यह धीरे धीरे नियति से समझौता करते कप्तान मैकुलम थे। उन्हें अब गेंद से परास्त होते फील्डर से झुंझलाहट नहीं हो रही थी। हाथ से फिसलते आसान कैच पर हताशा उभार नहीं ले रही थी। अगरकर की गेंद पर दिलशान के बल्ले का किनारा लेती गेंद पर फील्डर काबू नहीं कर पाया तो मैकुलम के चहरे पर नाराजगी नहीं थी। उनके होठों पर एक हलकी सी मुस्कराहट तैर रही थी। मुकाबले के आखिरी क्षणों में इशांत शर्मा की गेंद पर हेनरिक्स ने गौतम गंभीर का आसान सा कैच टपका दिया तो मैकुलम शून्य में ताक रहे थे। वो आत्मचिंतन की मुद्रा में थे। यह अपनी नियति को स्वीकारते मैकुलम थे। हार के न टूटते सिलसिले को अपनी किस्मत मानते हुए।
ये अपने कोच जॉन बुकानन की सोच से ठीक उलट खड़े मैकुलम थे। खेल में नियति को अस्वीकार कर सिर्फ और सिर्फ जीत तक पहुँचने की सोच रखने वाले बुकानन। मल्टीपल कप्तान की थ्योरी के बीच जीत के बेहतरीन कॉम्बिनेशन को इजाद करने की धुन में जुटे बुकानन। ये भूलते हुए कि खेल में आप नतीजों की भविष्यवाणी का जोखिम नहीं उठा सकते। जिस दिन आप नतीजों की भविष्यवाणी करने लग जाएंगे, उस दिन आप खेल से इसके सबसे खूबसूरत पहलू ‘चमत्कार’ को गायब कर देंगे।
आखिर क्रिकेट के मुकाबले में कोई बॉलिंग मशीन नहीं खेलती। मशीन, जो आपको गेंद की सही लम्बाई, ऊँचाई और उछाल को पहले से बता सके। यहाँ फील्डर कैच का पहले से पूर्वानुमान या आकलन नहीं कर सकता। यहाँ बल्लेबाज के लिये हर अगली गेंद एक नयी चुनौती होती है। गेंदबाज रन उप पर उठते कदमों के बीच विकेट से आगे जाकर बल्लेबाज की सोच पर जीत दर्ज करना चाह्ता है। अंपायर का एक फैसला पूरे मुकाबले का रुख मोड़ सकता है। दरअसल, हर एक नयी गेंद के क्रम में एक नयी शुरुआत होती है। गेंदबाज, बल्लेब्बाज, फील्डर और अंपायर के बीच से गुजरती एक नयी कहानी से हम रुबरु होते हैं। ऐसी कहानी, जिसमें आप पहले से कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते। फिर इन सबसे आगे यहाँ हाड मांस के खिलाडी खेलते हैं
। भावनाओं में लिपटे हुए अपनी अपनी भूमिकाओं को अंजाम देते हुए। जीत के लम्हों में लिपटी असीम ख़ुशी होती है तो हार के बीच छिपा दर्द होता है। अपने तमाम टेलेंट और अनुभव के बीच वो अगली गेंद के नतीजे से अनजान दर्द और ख़ुशी के बीच से गुजरते हैं। इन दो छोरों के बीच, जो जितना सहज रह पता है, कामयाबी उसी के हाथ लगाती है।
इसीलिये एक दिन युवराज सिंह हैट्रिक लेते हैं। चार खूबसूरत छक्कों से सजी हाफ सेंचुरी बनाते हैं। लेकिन इसके बावजूद उनकी टीम हार जाती है। एक दिन वॉर्न की राजस्थान रॉयल्स महज 58 रन पर सिमट जाती है। लेकिन एक दिन प्रतियोगिता का सबसे बड़ा स्कोर 212 रन बना देती है। बंगलोर रॉयल्स लगतार तीन मुकाबले हारती है। लेकिन अगले ही दिन वो मुंबई इंडियंस को 9 विकेट से हराती है। यह हार और जीत के दो छोरों को पकड़ती टीम हैं। यहाँ जीत जितना बड़ा सच है, हार उससे भी बड़ा। लेकिन हार और जीत के बीच पूरी सहजता ! यही सहजता इन्हें मुकाबलों के दबाव से उबारती हुई हार से वापस जीत की ओर मुड़ने का हौसला देती है।
लेकिन सिर्फ जीत के आस पास घूमती बुकानन की सोच उन्हें इस सहजता से दूर कर रही है। 17 खिलाडियों की टीम के लिये 16 लोगों का कोचिंग स्टाफ भी जीत का मंत्र नहीं सूझा पा रहा। हर गेंद के साथ बदलता मुकाबला और शुरू होती नयी कहानी के बीच पहले से तैयार फार्मूला अचानक खारिज हो जाता है। मंगलवार को ही ब्रेड हॉज के आउट होने पर 6 ओवर बाकी रहते सौरव को विकेट पर न भेजना अपनी बनी बनायी रणनीति से आगे जाकर न सोचने की कहानी कहता है। वन डे में 22 शतक और 11,000 रन बना चुके सौरव की जगह हेनरिक्स को भेजा जाता है। वो लेग स्पिनर अमित मिश्रा के ओवर को मेडन निकाल देते हैं। भारतीय क्रिकेट में स्पिन्नर के खिलाफ सबसे बड़े स्ट्रोक खेलने वाले सौरव डगआउट में पैड पहने ये सब देखते रह जाते हैं।
इतना ही नहीं, बुकानन की सोच को मैदान पर साकार करने में जुटे कप्तान मैकुलम सौरव की गेंदों में कोई भरोसा नहीं दिखा पाते। शायद बुकानन के दिये ब्लू प्रिंट से मैकुलम आगे जाना नहीं चाहते। बेशक मुकाबले में हर पल आते नए मोड़ कुछ नयी मांग कर रहे हों। यह बुकानन के ब्लू प्रिंट को साकार करने की चुनौती है या हर गुजरते दिन के साथ सामने आती हार का खौफ, मैकुलम दबाव में हैं। उनके साथी भी दबाव में हैं। यही वजह है कि इंटरनेशनल स्टेज पर 300 से ज्यादा कैच ले चुके कप्तान मैकुलम गौतम गंभीर को उस मौके पर आसान सा जीवन दान दे डालते हैं, जहाँ से मुकाबले को अपनी और मोड़ा जा सकता है। पास आती हर गेंद पर अनुभवी हॉज और गांगुली का हौसला लड़खड़ाता दिखता है। और हर दूसरे दिन ऐसे ही लडखडाती कोलकाता से हम रुबरु हो रहे हैं। सिर्फ जीत की सोचते सोचते जो जीतना ही भूल गयी है।
उम्मीद करनी कहिये कि नियति में भरोसा दिखाते मैकुलम हार और जीत को सहजता से स्वीकार करना शुरू करेंगे। सहजता लौटेगी तो कोलकाता की भी वापसी होगी। भले अब काफी देर हो चुकी है, लेकिन हम सभी को उसके लौटने का इंतज़ार है।
Friday, May 8, 2009
Thursday, May 7, 2009
वॉर्न की शख्सियत के जादू से पार पाने की चुनौती
शेन वॉर्न को देख अमेरिकी बास्केटबाल के महानतम कोच पेट रिले का कथन याद आता है। अमेरिकी बास्केटबाल लीग की पांच विजेता टीमों के कोच रहे रिले का मानना है कि आपको महान खिलाडी को शिकस्त देने के लिये उसके खेल से ज्यादा उसके प्रभामंडल, उसके जादू से पार पाना होता है। यानि आपके सामने जीत के लिए दोहरी चुनौती होती है। वॉर्न के खिलाफ भी आप एक महान खिलाडी से जूझते हैं। एक महान गेंदबाज और एक बेहतरीन कप्तान से पार पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन इन सबसे ज्यादा आपके सामने इस महानायक की शख्सियत के आस पास रचे जादू से भी पार पाने की चुनौती होती है।
लेकिन गुरूवार को सेंचुरियन में वॉर्न रिले की सोच से भी आगे जा रहे थे। बंगलोर रॉयल चैलेंजर्स की पारी का आखिरी ओवर था। उसके आठ विकेट गिर चुके थे। उनके रन भी बमुश्किल 100 तक पहुंचे थे। कोई दूसरा कप्तान होता तो किसी अनुभवी गेंदबाज को गेंद थमा कुछ राहत की सांस ले सकता था। लेकिन वॉर्न अपने विपक्षी को हल्की सी भी राहत नहीं देना चाहते थे। उन्होंने अपना दूसरा मुकाबला खेल रहे अमित सिंह को गेंद थमाई। साथ ही हर गेंद पर उन्हें सलाह देने के लिए वो मिड ऑफ पर मौजूद थे। माहौल पर हावी होते वॉर्न के जादू के बीच बंगलोर मुकाबला खत्म होने से बहुत पहले ही हार कबूल रहा था। वॉर्न की दी हिदायतों के बीच इस धीमे विकेट पर अपनी पेस में बदलाव करते हुए अमित सिंह ने बंगलोर को आखिरी छह गेंदों पर सिर्फ तीन रन ही बनाने का मौका दिया। साथ ही उनके बाकी बचे दोनों विकेट हासिल कर प्रतियोगिता का अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया।
फिर यह वॉर्न की शख्सियत का जादू विपक्षी ही नहीं, उनके अपने साथियों को भी अपने साथ बहा ले जाता है। आखिर इस प्रतियोगिता से पहले गुजरात की ओर से रणजी ट्राफी में खेलने वाले अमित सिंह को फर्स्ट क्लास क्रिकेट में पांच साल हो गए थे। लेकिन वो महज १५ मुकाबलों में ही मैदान में उतर पाए। इसके लिये उनकी गेंदबाजी एक्शन पर बोर्ड की तकनीकी समिति की ऊँगलियाँ उठाना भी एक वजह कही जा सकती है। लेकिन वॉर्न ने इन सब को नज़रंदाज कर अमित सिंह पर भरोसा जताया। नतीजा सामने था। वॉर्न के दिखाए भरोसे के बीच अमित ने पहले मुकाबले में संगकारा समेत तीन विकेट लिये। दूसरे मैच में वो अपने प्रदर्शन को चार विकेट तक खींच ले गए।
ठीक इसी आइने में आप नमन ओझा की पंजाब के खिलाफ खेली विस्फोटक पारी को पढ़ सकते हैं। आप कोलकाता के खिलाफ आखिरी ओवर डालते कामरान खान के भरोसे को छू सकते हैं। किसी भी स्तर के राष्ट्रीय क्रिकेट में न उतरने वाले कामरान आखिरी ओवर में सौरव का विकेट लेते हैं। सुपर ओवर फेंकने का भरोसा हासिल करते हैं। जब इस लाजवाब प्रदर्शन के बाद कामरान से प्रतिक्रिया ली जाती है, तो वो सिर्फ एक बात कहते है- मैं कप्तान के भरोसे पर खरा उतरा। फिर, यही सोच टीम के सीनियर सदस्यों में भी झलकती है। युसूफ पठान अपनी कामयाबियों को वॉर्न के दिये हौसलों से जोड़ देते है। मोर्केल उनमे बेहतरीन कप्तान को देखते हैं।
दरअसल, वॉर्न और उनके साथियों के बीच भरोसे के इस तार का सिरा वॉर्न की शख्सियत के जादू से जुड़ा है। कोई वॉर्न के सामने नाकाम नहीं होना चाहता। यही टीम को सबसे बड़ी ताकत देता है। फिर वॉर्न बड़े नामों से हटकर अपनी टीम में ऐसे युवा टेलेंट को जगह देने में यकीन करते हैं जो उनकी सोच के मुताबिक ढल जाये। मज़ाक में वो ये भी कहते हैं कि इन युवा खिलाड़ियों की वजह से वो भी खुद को युवा महसूस करते हैं।
लेकिन, बात मज़ाक से आगे की है। शेन वॉर्न टीम में अंग्रेजी न जानने वाले ज्यादातर युवाओं के होने के बावजूद शिद्दत से संवाद करते हैं। वो उनकी बात तसल्ली से सुनते हैं तो अपनी बात विस्तार से समझाने के लिए द्विभाषिये की मदद लेते हैं। वार्न मैदान में कैच छूटने से लेकर ओवर थ्रो जैसी गलतियों पर नाराज नहीं होते। वो नाजुक मौकों पर गलतियां करते अपने साथियों का हौसला बढ़ाते हैं। एक कप्तान की भूमिका से आगे की कोशिशें ही युवा खिलाड़ियों को उनके पीछे चलने पर मजबूर कर देती हैं। युवा टेलेंट को तरजीह देने के चलते ही पिछली बार के तीन स्टार खिलाडियों की गैरमौजूदगी का टीम पर कोई असर नहीं है। इस बार शेन वॉट्सन, सोहेल तनवीर और कामरान अकमल टीम के साथ नहीं है।
लेकिन इसके बावजूद राजस्थान रॉयल्स अपने खिताब को बचाने की ओर बहुत मजबूती से बढ़ रही है। कल तक वो कोलकाता के खिलाफ सुपर ओवर में जीत दर्ज कर रही थी, तो आज वो पंजाब किंग्स इलेवन और बंगलोर पर एकतरफा जीत दर्ज करते हुए ट्वेंटी ट्वेंटी के रोमांच को खारिज कर रही है। प्रतियोगिता की बाकी टीमों को आगाह करती हुई-आप किसी टीम के खिलाफ नहीं खेल रहे। आप वॉर्न नाम के इस महानायक से जूझ रहे हैं। आपको राजस्थान पर जीत दर्ज करने से पहले वॉर्न के जादू से पार पाना होगा। इसमें फिलहाल सभी बहे चले जा रहे हैं। विपक्षी टीम भी और खुद वॉर्न की राजस्थान रॉयल्स भी।
लेकिन गुरूवार को सेंचुरियन में वॉर्न रिले की सोच से भी आगे जा रहे थे। बंगलोर रॉयल चैलेंजर्स की पारी का आखिरी ओवर था। उसके आठ विकेट गिर चुके थे। उनके रन भी बमुश्किल 100 तक पहुंचे थे। कोई दूसरा कप्तान होता तो किसी अनुभवी गेंदबाज को गेंद थमा कुछ राहत की सांस ले सकता था। लेकिन वॉर्न अपने विपक्षी को हल्की सी भी राहत नहीं देना चाहते थे। उन्होंने अपना दूसरा मुकाबला खेल रहे अमित सिंह को गेंद थमाई। साथ ही हर गेंद पर उन्हें सलाह देने के लिए वो मिड ऑफ पर मौजूद थे। माहौल पर हावी होते वॉर्न के जादू के बीच बंगलोर मुकाबला खत्म होने से बहुत पहले ही हार कबूल रहा था। वॉर्न की दी हिदायतों के बीच इस धीमे विकेट पर अपनी पेस में बदलाव करते हुए अमित सिंह ने बंगलोर को आखिरी छह गेंदों पर सिर्फ तीन रन ही बनाने का मौका दिया। साथ ही उनके बाकी बचे दोनों विकेट हासिल कर प्रतियोगिता का अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया।
फिर यह वॉर्न की शख्सियत का जादू विपक्षी ही नहीं, उनके अपने साथियों को भी अपने साथ बहा ले जाता है। आखिर इस प्रतियोगिता से पहले गुजरात की ओर से रणजी ट्राफी में खेलने वाले अमित सिंह को फर्स्ट क्लास क्रिकेट में पांच साल हो गए थे। लेकिन वो महज १५ मुकाबलों में ही मैदान में उतर पाए। इसके लिये उनकी गेंदबाजी एक्शन पर बोर्ड की तकनीकी समिति की ऊँगलियाँ उठाना भी एक वजह कही जा सकती है। लेकिन वॉर्न ने इन सब को नज़रंदाज कर अमित सिंह पर भरोसा जताया। नतीजा सामने था। वॉर्न के दिखाए भरोसे के बीच अमित ने पहले मुकाबले में संगकारा समेत तीन विकेट लिये। दूसरे मैच में वो अपने प्रदर्शन को चार विकेट तक खींच ले गए।
ठीक इसी आइने में आप नमन ओझा की पंजाब के खिलाफ खेली विस्फोटक पारी को पढ़ सकते हैं। आप कोलकाता के खिलाफ आखिरी ओवर डालते कामरान खान के भरोसे को छू सकते हैं। किसी भी स्तर के राष्ट्रीय क्रिकेट में न उतरने वाले कामरान आखिरी ओवर में सौरव का विकेट लेते हैं। सुपर ओवर फेंकने का भरोसा हासिल करते हैं। जब इस लाजवाब प्रदर्शन के बाद कामरान से प्रतिक्रिया ली जाती है, तो वो सिर्फ एक बात कहते है- मैं कप्तान के भरोसे पर खरा उतरा। फिर, यही सोच टीम के सीनियर सदस्यों में भी झलकती है। युसूफ पठान अपनी कामयाबियों को वॉर्न के दिये हौसलों से जोड़ देते है। मोर्केल उनमे बेहतरीन कप्तान को देखते हैं।
दरअसल, वॉर्न और उनके साथियों के बीच भरोसे के इस तार का सिरा वॉर्न की शख्सियत के जादू से जुड़ा है। कोई वॉर्न के सामने नाकाम नहीं होना चाहता। यही टीम को सबसे बड़ी ताकत देता है। फिर वॉर्न बड़े नामों से हटकर अपनी टीम में ऐसे युवा टेलेंट को जगह देने में यकीन करते हैं जो उनकी सोच के मुताबिक ढल जाये। मज़ाक में वो ये भी कहते हैं कि इन युवा खिलाड़ियों की वजह से वो भी खुद को युवा महसूस करते हैं।
लेकिन, बात मज़ाक से आगे की है। शेन वॉर्न टीम में अंग्रेजी न जानने वाले ज्यादातर युवाओं के होने के बावजूद शिद्दत से संवाद करते हैं। वो उनकी बात तसल्ली से सुनते हैं तो अपनी बात विस्तार से समझाने के लिए द्विभाषिये की मदद लेते हैं। वार्न मैदान में कैच छूटने से लेकर ओवर थ्रो जैसी गलतियों पर नाराज नहीं होते। वो नाजुक मौकों पर गलतियां करते अपने साथियों का हौसला बढ़ाते हैं। एक कप्तान की भूमिका से आगे की कोशिशें ही युवा खिलाड़ियों को उनके पीछे चलने पर मजबूर कर देती हैं। युवा टेलेंट को तरजीह देने के चलते ही पिछली बार के तीन स्टार खिलाडियों की गैरमौजूदगी का टीम पर कोई असर नहीं है। इस बार शेन वॉट्सन, सोहेल तनवीर और कामरान अकमल टीम के साथ नहीं है।
लेकिन इसके बावजूद राजस्थान रॉयल्स अपने खिताब को बचाने की ओर बहुत मजबूती से बढ़ रही है। कल तक वो कोलकाता के खिलाफ सुपर ओवर में जीत दर्ज कर रही थी, तो आज वो पंजाब किंग्स इलेवन और बंगलोर पर एकतरफा जीत दर्ज करते हुए ट्वेंटी ट्वेंटी के रोमांच को खारिज कर रही है। प्रतियोगिता की बाकी टीमों को आगाह करती हुई-आप किसी टीम के खिलाफ नहीं खेल रहे। आप वॉर्न नाम के इस महानायक से जूझ रहे हैं। आपको राजस्थान पर जीत दर्ज करने से पहले वॉर्न के जादू से पार पाना होगा। इसमें फिलहाल सभी बहे चले जा रहे हैं। विपक्षी टीम भी और खुद वॉर्न की राजस्थान रॉयल्स भी।
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