tag:blogger.com,1999:blog-4942508908242162849.post6499953386481663156..comments2024-02-27T20:03:54.732-08:00Comments on खेल ज़िंदगी है.....: काल से होड़ करती एक स्टिकN.P. Singhhttp://www.blogger.com/profile/09717760577972667115noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4942508908242162849.post-72415970436077140932008-08-30T00:01:00.000-07:002008-08-30T00:01:00.000-07:00वाकई ध्यानचंद जैसा कोई नहीं...पर बड़ा सवाल ये है क...वाकई ध्यानचंद जैसा कोई नहीं...पर बड़ा सवाल ये है कि जिस देश की माटी, हवा, पानी ने दद्दा को गढ़ा था, वो अब ऐसे हीरे-मोती क्यों नहीं पैदा कर रही है। इस जमीन में घटिया यूरिया डालकर कौन बंजर बनाने पर तुला है। क्षमता तो है, पर शायद दृष्टि नहीं।..बहरहाल, सबसे अच्छा ये लग रहा है कि आप जैसा व्यक्ति जो खेल की बारीकियों पर बारीक नजर रखता है, फिर सामने है। कलम उठा ली है...तो बात दूर तलक जाएगी। आपको पढ़कर खेल पत्रकार अपनी समझ और संवेदना बेहतर करेंगे, ये उम्मीद है। <BR/><BR/>पंकज श्रीवास्तवpankaj srivastavahttps://www.blogger.com/profile/00012745013304145094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4942508908242162849.post-74065032222043395702008-08-29T08:45:00.000-07:002008-08-29T08:45:00.000-07:00अच्छा आलेख!!अच्छा आलेख!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com