Tuesday, December 16, 2008

आखिर क्यों न जीना चाहें इस बेखौफ सहवाग को गावस्कर !

वो सचिन तेंदुलकर के टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी के शिखर पर काबिज होने का लम्हा था। इस मौके पर सचिन टेलीविजन चैनल पर सुनील गावस्कर के साथ बैठे थे। एंकर राजदीप सरदेसाई ने इन दोनों लेजेंड की उपलब्धियों से गुजरते हुए बातचीत को कुछ अधूरे छूट गए ख्वाब की ओर मोड़ दिया था। उन्होंने गावस्कर से जानना चाहा कि अगर आज भी आपको मौका मिले तो किसकी तरह बल्लेबाजी करना चाहेंगे। टेस्ट क्रिकेट में करीब करीब हर मुमकिन शिखर तक जा पहुंचे गावस्कर का जवाब था- वीरेन्द्र सहवाग। क्यों ? गावस्कर का जवाब था- ही इज फियरलैस। भय से कोसो दूर खड़े होकर वो बल्लेबाजी करते हैं। गावस्कर की नजर में उनकी ये एप्रोच बेमिसाल है।

वीरेन्द्र सहवाग ने बेखौफ अंदाज में बल्लेबाजी करते हुए ढेरो पारियां खेली हैं, और अपनी शख्सित को भी इस एक शब्द के साथ जोड़ दिया है। लेकिन, गावस्कर के मुंह से निकले इन शब्दों के बाद मैं बराबर इस बेखौफ सहवाग से फिर रुबरु होना चाहता था। चेन्नई के चेपक पर अपने स्ट्रोक्स की गूंज के बीच अपनी शख्सियत को परवान चढ़ाते हमारे सामने थे सहवाग। कुछ इस अंदाज में कि चेपक से मेरे जेहन में जुड़ी दिलीप मेंडिस और सचिन तेंदुलकर की बेजोड़ पारियां भी पृष्ठभूमि में छूट गईं।

रविवार की ढलती दोपहर में सहवाग जब विकेट पर पहुंचे तो इंग्लैंड का जीत के लिए दिया 387 रन का लक्ष्य सामने था। एक ऐसा स्कोर, जो इतिहास के पन्नों के बीच चौथी पारी में रनों का पीछा करने के हौसले को तार-तार कर देता है। भारत में अब तक वेस्टइंडीज ही सबसे ज्यादा 275 रनों तक पहुंच सका है। फिर, इस 387 रनों के पहाड़ के बीच चेपक की टूटती और घूमती विकेट भी मौजूद थी। गेंद के टप्पा खाने के बाद उछलती धूल में आप इसे महसूस कर सकते थे। फिर, ये वो भारतीय टीम थी, जहां सहवाग के पीछे तीसरे नंबर पर राहुल द्रविड़ मौजूद तो थे, लेकिन वो राहुल द्रविड, जो अपने सुनहरे करियर के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। भारत के लिए कितनी ही जीत के धुरी रहे द्रविड़ रनों से ज्यादा अब अपने कहीं बहुत पीछे छूट चुके आत्मविश्वास को तलाशने में जुटे हैं। इन सब सवालों और आशंकाओं से पहले खुद सहवाग भी चौथी पारी में बहुत कामयाब नहीं रहे हैं। वो चौथी पारी में अपनी करियर औसत 52 रन से कहीं बहुत पीछे महज 30 का औसत ही बना पाए हैं। इस दौरान भी वो सिर्फ तीन बार ही पचास रन से आगे जा सके थे।

लेकिन, सहवाग ने पहली ही गेंद से इन सब आशंकाओं और खौफ को हाशिए पर ढकेल दिया। उनकी बेमिसाल टाइमिंग के सामने हार्मिंसन की तेजी से लेकर मोंटी पनेसर की स्पिन तक, कोई भी गेंद असर नहीं छोड़ रही थी। कप्तान पीटरसन की फील्ड प्लैसमेंट खारिज हो रहा थी। थर्ड मैन के ऊपर से वो हार्मिंसन को छक्का जमाने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखा रहे थे। सिर्फ पांचवे ओवर में ही गेंदबाजी का मोर्चा संभालने पहुंचे पनेसर की गेंद को फुलटॉस बनाकर सहवाग स्क्वेयर लेग के ऊपर से स्टैंड में भेज रहे थे। मजबूरन ओवर द विकेट गेंदबाजी करते हुए पैड पर लगी गेंद पर जोरदार अपील करते पनेसर में आप इंग्लैंड की हताशा को पढ़ सकते थे।

सीमा रेखा के अंदर इंग्लैंड की टीम हो या सीमा रेखा के बाहर क्रिकेट के जानकर या आम चाहने वाले सभी के लिए ये करिश्माई बल्लेबाजी थी,जिसे सिर्फ सहवाग ही साकार कर सकते हैं। लेकिन, खुद सहवाग का कहना था- मैं तो बिलकुल अपना सहज स्वाभाविक खेल रहा था। इंग्लैंड के गेंदबाज मुझे स्ट्रोक खेलने के लिए जगह दे रहे थे, और मैं अपने स्ट्रोक खेल रहा था।

इस बेखौफ सहवाग की बल्लेबाजी का आलम ये था कि महज पंद्रह गेंदों में ही वो छह चौके जमा चुके थे। क्रिकेट जानकार हैरत में कुछ देर पहले इंग्लैंड के लंच के बाद के 21 ओवरों का हिसाब-किताब जुटा रहे थे। मुकाबले में हावी होने के बावजूद इंग्लैंड के बल्लेबाज इस दौरान सिर्फ 57 रन ही जोड़ पाए थे, और दो बार ही गेंद को सीमा रेखा के बाहर भेज पाने में कामयाब हो पाए थे। दूसरी ओर सहवाग ने गंभीर के साथ इतने ही ओवर में 14 चौकों और चार आसामानी छक्कों के साथ भारतीय पारी को 100 रनों के पार ला खड़ा किया था।

हैरान-परेशान कप्तान पीटरसन ने ऑफ स्पिनर स्वान के लिए मिडविकेट और लांगऑन समेत सीमा रेखा पर तीन फील्डर खड़े किए थे। लेकिन, इस व्यूह रचना से बेपरवाह सहवाग ने ठीक लांग ऑन के ऊपर से छक्का जमाकर करारा जवाब दिया। हालांकि, अगली ही गेंद पर स्वान ने सहवाग को एलबीडल्लू कर अपना हिसाब चुकता कर लिया। ऑफ स्टंप के बाहर से पिच होकर अंदर आती गेंद पर स्कवेयर लेग के ऊपर से उड़ाने के फेर में सहवाग चूक गए। पैवेलियन लौटते सहवाग या तो अपने स्ट्रोक खेलने के फैसले से नाराज थे या अंपायर के फैसले से, कहना मुश्किल है। लेकिन, खुशी में सराबोर इंग्लैंड खेमे के लिए ये हाथ से छिटकते मैच को वापस पकड़ लेने की शुरुआत थी।


आखिर, सहवाग के वापस लौटते हुए विकेट पर गेंद एक बार फिर घूम रही थी। एक बार फिर बल्लेबाज उछाल से परेशान थे। बल्लेबाज के लिए हर रन एक बड़े 22 गज के फैसले में तब्दील हो रहा था। और यही पहलू बेखौफ सहवाग की शख्सियत को चेपक पर एक नया आयाम दे रहा था। मैच के चौथे दिन का खेल खत्म होने पर दोनों पारियों में शतक जमाने मे वाले स्ट्रॉस की उपलब्धियां भी कुछ देर के लिए पीछे छूट गई थीं। कॉलिंगवुड का संघर्षपूर्ण शतक भी फिलहाल याद नहीं आ रहा था। अब सबको इंतजार था चेपक पर पांचवे दिन के रोमांच का। क्या भारत के बल्लेबाज बाकी बचे 256 रन बनाने मे कामयाब हो पाएंगे? क्या पीटरसन सोमवार की सुबह भारत को शुरुआती झटके देते हुए इंग्लैंड को जीत की ओर ले जाएंगे? रविवार की दोपहर तक एकतरफा दिख रहा मुकाबला अब बराबरी के मुकाबले में तब्दील हो गया था। इस नामुमकिन को मुमकिन में बदलने की राह तैयार की वीरेन्द्र सहवाग ने। बेखौफ वीरेन्द्र सहवाग ने। यही वीरेन्द्र सहवाग की शख्सियत का सार है। बल्ले के स्ट्रोक की गूंज से बहकर आते वीरेन्द्र सहवाग। अब आप भी महसूस कर सकते हैं कि आखिर सुनील मनोहर गावस्कर के लिए ये बेखौफ सहवाग एक अधूरे ख्वाब की तरह क्यों है।

1 comment:

cartoonist ABHISHEK said...

NPji aapka lekhan batata hai ki cricket vakai aapke liye junoon hai, khoob doobkar likhte hen aap..... BADHAI.