Monday, March 30, 2009

नया इतिहास लिखने के लिए ही बने हैं धोनी

कभी गेंद पर पूरी ताकत से प्रहार कर उसे सीमा रेखा से बाहर भेजते हुए। कभी गेंद को क्षेत्ररक्षण के बीच मौजूद दरार में धकेल तेजी से बाइस गज का फासला तय करते हुए। कभी विकेटकीपर की सामान्य कद काठी से जुदा अपने गठीले बदन से गेंद की दिशा में छलांग लगाते हुए।कभी विकेटकीपिंग के लिए पंजों के बल स्टास लेने से ठीक पहले मैदान पर सजायी फिल्डिंग का मुआयना करते हुए। कभी अखबार के पन्नों पर छपे विज्ञापनों के जरिये ख़बरों से पहले निगाहों में धंसते हुए। कभी टेलीविजन स्क्रीन पर शाहरुख खान के कदमों से कदम मिलाते हुए। तो कभी तमिल सुपरस्टार रजनीकांत के अवतार में खुद को ढालते हुए। क्रिकेट की सीमारेखा के आर-पार महेंद्र सिंह धोनी की ये छवियां एक आम भारतीय की जेहन में कभी ना कभी दस्तक जरूर दे जाती हैं। उत्तर में उत्तराखंड की पृष्ठभूमि से लेकर पूर्व में झारखंड का परिवेश और दक्षिण में चेन्नई सुपरकिंग की कप्तानी की राह में धोनी, राज्य, भाषा और समुदाय की लकीरों को मिटाते हुए, एक अरब उम्मीदों को परवान चढ़ाते हमसे रू-ब-रू होते हैं।

लेकिन धोनी को लेकर मेरी सोच इन स्थापित छवियों से आगे जाकर २०-२० वर्ल्ड कप को जीतते और आईपीएल में हाथ से छिटके टाइटल के बाद उभार लेते एक अलहदा धोनी के इर्द-गिर्द सिमट जाती है। २०-२० वर्ल्ड कप में मिली खिताबी जीत के साथ ही भारतीय टीम जश्न में सराबोर है, लेकिन निगाहें भावनाओं के सैलाब से परे विकेट की ओर बढ़ते धोनी पर ठहर जाती हैं। आईपीएल के खिताबी मुकाबले की आखिरी गेंद पर राजस्थान रॉयल्स को एक रन बनाने से रोकने की चुनौती है। उस निर्णायक लम्हे में विकेटकीपर पार्थिव पटेल के दस्तानों से गेंद छिटकी और साथ ही चेन्नई सुपरकिंग्स के हाथ से खिताब। नवी मुंबई का डी वाई पाटिल स्टेडियम शेन वॉर्न की टीम के साथ जश्न में डूब गया। लेकिन अगले ही पल हार को पीछे छोड़ धोनी साथियों के कंधों को थपथपाते हैं। चेन्नई सुपरकिंग्स के सभी खिलाड़ी एक दूसरे के कंधों पर हाथ डाले घेरे की शक्ल ले लेते हैं। जीत के जश्न के बीच शिकस्त खाई धोनी की इस टीम से आप निगाहें हटा नहीं सकते।

दरअसल ये दो तस्वीरें टीम इंडिया के कप्तान धोनी की सोच का आइना हैं। ये हार और जीत के पार खड़े धोनी के करीब ले जाती छवियां हैं। इन छवियों के बीच क्रिकेट जिंदगी और मौत नहीं हैं। ये जश्न और मातम नहीं है। ये सिर्फ एक खेल है और यहां एक की जीत और दूसरे की हार तय है। आपको पूरी तरह अपने खेल में डूब कर जीत तक पहुंचने की हर मुमकिन कोशिश करनी है।

धोनी सोच के इस धरातल पर पूर्व क्रिकेटर और कोच ग्रेग चैपल की थ्योरी को मैदान पर साकार करते दिखाई देते हैं। चैपल का मानना है कि आपको नतीजों से बेपरवाह होकर सिर्फ और सिर्फ अपने खेल को डूब कर जीना चाहिये। इसकी प्रक्रिया का आनंद लेना चाहिये। धोनी पूरी शिद्दत से इसी कोशिश में जुटे रहते हैं।

इसलिए जब हार और जीत एक साथ दस्तक देने लगें तो धोनी का खेल परवान चढ़ता है। बल्लेबाजी के मोर्चे पर वो टीम को मंजिल तक पहुंचाए बिना नहीं लौटते। मैच के मोड़ के मुताबिक वो अपनी बल्लेबाजी को ढालते हैं। अगर टीम को बड़े स्ट्रोक्स की दरकार है तो वो इसमें कतई वक़्त नहीं गंवाते। वनडे ही नहीं टेस्ट में इस धोनी से रू-ब-रू हो सकते हैं। मिसाल के लिए धोनी ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ मोहाली टेस्ट में ८वें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए ९२ रन की ताबड़तोड़ पारी खेलते हैं। ८ चौकों और ४ छक्कों से सजी इस पारी के सहारे सौरव गांगुली के साथ सातवें विकेट की शतकीय साझेदारी पूरी करते हैं। अपनी टीम को एक शुरुआती एडवांटेज दिलाते हैं । यही धोनी अगली पारी में तीसरे नंबर पर मोर्चा संभालते हैं। ८४ गेंदों पर ५५ रन की ठोस पारी से पॉन्टिंग की विश्व विजयी टीम को बैकफुट पर ला खड़ा करते हैं।

धोनी की इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि टेस्ट में उनकी ३३ रन की कुल औसत कप्तान धोनी के बल्ले से ५५ में तब्दील हो जाती है। वनडे में ४४ की औसत को वो कप्तानी में 57 तक खींच ले जाते हैं। इस मोड़ पर धोनी सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ से आगे जा निकलते हैं। भारत में इन दोनों महानायकों ने अपनी बल्लेबाजी की लय को वापस पाने के लिए कप्तानी से किनारा कर लिया। लेकिन धोनी ने कप्तानी की चुनौती को स्वीकारते हुए अपनी बल्लेबाजी में नए आयाम जोड़ लिये हैं।

शायद धोनी ने टीम को कामयाबी की दहलीज तक लाने के सूत्र रांची में स्थानीय टीमों के लिए खेलते हुए पकड़े होंगे। टीम की जीत सीधे-सीधे धोनी के प्रदर्शन से जुड़ी रही होगी। धोनी इसी सोच को आज अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विस्तार देते दिखाई देते हैं। लेकिन अपनी कामयाबी को वो अपने हर एक साथी के साथ साझा करना चाहते उनका मानना है कि “मेरी कामयाबी के मायने तभी हैं जब साथी खिलाड़ी इसमें अपनी खुशी तलाशें। हम सब एक दूसरे की कामयाबी में खुशी तलाशें”। ये बड़ी सोच धोनी की बहुत बड़ी ताकत है। गेंदबाजी के रनअप पर ईशांत शर्मा के कदम जरा से लड़खड़ाए नहीं कि जहीर खान उनके पास पहुंच जाते हैं। युवराज को उनकी लय में लौटाने के लिए सचिन आगे बढ़ कर मदद करते हैं। आपसी तालमेल का ही ये आइना है कि तेंदुलकर ने हैमिल्टन की ऐतिहासिक जीत के बाद दोहराया - इस भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम का माहौल बेहतरीन है। हम खेल का आनंद ले रहे हैं और परिवार की तरह एक दूसरे के साथ जुड़े हैं।

ये उस देश की क्रिकेट टीम का ड्रेसिंग रूम है जिसमें अहम के टकराव की ढेरों कहानियां हैं। इतिहास के पन्ने विजय मर्चेंट-विजय हजारे, विजय हजारे-लाला अमरनाथ, मंसूर अली खान पटौदी-चंदू बोर्डे, सुनील गावस्कर-कपिल देव, अजहरूद्दीन-नवजोत सिंह सिद्धू और सौरव गांगुली-ग्रेग चैपल के टकराव के किस्सों से भरे हैं। मगर मौजूदा टीम अलग है। दिलचस्प है कि हैमिल्टन टेस्ट जीतने वाली टीम में मुनाफ पटेल और ईशांत शर्मा को छोड़ दें तो बाकी आठ खिलाड़ियों का करियर धोनी से पहले शुरू हुआ।

धोनी की इस बेमिसाल कामयाबी के सूत्र टटोलते पूर्व भारतीय कप्तान और कोच अजीत वाडेकर का मानना है कि धोनी अपने सीनियर्स के अहम पर कभी चोट नहीं करते। खुद धोनी अपने बयान से इसे एक नया विस्तार देते हैं। हैमिल्टन की जीत के बाद धोनी ने कहा कि “उम्मीद करनी चाहिये की हम ये सीरीज जीत जाएं, ये हमारी ओर से सचिन और राहुल को एक सौगात होगी”। इस सम्मान और श्रद्धा के बाद कौन ऐसे कप्तान को अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं देना चाहेगा। यही वजह है कि बीस साल बाद भी सचिन तेंदुलकर अपनी जीनियस की छाप छोड़ रहे हैं। वीरेंद्र सहवाग बेहतरीन फॉर्म में दिख रहे हैं। जहीर खान में वसीम अकरम की आक्रामकता और पैनेपन की झलक नज़र आ रही है। ईशांत शर्मा और गौतम गंभीर जैसे युवा खिलाड़ी अपने कप्तान की उम्मीदों पर खरा उतरने में कोई कसर नहीं रहे ।


इन कामयाबियों और सोच के बीच आगे बढ़ते धोनी को क्रिकेट आलोचक टाइगर पटौदी के बराबर खड़ा कर रहे हैं। साठ के दशक की शुरुआत में कप्तानी संभालने वाले पटौदी ने भारतीय क्रिकेट को ड्रॉ की मानसिकता से उबारते हुए जीत की नई सोच से भर डाला था। क्रिकेट इतिहासकार मिहिर बोस के मुताबिक पटौदी से पहले भारतीय क्रिकेट में ड्रॉ को एक संभावित नतीजे की तरह देखा जाता था। टाइगर पटौदी ने जीतना सिखाया ना सिर्फ घर में बल्कि घर के बाहर भी।

पटौदी ने टीम में जीतने का भरोसा जगाया तो सौरव गांगुली ने जीत की भूख पैदा की। धोनी गांगुली की इसी विरासत को और आगे बढ़ाते दिखते हैं। गांगुली ने इस दशक की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया को हराते हुए विदेश में जीत की नई इबारतें लिखनी शुरू कीं। न्यूजीलैंड एक अपवाद की तरह छूट गया। धोनी ने ३३ साल बाद यहां टेस्ट जीत कर इस खालीपन को भी भर दिया है।

कामयाबियों के शिखर से गुजरते धोनी की बस एक ही छवि हमारे जेहन में हावी होती जा रही है। वो छवि है कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की। कप्तानी, जो उन्हें टीम इंडिया के एक नाजुक दौर में सौंपी गई। लेकिन धोनी ने खुद को उस भूमिका में ऐसे ढाल लिया जैसे वो नेतृत्व करने और एक नया इतिहास लिखने के लिए ही बने हों।

1 comment:

Sachi said...

बहुत सुन्दर लेख, और प्रशंसा से भरपूर.. मालूम होता है कि धोनी आपके आदर्श हैं..