर कोई इन जैसे व्यक्तिगत प्रदर्शनों के आसपास भारतीय जीत के गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में जुटा है। लेकिन, जीत के जश्न की गूंज में वीरेन्द्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर का एक अहम बयान कहीं खो गया। इन दोनों का कहना था कि इस वक्त भारतीय ड्रेसिंग रुम का माहौल इस कदर बेहतरीन है, जैसा पहले कभी नहीं रहा।

दरअसल, इन्हीं बयानों में भारतीय टीम की सोच का फलसफा छिपा है। गौर कीजिए- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरिज जीत के बाद भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का कहना था कि टीम की असली ताकत इसी में है कि टीम का हर सदस्य एक दूसरे की कामयाबी में खुशी ढूंढ ले। ठीक इसी सूत्र को पकड़ धोनी की ये टीम भारतीय क्रिकेट में नयी इबारतें लिखने की ओर बढ़ रही है। राहुल द्रविड़ अपने करियर के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। उनके टीम में बने रहने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। लेकिन, आप सचिन तेंदुलकर के बयान पर गौर कीजिए। वो कहते हैं "राहुल सिर्फ एक अच्‍छा बल्लेबाज नहीं, एक महान बल्लेबाज है।" साफ है कि अपनी निजी और टीम की कामयाबी के बीच हाशिए पर छूट रहे अपने कल के साथी को कोई इस कदर हौंसला दे रहा है। उसे एक बार उसके बेहतर दिनों की ओर लौटा ले जाने के लिए।

दूसरी ओर सिर्फ अपना चौथा टेस्ट खेल रहे अमित मिश्रा के लिए हरभजन सिंह की सोच को देखिए। उनका कहना था, कुंबले जैसे शख्सियत की जगह को भरना आसान नहीं है, लेकिन अमित मिश्रा भी बहुत अच्छा गेंदबाज है, और हम सब उसकी मदद करना चाहते हैं। उसके पास गेंदबाजी का हरसंभव वेरिएशन है। यानी तेंदुलकर से लेकर हरभजन तक, हर खिलाड़ी अपने से पहले अपने साथी के लिए, अपनी टीम के लिए खड़ा दिखाई दे रहा है। यही टीम इंडिया की असली ताकत है, जिसकी पहली झलक ड्रेसिंग रुम में ही दिखाई दे जाती है।

ये इस ड्रेसिंग रुम की ही ताकत है, जो अनिल कुंबले की अचानक विदाई को भारतीय क्रिकेट के एक बेमिसाल लम्हे में तब्दील कर देती है। ये इसी ड्रेसिंग रुम से उभार लेती सोच है, जो भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे बड़े कप्तान सौरव गांगुली को एक यादगार विदाई देती है। ये भी ड्रेसिंग रुम में एक-दूसरे से जुड़े गहरे तार हैं, जो आरपी सिंह को टीम से बाहर करते ही कप्तान धोनी के कथित तौर पर इस्तीफे की पेशकश की शक्ल में सामने आते हैं।

इसी ड्रेसिंग रुम में कोच गैरी कर्स्टन खड़े हैं। वीरेन्द्र सहवाग की नजर में 'मैन टू मैन' मैनजमेंट में वो जॉन राइट को पीछे छोड़ते हैं। इशांत शर्मा के मुताबिक, जब भी आपका खेल उम्मीदों से नीचे गिरता है तो सबसे पहले आपके करीब खड़े होते हैं कोच कर्स्टन। टीम को एक यूनिट में तब्दील करते दक्षिण अफ्रीका के पूर्व सलामी बल्लेबाज। यहीं आप याद कीजिए ग्रेग चैपल को। भारतीय टीम को वर्ल्ड चैंपियन बनाने की हुंकार के बीच ज़िम्मेदारी संभालने वाले ग्रेग के दौर में भारतीय टीम जितना जीती, उससे ज्यादा दरारें भी सामने आती गईं।

धोनी की इस टीम इंडिया में बेशक सचिन तेंदुलकर, वीरेन्द्र सहवाग, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण से लेकर हरभजन सिंह, जहीर खान और युवराज सिंह जैसे सीनियर खिलाड़ी मौजूद हैं, लेकिन धोनी की अगुआई में जब ये मैदान पर कदम रखते हैं तो सब सिर्फ एक खिलाड़ी में तब्दील हो जाते हैं। वो खिलाड़ी, जो जीत के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हों। इसलिए, धोनी भारतीय क्रिकेट में बाकी कप्तानों से अलग पायदान पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। न सिर्फ नतीजों में, बल्कि अपनी सोच के साथ भी। यही टीम इंडिया की जीत का सबसे बड़ा सूत्र भी है।

दिलचस्प है कि 13 साल पहले ही ऑस्ट्रेलिया के शिखर पर पहुंचने की शुरुआत सबीना पार्क पर मिली उस जीत से हुई थी। 13 साल बाद चेन्नई के चेपक पर मिली इस जीत में वैसे ही शिखर की ओर बढ़ते कदमों की आहट सुनाई दे रही है।

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