tag:blogger.com,1999:blog-4942508908242162849.post4114725405025669522..comments2024-02-27T20:03:54.732-08:00Comments on खेल ज़िंदगी है.....: ये मिथक टूटना नहीं चाहिए लांस आर्मस्ट्रांगN.P. Singhhttp://www.blogger.com/profile/09717760577972667115noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4942508908242162849.post-8731310928672417872008-09-12T08:11:00.000-07:002008-09-12T08:11:00.000-07:00लांस आर्मस्ट्रांग ने अगर कहा है कि मैं कैंसर के खि...लांस आर्मस्ट्रांग ने अगर कहा है कि मैं कैंसर के खिलाफ एक संदेश देने के लिए अपनी विश्वविजयी साईकिल के साथ उतर रहा हूं तो इस पर शक करने का कोई कारण नहीं बनता..दरअसल आर्मस्ट्रांग के लीजेंड बनने में कैंसर का भी एक रोल तो है ही।लेकिन आर्मस्ट्रांग की सफाई से बाहर उन खिलाड़ियों के नामों पर सोचा जाय जिनका जिक्र इस लेख में है और जो दोबारा खेल के मैदान पर लौटे..इन खिलाड़ियों के पास भी मैदान पर लौटने का कोई ना कोई तर्क होगा ही..मूल बात खिलाड़ियों के तर्क से अलग उनका मैदान पर लौटना है।कभी कभी ये लगता है कि खिलाड़ी वक्त के किसी खास मुकाम पर अपने खेल में सर्वश्रेष्ठ हो तो उसके भीतर ये वहम बैठ जाता है कि उसकी श्रेष्ठता सार्वकालिक श्रेष्ठता है..कहीं गहरे में उसके भीतर यह विचार बैठा हो सकता है कि मैं ,वक्त चाहे जो भी हो,अपराजेय था और हूं।यह एक बुनियादी गलती है-खेल के मैदान पर भी और जिन्दगी के बाकी मैदानों पर भी।मैं कोई सापेक्षतावाद का तर्क इस्तेमाल नहीं कर रहा-मगर जोर देकर कहना चाहता हूं कि सार्वकालिक श्रेष्ठता जैसी कोई चीज होती नहीं।इतिहास अपने को दोहराने लगे तो इतिहास ना हो अनवरत चलने वाला वर्तमान ही बना रहे।याद आती है कृष्ण और अर्जुन से जुड़ी कथा।अपने अचूक तीरों से महाभारत जीतने वाले अर्जुन को कृष्ण ने भेजा गोप-बालाओं की मुक्ति के लिए।देहात में इस घटना के समाहार पर कहा जाता है--अर्जुन के तीर चूक गए-छिन छिन लुटत गोपियां वही अर्जुन वही बान।खुद इंद्र से होड़ लेने और कंस को मारने वाले कृष्ण आखिर को एक व्याध के तीर का शिकार हुए।अब भले ही यह एक कथा हो लेकिन बड़ी साफगोई से कहती है कि सार्वकालिक श्रैष्ठता का दावा तो भगवान का भी नहीं होता(कम से कम हिन्दू मानस में)।<BR/>मुझे ध्यानचंद पर केंद्रित लेख में कही गई आपकी बात ज्यादा जंचती है कि कोई भी मूव दोहराया नहीं जा सकता-चाहे खेल के मैदान पर हो या जिन्दगी के मैदान पर..आर्मस्ट्रांग बड़े सम्मानित हैं..और उनके सम्मान की शोभा यही होगी कि वे साईकिल कैंसर के लिए जागरुकता फैलाने और गरीब मरीजों के उपचार के लिए चंदा उगाहने के लिए चलाएं..ना कि मुकाबले में उतरकर एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए।<BR/>खिलाड़ी की दुविधाओं को पकड़ता एक उत्तम लेख..<BR/>चंदन श्रीवास्तवUnknownhttps://www.blogger.com/profile/16938267477518387374noreply@blogger.com