Thursday, April 30, 2009

पीटरसन की जीत छोड़ गई बुकानन के लिए कुछ सवाल

मार्क बाउचर के लिए आखिरी ओवर में टीम को मंजिल तक पहुँचाना कोई नयी बात नहीं थी। बीते 12 सालों में इंटरनेशनल स्टेज पर दक्षिण अफ्रीका को वो कितनी ही बार जीत तक ले गए हैं। बुधवार को डरबन में एक बार फिर उन पर ऐसी ही जिम्मेदारी थी। बस, टीम बदल चुकी थी। इस बार उन्हें बंगलोर रॉयल चैलेंजर्स को जीत तक पहुँचाना था। मैच के आखिरी ओवर की पांचवी गेंद पर बाउचर ने विजयी चौका जमाया तो वो एक असीम ख़ुशी में डूब गए। क्रिस गेल की लेग स्टम्प पर आती फुलटॉस पर बाउचर ने जोरदार प्रहार करने के साथ ही अपनी मुट्ठी तानी और हवा में लहरा दी। इशारा करते हुए कि उनके और बंगलोर के लिये इस जीत के मायने क्या हैं।

चार लगातार शिकस्त के बाद ये बंगलोर की पहली जीत जीत थी। कुल मिलकर दूसरी। बंगलोर के डगआउट से लेकर स्टेडियम में मौजूद हर समर्थक बाउचर की दी ख़ुशी में भीग रहा था। लेकिन कप्तान पीटरसन से ज्यादा खुश शायद कोई नहीं था। मार्क बाउचर और उनके साथी मनीष पांडेय को बाँहों में भर लेने के लिए पीटरसन सबसे पहले डगआउट से बाहर निकले तो उनके पैड बंधे हुए थे। इशारा करते हुए कि कितनी बेताबी से वो इस एक जीत का इंतज़ार कर रहे थे। 16वें ओवर में एक और नाकाम पारी खेलने के बाद से वो डगआउट में पैड बांधे बैठे थे। बस, इस एक जीत के इंतज़ार में।

आखिर इस प्रतियोगिता में यह उनका आखिरी मैच था। इसके बाद वो इंग्लैंड लौट रहे हैं। वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ में शिरकत करने। जिस तरह इस प्रतियोगिता के पहले मुकाबले में उन्होंने डिफेंडिंग चैम्पियन राजस्थान रॉयल्स को शिकस्त देकर जोरदार आगाज किया था, उसी तरह वो जीत के साथ यहाँ से विदा लेने की ठान कर आये थे। बेशक, वो बल्ले से खुद लगातार नाकाम रहे थे। लेकिन, क्रिकेट की स्टेज पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने, उस पर हावी हो जाने की उनकी सोच में कोई कमी नहीं थी।

फिर, अपनी पहचान को दर्ज कराने की उनकी फितरत भी है। इसलिए बुधवार को मुकाबले की पहली ही गेंद से वो नाइट राइडर्स पर हावी हो गए। गेंद उनके हाथ में थी। अपने विरोधी कप्तान मैकुलम को वो प्वाइंट पर विराट कोहली के हाथों कैच करा रहे थे। यह सिर्फ संयोग भी कहा जा सकता है। लेकिन पीटरसन डरबन के धीमे और स्ट्रोक प्ले के लिये मुश्किल विकेट पर एक बेहद सोची समझी रणनीति के साथ उतरे थे। धीमे गेंदबाजों के सहारे अपनी ही तरह हताश कोलकाता पर जीत की सोच के साथ। प्रवीण कुमार और पंकज सिंह जैसे गेंदबाजों की मौजूदगी के बावजूद अपने साथ दूसरे छोर से भी रौलेफ़ वन को लेफ्ट आर्म स्पिन की जिमादारी सौपने का जोखिम उठाया। लेकिन अपनी रणनीति को लेकर उनकी सोच साफ़ थी। इसे आप पीटरसन के धीमे गेंदबाजों से कराये 15 ओवर में महसूस कर सकते हैं। इसी का नतीजा था कि पॉवर प्ले में ही दो विकेट गंवाने के साथ कोलकाता आखिर तक कोई बड़ी चुनौती पेश नहीं कर पाया। उसके बल्लेबाज़ कोई बड़ा प्रहार करने में नाकाम रहे।

इतना ही नहीं, द्रविड़ की गैरमौजूदगी और नाकाम उथप्पा की भरपाई करने के लिये नौजवान बल्लेबाजों में भरोसा दिखाया। श्रीवत्स गोस्वामी से पारी की शुरुआत कराई। आखिरी ओवर में मनीष पाण्डेय को भेजने का जोखिम उठाया। और दोनों ने ही अपने कप्तान के भरोसे को टूटने नहीं दिया। गोस्वामी ने बेहद सीधे बल्ले से रन भी जोड़े और अनुभवी कालिस के साथ पहले 11 ओवर तक विकेट बचा कर रखा। यह इस प्रतियोगिता में बंगलोर की सबसे बेहतर शुरुआत थी। मनीष पांडे ने आखिरी ओवर की पहली गेंद पर एक जरुरी सिंगल लेते हुए सीनियर बल्लेबाज मार्क बाउचर को जरुरी स्ट्राइक थमाई।

दरअसल, यही सोच बंगलोर को इस बेहद नजदीकी मुकाबले में जीत तक ले गयी। वरना कोलकाता की तरह बंगलोर भी लगातार शिकस्त से जूझ रही थी। लेकिन पीटरसन की टीम ने न केवल खेल के बेसिक पर पकड़ जमाई। जीत के लिये अपने साथियों में सबसे जरुरी भरोसा भी दिखाया। दरअसल, बिना भरोसे के आप जोखिम नहीं उठा सकते। लेकिन कोलकत्ता की टीम की तरह ही बुकानन की अगुवाई में लम्बा चौडा कोचिंग स्टाफ टीम में जीत की नयी सोच , नया भरोसा नहीं भर सका . मैकुलम के नाकाम होने के बावजूद ओपनिंग में कोई नया प्रयोग नहीं दिख रहा . फील्डिंग में छोटी छोटी चूक किसी कमजोरी से ज्यादा अपने भरोसे में कमी को ज़ाहिर करती है . एक दिन पहले बुकानन को वार्न ने शिकस्त दी थी। अपनी निजी नाकामी के बीच भी वापस लौटे पीटरसन जाते जाते उन्हे कुछ सबक सिखा गए हैं। यह पीटरसन की टीम की जीत है। बुकानन को अभी टीम की तलाश है।

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